एनएचआरसी के दिशानिर्देश : नागरिकों से फर्जी मुठभेड़ों के बारे में कई शिकायतें प्राप्त करने के बाद मार्च 1997 में एनएचआरसी के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति वेंकटचलैया ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था. उन्होंने पुलिस के साथ मुठभेड़ के दौरान हुई मौतों के संदर्भ में निर्देशों का पालन करने पर जोर दिया. बाद में एनएचआरसी ने दिशानिर्देशों की एक सूची तैयार की और केंद्र व राज्य सरकारों से उनका पालन करने का आग्रह किया. वह दिशानिर्देश इस प्रकार हैं.
- जब किसी पुलिस अधिकारी को पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत के बारे में जानकारी मिलती है, तो जानकारी को उपयुक्त रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिए.
- उन परिस्थितियों और कारकों की जांच करने के लिए, जो मुठभेड़ के दौरान मौत का कारण बने एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
- यदि एक ही पुलिस स्टेशन से संबंधित पुलिस अधिकारी मुठभेड़ पार्टी के सदस्य हैं, तो जांच सीआईडी जैसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंप दी जानी चाहिए.
- जब भी पुलिस की ओर से किसी आपराधिक कृत्य के आरोप में एक विशेष शिकायत की जाती है, तो उचित आईपीसी की धारा के तहत तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
- मृत्यु के सभी मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा जांच होनी चाहिए, जो पुलिस कार्रवाई के दौरान होती है. तीन माह की अवधि के भीतर.
- पुलिस कार्रवाई में मौतों के सभी मामलों की रिपोर्ट एनएचआरसी को 48 घंटे के भीतर करनी चाहिए.
- पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट द्वारा की गई जांच के निष्कर्ष जैसी जानकारी प्रदान करके तीन महीने के भीतर दूसरी रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए.
सर्वोच्च न्यायलय के दिशानिर्देश : 23 सितंबर, 2014 को पारित एक विस्तृत आदेश में शीर्ष अदालत ने गैर-न्यायिक हत्याओं के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए थे.
- जब भी पुलिस को गंभीर आपराधिक मामलों या गतिविधियों के बारे में सूचना प्राप्त होती है, तो इसे किसी न किसी रूप में लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए. (अधिमानतः केस डायरी या किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में).
- यदि पुलिस मुठभेड़ के दौरान कोई मौत होती है, तो इसकी एफआईआर तुरंत दर्ज की जानी चाहिए.
- पंजीकृत प्राथमिकी, केस डायरी प्रविष्टि, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अन्य जानकारी जल्द से जल्द अदालत में प्रस्तुत की जानी चाहिए.
- मुठभेड़ का विवरण राष्ट्रीय या राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजा जाना चाहिए.
- स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पर गंभीर संदेह होने तक एनएचआरसी को शामिल करने की आवश्यक नहीं है.
- पुलिस मुठभेड़ों में हुई मौतों के सभी मामलों के विवरण को हर छह महीने पर एनएचआरसी को भेजा जाना चाहिए.
- मजिस्ट्रेट द्वारा जांच अनिवार्य रूप से मौत के सभी मामलों में होनी चाहिए, जो पुलिस मुठभेड़ों में होती है. साथ ही एक रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए.
- मुठभेड़ की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी या किसी अन्य थाने की पुलिस टीम को करनी चाहिए.
- पोस्टमार्टम की वीडियो ग्राफी कर उसे संरक्षित किया जाना चाहिए.
- पुलिस की ओर से आपराधिक कृत्य के मामले में आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए.
- चार्जशीट दाखिल करने में देरी नहीं होनी चाहिए.
- घटना के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को तत्काल वीरता पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए. संबंधित अधिकारियों की वीरता को संदेह से परे होने की पुष्टि करने के बाद ही ऐसे पुरस्कार दिए जाने चाहिए.
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एक स्वतंत्र जांच आवश्यक है
समाज के सभी कोनों में चर्चा की बंदूक "न्याय के गोलियों" से भरी हुईं हैं.एक तरफ लोग इस बात का जश्न मना रहे हैं कि दिशा के कातिलों को मुडभेड में मार गिराकर उनको सही सज़ा मिली है, दूसरी ओर तर्क है कि न्याय का यह सही तरीका नहीं है. इस हालिया मुठभेड़ के मद्देनजर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत (एनएचआरसी) और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों पर फिर से गौर करना ज़रूरी है.
एनएचआरसी के दिशानिर्देश: नागरिकों से फ़र्ज़ी मुठभेड़ों के बारे में कई शिकायतें प्राप्त करने के बाद; मार्च 1997 में, एनएचआरसी के पूर्व अध्यक्ष न्यायमूर्ति वेंकटचलैया ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखा था. उन्होंने पुलिस के साथ मुठभेड़ के दौरान हुई मौतों के सन्दर्भ में निर्देशों का पालन करने पर जोर दिया. बाद में, एनएचआरसी ने दिशानिर्देशों की एक सूची तैयार की और केंद्र और राज्य सरकारों से उनका पालन करने का आग्रह किया. वे इस प्रकार हैं.
· जब किसी पुलिस अधिकारी को पुलिस के साथ मुठभेड़ में मौत के बारे में जानकारी मिलती है, तो जानकारी को उपयुक्त रजिस्टर में दर्ज किया जाना चाहिए.
· उन परिस्थितियों और कारकों की जांच करने के लिए जो मुठभेड़ के दौरान मौत का कारण बने, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.
· यदि एक ही पुलिस स्टेशन से संबंधित पुलिस अधिकारी मुठभेड़ पार्टी के सदस्य हैं, तो जांच सीआईडी जैसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंप दी जानी चाहिए.
· जब भी पुलिस की ओर से किसी आपराधिक कृत्य के आरोप में एक विशेष शिकायत की जाती है, तो उचित आईपीसी की धारा के तहत तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए.
· मृत्यु की सभी मामलों में मजिस्ट्रेट द्वारा जांच होनी चाहिए, जो पुलिस कार्रवाई के दौरान होती है, अधिमानतः तीन महीने के भीतर.
· पुलिस कार्रवाई में मौतों के सभी मामलों की रिपोर्ट एनएचआरसी को 48 घंटों के भीतर करनी चाहिए.
· पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट द्वारा की गई जांच के निष्कर्ष जैसी जानकारी प्रदान करके 3 महीने के भीतर दूसरी रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए.
सर्वोच्च न्यायलय के दिशानिर्देश: 23 सितंबर, 2014 को पारित एक विस्तृत आदेश में; शीर्ष अदालत ने गैर-न्यायिक हत्याओं के बारे में स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए थे.
· जब भी पुलिस को गंभीर आपराधिक मामलों या गतिविधियों के बारे में सूचना प्राप्त होती है, तो इसे किसी न किसी रूप में लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए (अधिमानतः केस डायरी या किसी इलेक्ट्रॉनिक रूप में).
· यदि पुलिस मुठभेड़ के दौरान कोई मौत होती है, तो इसकी एक एफआईआर तुरंत दर्ज की जानी चाहिए.
· पंजीकृत प्राथमिकी, केस डायरी प्रविष्टि, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अन्य जानकारी जल्द से जल्द अदालत में प्रस्तुत की जानी चाहिए.
· मुठभेड़ का विवरण राष्ट्रीय या राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजा जाना चाहिए.
· स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच पर गंभीर संदेह होने तक एनएचआरसी को शामिल करने की आवश्यक नहीं है.
· पुलिस मुठभेड़ों में हुई मौतों के सभी मामलों के विवरण को हर छह महीने पर एनएचआरसी को भेजे जाने चाहिए.
· मजिस्ट्रेट द्वारा जांच अनिवार्य रूप से मौत के सभी मामलों में होनी चाहिए जो पुलिस मुठभेड़ों में होती है और एक रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजी जानी चाहिए.
· मुठभेड़ की एक स्वतंत्र जांच सीआईडी या किसी अन्य थाने की पुलिस टीम को करनी चाहिए.
· पोस्टमार्टम को वीडियो ग्राफी कर उसे संरक्षित किया जाना चाहिए.
· पुलिस की ओर से आपराधिक कृत्य के मामले में आवश्यक कार्रवाई की जानी चाहिए.
· चार्जशीट दाखिल करने में देरी नहीं होनी चाहिए.
· घटना के तुरंत बाद संबंधित अधिकारियों को तत्काल वीरता पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए. संबंधित अधिकारियों की वीरता को संदेह से परे होने की पुष्टि करने के बाद ही ऐसे पुरस्कार दिए जाने चाहिए.
Conclusion: