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नई शिक्षा नीति में भाषा संबंधी दिशानिर्देशों की आलोचना - all india parents association

ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने केंद्र सरकार की ओर से जारी नई शिक्षा नीति में भाषा संबंधी दिशानिर्देश की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा में बच्चों को पढ़ाने का फैसला विभेदकारी है.

आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल
आल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक अग्रवाल
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Published : Aug 1, 2020, 8:15 PM IST

नई दिल्ली: ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन (AIPA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वकील अशोक अग्रवाल ने केंद्र सरकार की ओर से जारी नई शिक्षा नीति में भाषा संबंधी दिशानिर्देश की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा में बच्चों को पढ़ाने का फैसला विभेदकारी है. उन्होंने कहा कि आज देश में अंग्रेजी भाषा दूसरे सभी भाषाओं पर राज कर रही है. ऐसे में बच्चे किस भाषा में शिक्षा ग्रहण करें. ये आजादी बच्चों के अभिभावकों पर छोड़ देना चाहिए.

'हाईकोर्ट ने हिंदी में दलील रखने की इजाजत नहीं दी थी'

अशोक अग्रवाल ने एक किस्सा बताते हुए कहा कि कुछ साल पहले करीब तीन हजार वकीलों ने दिल्ली हाईकोर्ट में पत्र लिखकर मांग की. कहा कि उन्हें हिंदी में भी दलीलें रखने की इजाजत दी जाए. उनका कहना था कि निचली अदालतों में काम करने वाले कई वकील हाईकोर्ट में हिंदी में अच्छी दलीलें पेश कर सकते हैं लेकिन हाईकोर्ट ने ये कहकर ये मांग खारिज कर दी कि कोर्ट की भाषा अंग्रेजी है. इसलिए हिंदी में दलीलें रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

नई शिक्षा नीति में भाषा संबंधी दिशानिर्देशों की आलोचना

'बहुराष्ट्रीय कंपनियां सरकारी स्कूलों के छात्रों का चयन नहीं करतीं'

अशोक अग्रवाल ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरियों में आवेदन करते समय एक कॉलम होता है कि अभ्यर्थी ने किस स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई की है. बहुराष्ट्रीय कंपनियां सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले अभ्यर्थियों का सेलेक्शन नहीं करती हैं. वे निजी स्कूलों में पढ़े अभ्यर्थियों का सेलेक्शन करती हैं जो अंग्रेजी मीडियम में पढ़े होते हैं.

उन्होंने कहा कि अगर अभिभावकों से पूछा जाए कि वे अपने बच्चे को किस मीडियम में पढ़ाना चाहेंगे, तो उनकी पहली पसंद अंग्रेजी मीडियम स्कूल ही होते हैं. ऐसे में प्राईमरी स्कूल के बच्चों को स्थानीय भाषा या अंग्रेजी भाषा में पढ़ने की आजादी अभिभावकों पर छोड़ना चाहिए. अगर सरकार ऐसा करती है तो ये वर्ग-विभेद होगा.

'शिक्षा नीति वर्ग विभेद पैदा करनेवाली है'

अशोक अग्रवाल ने कई राज्यों के स्कूलों का अपना अनुभव बताते हुए कहा कि स्थानीय भाषा भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है. सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे अंग्रेजी की बुनियादी चीजें नहीं समझ पाते हैं. कई स्कूलों में तो शिक्षकों को स्थानीय भाषा नहीं आती है.

उन्होंने कहा कि समाज में अंग्रेजी बोल लेने वाले को लोग काबिल समझते हैं. कोर्ट और सरकार की भाषा अंग्रेजी है. ऐसे में स्थानीय भाषा में पढ़नेवाले छात्रों का भविष्य कैसे संवर सकता है. वे प्रतियोगिता में पिछड़ जाएंगे. इसलिए बच्चों के अभिभावकों के ऊपर छोड़ देना चाहिए कि वे उन्हें किस मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं.

यह भी पढ़ें - आज से बदल जाएंगे यह नियम, जानें क्या होगा असर

नई दिल्ली: ऑल इंडिया पेरेंट्स एसोसिएशन (AIPA) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वकील अशोक अग्रवाल ने केंद्र सरकार की ओर से जारी नई शिक्षा नीति में भाषा संबंधी दिशानिर्देश की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि स्थानीय भाषा में बच्चों को पढ़ाने का फैसला विभेदकारी है. उन्होंने कहा कि आज देश में अंग्रेजी भाषा दूसरे सभी भाषाओं पर राज कर रही है. ऐसे में बच्चे किस भाषा में शिक्षा ग्रहण करें. ये आजादी बच्चों के अभिभावकों पर छोड़ देना चाहिए.

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अशोक अग्रवाल ने एक किस्सा बताते हुए कहा कि कुछ साल पहले करीब तीन हजार वकीलों ने दिल्ली हाईकोर्ट में पत्र लिखकर मांग की. कहा कि उन्हें हिंदी में भी दलीलें रखने की इजाजत दी जाए. उनका कहना था कि निचली अदालतों में काम करने वाले कई वकील हाईकोर्ट में हिंदी में अच्छी दलीलें पेश कर सकते हैं लेकिन हाईकोर्ट ने ये कहकर ये मांग खारिज कर दी कि कोर्ट की भाषा अंग्रेजी है. इसलिए हिंदी में दलीलें रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

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अशोक अग्रवाल ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरियों में आवेदन करते समय एक कॉलम होता है कि अभ्यर्थी ने किस स्कूल और कॉलेज से पढ़ाई की है. बहुराष्ट्रीय कंपनियां सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले अभ्यर्थियों का सेलेक्शन नहीं करती हैं. वे निजी स्कूलों में पढ़े अभ्यर्थियों का सेलेक्शन करती हैं जो अंग्रेजी मीडियम में पढ़े होते हैं.

उन्होंने कहा कि अगर अभिभावकों से पूछा जाए कि वे अपने बच्चे को किस मीडियम में पढ़ाना चाहेंगे, तो उनकी पहली पसंद अंग्रेजी मीडियम स्कूल ही होते हैं. ऐसे में प्राईमरी स्कूल के बच्चों को स्थानीय भाषा या अंग्रेजी भाषा में पढ़ने की आजादी अभिभावकों पर छोड़ना चाहिए. अगर सरकार ऐसा करती है तो ये वर्ग-विभेद होगा.

'शिक्षा नीति वर्ग विभेद पैदा करनेवाली है'

अशोक अग्रवाल ने कई राज्यों के स्कूलों का अपना अनुभव बताते हुए कहा कि स्थानीय भाषा भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है. सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे अंग्रेजी की बुनियादी चीजें नहीं समझ पाते हैं. कई स्कूलों में तो शिक्षकों को स्थानीय भाषा नहीं आती है.

उन्होंने कहा कि समाज में अंग्रेजी बोल लेने वाले को लोग काबिल समझते हैं. कोर्ट और सरकार की भाषा अंग्रेजी है. ऐसे में स्थानीय भाषा में पढ़नेवाले छात्रों का भविष्य कैसे संवर सकता है. वे प्रतियोगिता में पिछड़ जाएंगे. इसलिए बच्चों के अभिभावकों के ऊपर छोड़ देना चाहिए कि वे उन्हें किस मीडियम में पढ़ाना चाहते हैं.

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