नई दिल्ली : बांग्लादेश से सीमेंट लादकर चला जहाज शनिवार को त्रिपुरा के सिपाहीजाला जिले के सोनमुरा पर पहुंचा. यह जहाज राज्य के व्यापार इतिहास में अंतरदेशीय जलमार्ग की एक नई सुबह लेकर आया है. उम्मीदों और आशाओं के साथ-साथ हालांकि इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर सवाल भी मंडरा रहे हैं कि यह त्रिपुरा के साथ कुल मिलाकर भारत के व्यापार की संभावनाओं को किस तरह से बढ़ावा देगा?
क्षमता बढ़ाने के लिए नदी की गाद को साफ करना जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-बांग्लादेश के बीच नया प्रोटोकोल मार्ग शुरू होने से त्रिपुरा को आर्थिक रूप से लाभ होने की उम्मीद है, क्योंकि निर्यातकों के बढ़ने की संभावना है. दिल्ली स्थिति ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन नाम के विचार मंच में बांग्लादेश मामलों की विशेषज्ञ जोयिता भट्टाचार्जी ने ईटीवी भारत से कहा कि भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग की शुरुआत एक स्वागत करने वाला कदम है. इसने आशुगंज के लिए एक अलग से संपर्क मार्ग सृजित किया है, जिसे भारत और बांग्लादेश के बीच अंतरदेशीय जल संपर्क में एक महत्वपूर्ण बिंदु माना जाता है.
त्रिपुरा को आर्थिक रूप से लाभ होने की उम्मीद है, क्योंकि निर्यातकों के बढ़ने की संभावना है. इसके साथ यह पारगमन शुल्क से भी पैसा कमा सकता है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के मुंशीगंज बंदरगाह से सीमेंट की खेप लेकर शनिवार को एक बड़ा मालवाहक पोत त्रिपुरा के सिपाहीजला जिले के सोनमुरा बंदरगाह पर पहुंचा, लेकिन नदी में बहुत अधिक गाद की वजह से इसका संचालन साल में केवल चार महीने ही हो पाएगा. इसलिए यह सभी मौसमों में इस्तेमाल किया जाने वाला मार्ग नहीं हो सकता है. उन्होंने सुझाव के रूप में कहा कि इसी वजह से इसकी पूरी क्षमता का लाभ उठाने के लिए इसे मौसम के अनुकूल बनाने की जरूरत है. इसकी नौवहन क्षमता बढ़ाने के लिए नदी की गाद को साफ करने (ड्रेजिंग ) की आवश्यकता होगी. जोयिता ने आगे कहा कि अगर माल को जलमार्ग के माध्यम से लाया या ले जाया जाता है, तो परिवहन लागत करीब 25 से 30 फीसद तक बच जाएगी. यह पूर्वोत्तर के राज्यों में माल को पहुंचाने या वहां से लाने में होने वाले खर्च को कम करेगा.
निश्चितरूप से होगी व्यापार में बढ़ोतरी
ढाका में इसी साल मई में बांग्लादेश में भारतीय उच्चायुक्त रीवा गांगुली दास और बांग्लादेश के जहाजरानी सचिव मोहम्मद मेसबुदउद्दीन चौधरी के हस्ताक्षर से सोनमुरा (त्रिपुरा) - दाउकंडी (बांग्लादेश ) मार्ग को भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल (आईबीपी) मार्गों में शामिल किया गया था. त्रिपुरा की सत्तासीन भाजपा-आईपीएफटी की सरकार ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए प्रवेश द्वार के तौर पर बताया था. बांग्लादेश के अधिकारियों की ओर से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार सोनमुरा- दाउदकंडी प्रोटोकॉल मार्ग के 90 किलोमीटर में से 89.5 किलोमीटर बांग्लादेश में पड़ता है और शेष 500 मीटर भारत में है.
एमपी-आईडीएसए की शोध फेलो और विशेष रूप से दक्षिण एशिया मामलों की विशेषज्ञ स्मृति एस पटनाइक ने ईटीवी भारत को बताया कि अंतरदेशीय जल व्यापार और पारगमन (पीआईडब्ल्यूटीटी) के लिए प्रोटोकॉल पर 1972 में ही हस्ताक्षर किए गए थे. इस नए मार्ग से माल परिवहन के लिए एक सस्ता रास्ता उपलब्ध होने की उम्मीद है, जिससे परिवहन लागत तो करीब 30 फीसद कम होगी ही, परिवहन में लगने वाला समय भी घटकर आधा हो जाएगा. वह कहती हैं कि इसमें विदेशी व्यापार व द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने की क्षमता है, क्योंकि यह नदी का रास्ता है और पूर्वोत्तर के कठिन भू-भाग से बचाता है, जिससे माल लाने और पहुंचाने में कुछ दिन लग जाते हैं. तीसरी बात कि यह कुछ हद तक व्यापार को बढ़ाने में भी मदद करेगा. मैं मानती हूं कि अंतरदेशीय जलमार्ग का अधिकतम उपयोग करने से निश्चित रूप से व्यापार में बढ़ोतरी होगी और स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा. विशेष रूप से माल लादने और उतारने और माल को ढोने का काम करने वाले लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे. यह बहुरूपात्मक परिवहन (मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट ) बनने जा रहा है.
एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण साझीदार
जलीय व्यापार मार्ग के हिस्से के रूप में जहाज त्रिपुरा की सबसे लंबी गोमती नदी से होकर गुजरेंगे. यह बांग्लादेश में मेघना नदी में मिलने से पहले त्रिपुरा के कई जिलों से होकर गुजरती है. सोनमुरा में माल को चढ़ाने और उतारने के लिए एक स्थायी जेट्टी का निर्माण किया जाना है. फिलहाल वहां एक अस्थायी फ्लोटिंग जेट्टी है. जोयिता भट्टाचार्जी ने उल्लेख किया कि एक्ट ईस्ट पॉलिसी में बांग्लादेश एक महत्वपूर्ण साझीदार है और इस नीति के तहत कनेक्टिविटी पर जोर दिया गया है. कनेक्टिविटी को मजबूत करने में कोई भी प्रयास एक्ट ईस्ट पॉलिसी (एईपी) को मजबूती देता है. अंतरदेशीय जलमार्ग का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह संचार साधन पर्यावरण के अनुकूल है. पूर्वोत्तर क्षेत्र की संवेदनशीलता को देखते हुए इस तरह के कदम आर्थिक विकास को पर्यावरण से संवेदनशील तरीके से तालमेल बैठाने में मददगार हैं.
यदि सही ढंग से इसे लागू किया जाए तो सड़कों पर दबाव कम करने की दिशा में यह लंबा रास्ता तय कर सकता है. हालांकि, अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि त्रिपुरा की सीमाएं बांग्लादेश से लगती हैं और यह अपने उत्तर, दक्षिण और पश्चिम से बांग्लादेश से घिरा हुआ है. इसकी अंतरराष्ट्रीय सीमा 856 किलोमीटर लंबी है ( जो इसकी कुल सीमा का 84 फीसद ) है. त्रिपुरा और बांग्लादेश के बीच आधिकारिक रूप से 1995-96 में व्यापार की शुरुआत हुई थी. वर्ष 1995- 96 के दौरान करीब 4.12 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था, जो वर्ष 2018-19 के दौरान कई गुना बढ़कर करीब 537.08 करोड़ रुपये हो गया. इसके अलावा 2016-17 के दौरान करीब 366 करोड़ रुपये की 66.3 करोड़ यूनिट बिजली बांग्लादेश को निर्यात की गई.
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विदेश मंत्रियों की इसी महीने में होनी है वर्चुअल मीटिंग
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और बांग्लादेश के उनके समकक्ष ए अब्दुल मोमिन के बीच इसी महीने में एक वर्चुअल मीटिंग होनी है. नई दिल्ली और ढाका अपने द्विपक्षीय संबंधों को आगे ले जाने और इसमें किसी तीसरे देश को शामिल नहीं करने पर विचार कर रहे हैं. जेसीसी भारत और बांग्लादेश के बीच द्विपक्षीय तंत्र का सबसे बेहतरीन स्वरूप है, जिसकी अध्यक्षता दोनों देशों के विदेश मंत्री मिलकर करते हैं और व्यापार से लेकर सुरक्षा सहयोग तक के सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं.