हैदराबाद : कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है. पाकिस्तान की सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की थी. हालांकि भारतीय सेना ने पाकिस्तान की नापाक इरादों को धवस्त करते हुए उसे पीछे खदेड़ दिया. आखिरकार पाकिस्तान ने ऐसी हिमाकत कैसी की. किसने इसकी योजना बनाई और कैसे उसने भारत की सरजमीं पर धावा बोलने की जुर्रत की.
चार पाकिस्तानी जनरल ने मिलकर बनाई थी पूरी योजना
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान, एक्स कॉर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल महमूद और कमांडर फोर्स कमांड नॉर्दर्न एरियाज के मेजर जनरल जावेद हसन ने पूरी गोपनीयता के साथ ऑपरेशन की योजना बनाई.
योजना का रणनीतिक उद्देश्य
- भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी और अब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी किताब 'ए रिज टू फार' में लिखा है कि 1980 के दशक में पाकिस्तान के दिमाग में यह 'वार गेम' का विचार आया था.
- कारगिल ऑपरेशन की योजना पाक सेना ने पहले 1980 के दशक में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जिया को और फिर 1990 के दशक में पाकिस्तानी पीएम बेनजीर भुट्टो को बताया था, लेकिन उन्होंने इसे बहुत खतरनाक मानते हुए इस युद्ध से इनकार कर दिया.
- अमरिंदर ने कहा कि भारत के 1986 में 'ऑपरेशन ब्रास्टैक्स' आयोजित करने के बाद पाकिस्तानी सेना ने भारत पर आक्रमण करने की विभिन्न संभावनाओं को देखते हुए ऑपरेशन टुपैक नामक युद्ध की योजना बनाई.
- लगभग एक दशक बाद जब 1998 में जनरल परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बन गए. इसके बाद उन्होंने ऑपरेशन 'टुपैक' को अपनाया और इसे लागू करने का फैसला किया.
- पाकिस्तान को लगा कि घाटी में उसके नापाक मंसूबे कामयाब नहीं हो रहे हैं. तो, पाकिस्तान ने फिर से ऑपरेशन टुपैक में परिवर्तन किए और जनरल मुशर्रफ के सेनाध्यक्ष बनने पर ऑपरेशन बद्र के रूप में फिर से शुरू किया.
तीन संभावित राजनीतिक उद्देश्य
- भारत के राजनीतिक परिदृश्य को 1999 की शुरुआत में अस्थिर माना जाता था और यह माना गया कि भारत की तरफ से एक बड़ी प्रतिक्रिया असंभव होगी.
- पाकिस्तान एक ऐसी स्थिति का निर्माण करना चाहता था जो, एलओसी के पार कब्जे के बाद भारतीय से बातचीत करने में सक्षम बनाती.
- एक सैन्य अभियान शुरू करके कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का अवसर तैयार किया गया था.
परमाणु पृष्ठभूमि
उस दौरान दोनों देशों ने हथियारों का परीक्षण किया था. पाकिस्तान ने सोचा था कि इससे कम से कम जोखिम के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय हस्तक्षेप करेगा, उस समय तक पाकिस्तान अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर लेगा.
युद्ध का सैन्य उद्देश्य
- पाकिस्तान ने उन क्षेत्रों में ऑपरेशन शुरू करने का लक्ष्य रखा, जहां उसे कम से कम प्रतिरोध और न्यूनतम प्रतिक्रिया का सामना करना पड़े.
- रणनीतिक और क्षेत्रीय लाभ के लिए एलओसी की स्थिति को बदलना, साथ ही घाटी में उग्रवाद को पुनर्जीवित करना और लद्दाख को श्रीनगर से अलग करना.
- पाकिस्तानी सेना लेह में स्थित भारतीय सैनिकों की एनएच -1 को ब्लाक कर देगी. घबराया हुआ भारत फिर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर रुख करेगा. इससे कश्मीर पर बातचीत हो सकती है, या कम से कम भारत को सियाचिन ग्लेशियर को खाली करना होगा, जो उसने 1984 में कब्जा कर लिया था.
हालांकि पाकिस्तान ने भारत को परास्त करने की योजना बनाई थी लेकिन भारत के वीर जवानों ने उसकी सभी योजनाओं पर पानी फेर दिया.