नई दिल्ली : मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी को आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में पाकिस्तान की एक आतंक रोधी अदालत ने 15 साल जेल की सजा सुनाई. संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित लखवी (61) को पंजाब प्रांत के आतंकवाद रोधी विभाग (सीटीडी) ने दो जनवरी को गिरफ्तार किया था. पाकिस्तान की इस कार्रवाई को एफएटीएफ की काली सूची से खुद को बाहर रखने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सुशांत सरीन ने कहा कि पाकिस्तान जो कर रहा है उसकी सराहना करने की जरूरत नहीं है. पाकिस्तान के कृत्यों के प्रति हमें सावधानी बरतनी होगी. इसके कृत्यों से हमें शंका होनी चाहिए.
सबसे पहले तो इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि एफएटीफ की कार्रवाई कुछ ही दिन में फिर शुरू होगी. इसके ठीक पहले पाकिस्तान से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की खबरें आती हैं. यह सामान्य नहीं हैं. पाकिस्तान अचानक से आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, जो उसकी फितरत में नहीं है.
साफ तौर पर जाहिर है कि यह कार्रवाई एफएटीफ को ध्यान में रख कर की जा रही है. फरवरी माह के पहले या दूसरे सप्ताह में एफएटीफ की बैठक होगी और पाकिस्तान यह दिखाना चाहता है कि वह आतंकियों पर नकेल कस रहा है. उसका उद्देश्य आतंक को जड़ से मिटाना है ही नहीं. सिर्फ एफएटीएफ को संतुष्ट करने के लिए पाकिस्तान ऐसा कर रहा है.
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स- वैश्विक आतंकी वित्तपोषण के खिलाफ कार्य करने वाले संगठन ने अक्टूबर 2020 में तीन दिवसीय बैठक के बाद पाकिस्तान को 'ग्रे' सूची से बाहर नहीं करने का फैसला किया था. इसके साथ ही उसने पाकिस्तान से फरवरी 2021 तक उसके एक्शन प्लान को पूरा करने का आदेश दिया था.
बैठक के दौरान एफएटीएफ ने दोहराया था कि यदि पाकिस्तान फरवरी 2021 तक एक्शन प्लान को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा.
सरीन ने कहा कि इन दो मामलों की तरह कई मामले हैं. ये सभी कुख्यात आतंकवादी, जिन्हें पाकिस्तान ने हमेशा नकारा है, आतंकवाद में शामिल रहे हैं. उनपर अब आतंकवाद के आरोपों के तहत नहीं बल्कि आतंकी वित्तपोषण के आरोपों के तहत कार्रवाई की जा रही है.
यह उन आतंकवादियों को बचाने का तरीका है. क्योंकि आतंकवाद में शामिल लोगों को मौत की सजा होती है. यह एक तीर से दो निशाने भेदने की तरह है. पाकिस्तान एफएटीएफ को भी खुश कर दे रहा और मसूद अजहर व जकी-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकियों को बचा भी ले रहा.
इससे पहले गुरुवार को पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक अदालत ने जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ आतंकी वित्तपोषण मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किया था. पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक अदालत गुजरांवाला की न्यायाधीश नताशा सुप्रा ने सीटीडी इंस्पेक्टर के अनुरोध पर अजहर के खिलाफ वारंट जारी किया था. अदालत ने अजहर को गिरफ्तार कर आठ जनवरी को अदालत के समक्ष पेश करने का आदेश दिया था. दो जनवरी को जकी-उर-रहमान लखवी को इसी तरह के मामले में गिरफ्तार किया गया था.
सरीन ने आगे रेखांकित किया कि पाकिस्तान द्वारा सबसे नापाक प्रयास यह है कि ये सजाएं आतंकवाद निरोधक अदालत द्वारा सुनाई गई हैं, जो निचली अदालत या ट्रायल कोर्ट है. आदेश को उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है.
उन्होंने बताया कि 'हम में से कोई भी नहीं जानता कि मामलों में कितनी अच्छी दलील दी गई है. इससे मौत की सजा को लेकर संदेह और बढ़ जाता है. संभव है कि पाकिस्तान ने सिर्फ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संतुष्ट करने के लिए यह सब किया है. जैसे ही फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी वह उसे खारिज करके आतंकियों को रिहा कर देगी. इस तरह से पाकिस्तानी न्यायपालिका के सहारे आतंकवादियों को बचाया जा रहा है.'
26/11 मुंबई हमले का मास्टरमाइंड जकी-उर रहमान लखवी 2015 से ही जमानत पर था. उसे आतंकवाद निरोधक विभाग (सीटीडी) ने गिरफ्तार किया था. लश्कर-ए-तैयबा और अल-कायदा से जुड़े होने तथा आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त रहने के कारण 61 वर्षीय लखवी को संयुक्त राष्ट्र ने दिसंबर 2018 में आतंकवादी घोषित किया था.
लाहौर की आतंक रोधी अदालत (एटीसी) ने सीटीडी द्वारा दर्ज आतंकवाद के वित्तपोषण के मामले में लखवी को आतंक रोधी कानून 1997 की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 15 साल जेल की सजा सुनाई है.
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बीते 70 वर्षों से पाकिस्तान ने आतंकवादियों पनाह दी है. दुनियाभर में आतंक फैलाने में मदद करने के लिए पाकिस्तान ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सही ही कहा है कि पाकिस्तान आतंकवाद के मुकुट को गर्व से पहनता है.