हजारीबाग: झारखंड के हजारीबाग मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर बड़कागांव प्रखंड स्थित पंकरी बरवाडी में हर साल दो दिन तक होने वाली अद्भुत खगोलीय घटना इस साल फिर घटित हुई. पहली बार हजारीबाग के शुभाशीष दास ने दुनिया को बताया था कि यहां दो पत्थरों के बीच से सूर्य की बदलती करवट को देखा जा सकता है और समय का अंदाजा लगाया जा सकता है.
इसके बाद अंतरराष्ट्रीय खगोलविद यहां आए और इसके बारे में विस्तार से अध्ययन भी किया. इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पहचान भी दी गई. 23 सितंबर को सूर्योदय के अद्भुत नजारे को देखने के लिए खगोल प्रेमी समेत हजारों लोग यहां पहुंचते हैं. यह नजारा 2 मेगालिथ पत्थरों के बीच बने 'V' आकार के खड्डे में दिखाई पड़ता है.
देखा जाए तो यह खगोलशास्त्रियों के लिए खुली वेधशाला है, जहां आकर वो रिसर्च कर सकते हैं. यहां के स्थानीय बताते हैं कि प्राचीन काल में आदिवासी समाज के लोग समय देखने के लिए और सूर्य के उत्तरायण से दक्षिणायन होने के लिए इस पत्थरों का उपयोग किया करते थे.
क्या है एक्विनोक्स
खगोल शास्त्र के अनुसार हर 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन रात बराबर होने के कारण सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर पड़ती हैं. इस कारण पृथ्वी पर दिन और रात बराबर होते हैं. 23 सितंबर को उत्तरी गोलार्द्ध में शरद ऋतु होती है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में वसंत ऋतु होती है.
पृथ्वी की घूर्णन के कारण दिन-रात और ऋतु का परिवर्तन होता है इस कारण 21 मार्च को दिन और रात बराबर होते हैं, इसलिए सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर करवट लेते दिखता है.
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खतरे में है मेगालिथ स्थल
इस ऐतिहासिक और भौगोलिक स्थल के आस-पास के क्षेत्रों में कोयला खदान है. जिसके कारण क्षेत्र के अस्तित्व पर खतरा मंडराता है. इसके साथ ही खुला क्षेत्र होने के कारण कई असामाजिक तत्व रात में दिखते हैं. यहां किसी भी तरह का संरक्षण क्षेत्र में देखने को नहीं मिल रहा है.
यहां तक की सरकारी पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि का भी ध्यान इस क्षेत्र पर नहीं है. कई अधिकारियों ने क्षेत्र का भ्रमण भी किया है और सिर्फ आश्वासन दिया, लेकिन क्षेत्र का संरक्षण अब तक नहीं हुआ है. जरूरत है कि इस क्षेत्र को संरक्षित किया जाए.