नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि मानव अधिकार के सबसे बड़ा दुश्मन आतंकवाद और नक्सलवाद हैं. उन्होंने कहा कि जहां एक तरफ हिरासत में पुलिस के अत्याचारों से हुईं मौतों के खिलाफ भारत सरकार शून्य सहिष्णुता की नीति पर अडिग है, वहीं आतंकवाद और नक्सलवाद के प्रति भी उसकी ऐसी ही नीति है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के 26वें स्थापना दिवस पर शनिवार को यहां आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए शाह ने यह भी कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकारों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए जो मानक बनाये गये हैं, वह भारत जैसे देश के लिए पर्याप्त नहीं है.
शाह ने कहा, 'इनके बंधन और दायरों में रहकर अगर मानव अधिकार पर विचार करेंगे तो हम देश की समस्याओं को समाप्त करने में शायद ही सफल हो पाएंगे. हमें इनके दायरे से उठकर नये दृष्टिकोण से अपने देश की समस्याओं को समझना और उनका समाधान ढूंढना होगा.'
गृह मंत्री ने कहा, ''हमारा देश, हमारी संस्कृति और समाज हमेशा से संकुचित सोच से कहीं ऊपर 'वसुधैव कुटुंबकम' की सोच रखता है क्योंकि जब आप सारी दुनिया को अपना परिवार समझते हैं तो वसुधैव कुटुंबकम में ही मानवाधिकार का दायित्व समाहित दिखाई पड़ता है.'
आतंकवाद से पीड़ित परिवार का उल्लेख करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि अकेले कश्मीर में पिछले 30 सालों से 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत आतंकवाद के कारण हुई है.
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उन्होंने कहा कि नक्सलवाद के चलते देश में कई जिले विकास से वंचित रह गये, कई लोगों की जानें गईं. क्या ये सब मानव अधिकारों का हनन नहीं है.
शाह ने कहा कि आजादी के 70 साल तक देश में पांच करोड़ लोगों के पास घर नहीं था. करोड़ों लोगों के घरों में बिजली नहीं थी. 50 करोड़ लोगों के पास स्वास्थ सुरक्षा नहीं थी और महिलाओं को शौचालय उपलब्ध नहीं थे. उन्होंने पूछा कि क्या ये सब लोगों के मानव अधिकार का हनन नहीं है.
गृह मंत्री ने कहा कि मानव अधिकार की रक्षा का दायित्व सरकार का है. भारत के संविधान में मानव अधिकारों की रक्षा समाहित है और सरकार इसे सुनिश्चित करने के लिए कटिबद्ध है.
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भारत के संविधान और उसके निर्माता की चर्चाओं में मानव अधिकारों की रक्षा को महत्व दिया और इसके लिए व्यवस्था को स्थापित किया, ऐसा किसी और देश के संविधान में नहीं पाया जाता.