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मिल गई 1971 की आपदा में दुर्मीताल में दबी नाव, जानें इतिहास

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Published : Aug 20, 2020, 1:31 PM IST

साल 1971 की प्राकृतिक आपदा में दुर्मीताल के मलबे में दबी नाव को निजमुला गांव के लोगों ने करीब 5 फीट की खुदाई के बाद ढूंढ निकाला है. निजमूला घाटी में स्थित दुर्मीताल को ग्रामीण एक बार फिर संवारना चाहते हैं और विश्व पर्यटन के नक्शे पर लाने के लिए प्रयासरत हैं.

Chamoli boat
खुदाई में निकली अंग्रेजों के जमाने की नाव.

देहरादून : देवभूमि ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है. उत्तराखंड के चमोली जनपद में साल 1971 की प्राकृतिक आपदा में दुर्मीताल के मलबे में दबी नाव को निजमुला गांव के लोगों ने ढूंढ निकाला, जिसे देख लोग हैरान हैं. क्षेत्र के बुजुर्ग लोग इस नाव को ब्रिटिश काल की बता रहे हैं. बता दें, दुर्मीताल चमोली जिले की निजमूला घाटी में स्थित है.

ईराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी बताते हैं कि अंग्रेजी शासन काल तक दुर्मी की प्राकृतिक झील (ताल) अपने सौंदर्य के लिए बेमिसाल थी. अंग्रेज इस जगह पर नौका विहार करते थे. अंग्रेजी शासन के बाद गांव, सरोवर और यहां का पर्यटन उपेक्षित हो गया. इस बीच 1971 में आई प्राकृतिक आपदा में यह ताल क्षतिग्रस्त हो गया था.

खुदाई में निकली अंग्रेजों के जमाने की नाव.

उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल की एक नाव जो उनके राज के खत्म होने पर यहीं रह गई थी, साल 1971 की आपदा में झील के क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद यहां दब गई थी. उस नाव को क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुभव और दिशा निर्देश पर उत्साही लोगों ने ढूंढ निकाला है.

गांव के 80 साल के बुजुर्ग नारायण सिंह बताते हैं कि दुर्मीताल लगभग 5 किलोमीटर लंबा था, जिसमें बहुत सारी नावें चलती थीं. हजारों पर्यटक नौकायन करते थे. साथ ही उन्होंने बताया कि यहां पर एक नाव घर था, जिसमें बहुत सारी नावें रखी हुईं थीं, जो साल 1971 की बाढ़ में डूब गई थीं. खुदाई में निकली नाव को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.

कोरोना काल में पर्यटन बुरी तरह प्रभावित होने के बाद दुर्मीताल को दोबारा सजाने-संवारने के लिए स्थानीय ग्रामीण खुद आगे आए हैं. यहां पाणा, झींझी, ईरानी, पगना, दुर्मी, थोलि, ब्यारा गौना और निजमूला समेत कई गावों के लोग दुर्मीताल को संवारने में जुटे हैं, ताकि दुर्मीताल को एक बार फिस से नई पहचान दिलाई जा सके.

पढ़ें : लॉकडाउन में बोट क्लिनिक लोगों की कर रहा सेवा

देहरादून : देवभूमि ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना है. उत्तराखंड के चमोली जनपद में साल 1971 की प्राकृतिक आपदा में दुर्मीताल के मलबे में दबी नाव को निजमुला गांव के लोगों ने ढूंढ निकाला, जिसे देख लोग हैरान हैं. क्षेत्र के बुजुर्ग लोग इस नाव को ब्रिटिश काल की बता रहे हैं. बता दें, दुर्मीताल चमोली जिले की निजमूला घाटी में स्थित है.

ईराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी बताते हैं कि अंग्रेजी शासन काल तक दुर्मी की प्राकृतिक झील (ताल) अपने सौंदर्य के लिए बेमिसाल थी. अंग्रेज इस जगह पर नौका विहार करते थे. अंग्रेजी शासन के बाद गांव, सरोवर और यहां का पर्यटन उपेक्षित हो गया. इस बीच 1971 में आई प्राकृतिक आपदा में यह ताल क्षतिग्रस्त हो गया था.

खुदाई में निकली अंग्रेजों के जमाने की नाव.

उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल की एक नाव जो उनके राज के खत्म होने पर यहीं रह गई थी, साल 1971 की आपदा में झील के क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद यहां दब गई थी. उस नाव को क्षेत्र के बुजुर्गों के अनुभव और दिशा निर्देश पर उत्साही लोगों ने ढूंढ निकाला है.

गांव के 80 साल के बुजुर्ग नारायण सिंह बताते हैं कि दुर्मीताल लगभग 5 किलोमीटर लंबा था, जिसमें बहुत सारी नावें चलती थीं. हजारों पर्यटक नौकायन करते थे. साथ ही उन्होंने बताया कि यहां पर एक नाव घर था, जिसमें बहुत सारी नावें रखी हुईं थीं, जो साल 1971 की बाढ़ में डूब गई थीं. खुदाई में निकली नाव को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.

कोरोना काल में पर्यटन बुरी तरह प्रभावित होने के बाद दुर्मीताल को दोबारा सजाने-संवारने के लिए स्थानीय ग्रामीण खुद आगे आए हैं. यहां पाणा, झींझी, ईरानी, पगना, दुर्मी, थोलि, ब्यारा गौना और निजमूला समेत कई गावों के लोग दुर्मीताल को संवारने में जुटे हैं, ताकि दुर्मीताल को एक बार फिस से नई पहचान दिलाई जा सके.

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