75 वर्ष पहले 16 जुलाई, 1945 को अमेरिका ने दुनिया के पहले परमाणु बम का सफल परीक्षण किया गया था. इसे मैनहटन प्रोजेक्ट का नाम दिया गया था. इस परीक्षण को न्यू मेक्सिको में अंजाम दिया गया था. हालांकि इस विनाशकारी शक्ति का दुनिया को जल्द ही एहसास हुआ, जब द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने अगले ही माह दो जापानी शहरों- हिरोशिमा (छह अगस्त, 1945) और नागासाकी (नौ अगस्त, 1945) पर इस शक्ति का उपयोग किया. उसका परिणाम जापान आज भी भुगत रहा है. हालांकि इसके बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध का अंत भी हो गया.
अमेरिका इस परमाणु बम को बनाने का प्रयास 1939 से कर रहा था. यह सफल परीक्षण द्वितीय विश्व युद्ध की निमित्त था. 1939 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट को एक पत्र लिखा था.
बता दें कि इस परमाणु बम का परीक्षण 16 जुलाई की सुबह न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान में किया गया था, जहां पहला परमाणु बम फोड़ा गया और इसकी ताकत का आंकलन किया गया.
16 जुलाई को अमेरिका ने मानव सभ्यता में किसी भी हथियार से बेजोड़ विनाश शक्ति के साथ मानव जाति के लिए पहले से अज्ञात विनाशकारी हथियार का परीक्षण किया.
मैनहटन प्रोजेक्ट कैसे शुरू हुआ
1939 में राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूजवेल्ट ने एक तात्कालिक संदेश के साथ भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन का एक पत्र प्राप्त किया. भौतिकविदों ने हाल ही में पाया था कि यूरेनियम भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है. शायद इतनी ऊर्जा, जितनी एक बम के लिए आवश्यक होती है. आइंस्टीन को संदेह था कि हिटलर पहले से ही इस तत्व को स्टॉक करने का काम कर सकता है.
अमेरिका द्वारा 16 जुलाई 1945 को तड़के चार बजे परीक्षण किया जाना था, लेकिन आकाशीय बिजली के कारण इसे स्थगित करना पड़ा. जिसके बाद 5 बजकर 30 मिनट पर प्लूटोनियम वाले Gadget को एक टावर पर रखा गया, जिसके बाद परीक्षण को पूरा किया गया. इस परीक्षण को द गैजेट के नाम से भी जाना जाता है, जिसे आगे चलकर फैटमैन के नाम से भी जाना गया.
परियोजना की लागत
परियोजना के लिए मूल बजट छह हजार आमेरिकी डॉलर था, लेकिन अमेरिका ने जब 1941 में द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने का फैसला किया तो इसके बाद धन पर सभी सीमाएं हटा दी गईं. परियोजना की अनुमानित लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर बताई गई.
परमाणु युग
अमेरिका द्वारा परमाणु उपकरण विकसित करने के बाद दुनिया के अन्य देश भी परमाणु सम्पन्न बनने के लिए परीक्षण करने लगे. भारत, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया और इजराइल तथा अन्य देश भी इस क्लब में शामिल हो गए.
देश | प्रथम परमाणु परीक्षण | कुल परमाणु हथियार | कुल परमाणु परीक्षण | |||
अमेरिका | 1945/07/16 | 5,800 | 1,030 | |||
रूस | अगस्त, 1949 | 6,375 | 715 | |||
यूके | अक्टूबर, 1962 | 215 | 45 | |||
फ्रांस | फरवरी, 1960 | 290 | 210 | |||
चीन | अक्टूबर, 1964 | 320 | 45 | |||
भारत | मई, 1974 | 150 | 3 | |||
पाकिस्तान | मई, 1998 | 160 | 3 | |||
उत्तर कोरिया | अक्टूबर, 2006 | 90 | 6 | |||
इजराइल | 90 |
परीक्षण का स्थान
सुपर शक्तियों द्वारा परमाणु बम परीक्षणों का स्थान भी एक विवादित पहलू था.
परमाणु परीक्षण कार्यक्रम
16 जुलाई 1945 : अमेरीका ने न्यू मेक्सिको के रेगिस्तान के अलामागोर्दो नामक जगह में पहले परमाणु बम का विस्फोट किया. ट्रिनिटी टेस्ट कहे जाने वाले इस परीक्षण से हाइड्रोजन बमों की ताकत की पुष्टि हुई. तीन सप्ताह बाद हिरोशिमा और नागासाकी पर ये बम गिराए गए.
1949 : तत्कालीन सोवियत संघ ने पहली बार परमाणु बम का परीक्षण किया था. इसका कोड नेम फस्ट लाइटनिंग था. इसे कजाखस्तान में सेमिपलाजिंस्क में रिमोट के जरिए टेस्ट किया गया.
1952 : प्रशांत महासागर में क्रिसमस द्वीप के ऊपर परमाणु बम फोड़ कर ब्रिटेन ने परमाणु क्लब के दरवाजे पर दस्तक दी. द्वीप पर मौजूद अनेक ब्रितानी सैनिकों ने आरोप लगाया कि उन्हें रक्षात्मक पोशाक नहीं दी गई थी और इसलिए परमाणु विकिरण से उनका स्वास्थ्य प्रभावित हुआ.
1960 : फ्रांस ने प्रशांत महासागर के टुआमोतो द्वीप समूह में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया.
1963 : अमेरीका और सोवियत संघ ने लिमिटेड टेस्ट बैन ट्रीटी नामक एक संधि पर हस्ताक्षर किए. इसमें खुले वातावरण में या समुद्र में परमाणु परीक्षणों की मनाही है. अब तक 100 से अधिक देश संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं.
1964 : चीन ने सिंक्यांग प्रांत के लोप नॉर रेगिस्तान में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया.
1974 : भारत ने पहला भूमिगत सर्वेक्षण किया.
1985 : सोवियत संघ ने परमाणु परीक्षणों पर रोक की घोषणा की.
1995 : अंतरराष्ट्रीय निंदा के बावजूद फ्रांस ने प्रशांत महासागर में मुरुरोआ में अपने परीक्षण किए.
मई 1998 : भारत ने राजस्थान में पोखरन में पांच परमाणु बम फोड़े. पाकिस्तान ने भी कुछ ही दिन बाद चगाई पहाड़ियों में तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण किए.
पर्यावरणीय प्रभाव
- इन परीक्षणों के दीर्घकालिक दुष्परिणाम पर्यावरणीय क्षति, भूकंप, सुनामी और अन्य भूवैज्ञानिक व हाइड्रोलॉजिकल प्रभावों के रूप में दिखाई पड़े हैं.
- परमाणु परीक्षणों के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं, जो सीमाओं से परे जाते हैं. कई दशकों में किए गए परमाणु परीक्षणों के परिणामस्वरूप, पर्याप्त मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्रियां (जैसे आयोडीन-133, स्ट्रोंटियम-90 और सीजियम-133) वायुमंडल, मिट्टी और पानी में पाई गईं.
- 1960 और 1970 के दशक में पोलिनेशिया में फ्रांसीसी परमाणु परीक्षण से सिगारू समुद्री भोजन विषाक्तता के मामलों में वृद्धि हुई. अमेरिका के नेवादा राज्य में परीक्षण स्थल के आसपास रहने वाले परिवारों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि वहां लोगों में लिम्फोमा, थायराइड कैंसर, स्तन कैंसर, मेलेनोमा, हड्डी के कैंसर और मस्तिष्क के ट्यूमर के मामलों में वृद्धि हुई.
- प्रशांत महासागर के अधिकतर छोटे द्वीपों में, जहां परमाणु परीक्षण किए गए थे, रहने वालों लोगों को अतत: यहां से जाना पड़ा. परीक्षण का स्थानीय धरोहरों पर प्रभाव विनाशकारी रहा है.
- इससे मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
परमाणु संघर्ष
1962 : क्यूबा मिसाइल संकट
शीतयुद्ध के दौरान सीआईए की मदद से 1961 में क्यूबा में फीदेल कास्त्रो को उखाड़ने के लिए विद्रोहियों के एक बड़े समूह ने समुद्री रास्ते (बे ऑफ पिग्स) से हमला किया, लेकिन कास्त्रो ने इसे नाकाम कर दिया. जवाब में कास्त्रो ने सोवियत परमाणु मिसाइलों को अपने यहां तैनात करना शुरू कर दिया.
क्यूबा अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा से मात्र 180 किमी दूर है. अक्टूबर, 1962 में अमेरिका ने और मिसाइलों को आने से रोकने के लिए क्यूबा की नौसेनिक नाकाबंदी कर दी. दो सप्ताह चले इस तनाव के दौरान अमेरिकी जहाजों से घिरी परमाणु हथियारो से लैस एक सोवियत पनडुब्बी बी-59 का संपर्क बाकी दुनिया के कट गया और उसका कमांडर परमाणु बम से लैस टारपीडो दागने वाला था. उसे लगा कि युद्ध शुरू हो चुका है और परमाणु हमले के सिवा कोई विकल्प नहीं. इस दौरान क्यूबा ने एक अमेरिकी टोही विमान को मार गिराया. अमेरिका ने भी एफ-102 ए विमान उड़ाए, जो परमाणु मिसाइलों से लैस थे. माना गया कि इस दौरान एक भी कदम आगे बढ़ने से परमाणु युद्ध छिड़ सकता था. आखिर सोवियत संघ पीछे हटने को तैयार हो गया. बदले में अमेरिका ने कभी भी क्यूबा पर हमला न करने का वादा किया.
1983 : एक सोवियत जनरल ने दुनिया को न्यूक्लियर आर्मगेडन से बचाया
तत्कालीन सोवियत संघ की आरंभिक चेतावनी प्रणाली ने अमेरिका से मिसाइल हमले की पहचान की. कंप्यूटर गणना के नतीजों से पता चला कि कई मिसाइलें छोड़ी गई हैं. ऐसे में सोवियत रूस की सेना का प्रोटोकॉल था कि जवाबी हमले में उसकी तरफ से परमाणु हमला किया जाए. लेकिन उस समय ड्यूटी पर मौजूद अधिकारी स्टानिस्लाव पेत्रोव ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस अलर्ट की सूचना न देने का फैसला लिया. उन्होंने उसे मिथ्या अलार्म बताकर खारिज कर दिया. यह उनको मिले निर्देशों का उल्लंघन था यानी कर्तव्य की अवहेलना. उनके लिए सुरक्षित तरीका था कि जिम्मेदारी दूसरों पर डाल दो. पेत्रोव का काम शत्रु की तरफ से किसी मिसाइल हमले के बारे में समय रहते जानकारी हासिल कर वरिष्ठ अधिकारियों को देना था, लेकिन शायद उनके इस निर्णय ने दुनिया को बचा लिया.
परमाणु अप्रसार पर महत्वपूर्ण मील के पत्थर
इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) 1957 में न्यूक्लियर तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और निगरानी करने के लिए बनाई गई थी.
5 अगस्त, 1963 : संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और ग्रेट ब्रिटेन के प्रतिनिधियों ने सीमित परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर किए. इस संधि के अनुसार परमाणु परिक्षण को अंतरिक्ष, पानी के भीतर या वायुमंडल में नहीं किया जा सकता. इस संधि पर जॉन एफ. कैनेडी ने अपनी हत्या से तीन महीने पहले हस्ताक्षर किए थे. परमाणु हथियारों के नियंत्रण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम था.
26 मई, 1972 : अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड एम. निक्सन और सोवियत नेता लियोनिद ब्रेजनेव ने शीत युद्ध के दौरान अपने परमाणु शस्त्रागार को सीमित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच पहला समझौता और अंतरिम सामरिक शस्त्र सीमा समझौता वार्ता (SALT I) पर हस्ताक्षर किए.
1996 : संयुक्त राष्ट्र महासभा ने किसी भी परमाणु हथियार परीक्षण विस्फोट या किसी अन्य परमाणु विस्फोट पर रोक लगाते हुए व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि को अपनाया.
7 जुलाई, 2017 : संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन ने परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि को अपनाया. परमाणु हथियारों को व्यापक रूप से प्रतिबंधित करने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय संधि में परमाणु हथियार विकास, अधिग्रहण, परीक्षण, उपयोग और धमकी पर प्रतिबंध लगाया गया. यद्यपि राज्यों के पास कोई भी परमाणु हथियार नहीं है, जिन्होंने संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. संधि का मार्ग निरस्त्रीकरण की राजनीति में एक महत्वपूर्ण विकास है.
एनडब्ल्यूएस (परमाणु हथियार राज्यों) ने 2018 तक शीतयुद्ध की ऊंचाई पर लगभग 70,200 वॉरहेड से अपने परमाणु शस्त्रों के आकार को लगभग 14,200 तक कम कर दिया. यह कटौती कम से कम चार एनडब्ल्यूएस में, साथ ही द्विपक्षीय के माध्यम से एकतरफा रूप से की गई हैं.