वाराणसी : कोरोना महामारी के संक्रमण के बीच काशी का सुप्रसिद्ध 'भरत मिलाप' सम्पन्न हुआ. 'भरत मिलाप' का दृश्य देखकर भक्त हर्षित हुए. वैश्विक महामारी के कारण इस बार काशी में होने वाले भरत मिलाप में अधिक भीड़ की अनुमति नहीं दी गई, इसलिए कुछ लोगों के साथ भरत मिलाप का मंचन सम्पन्न हुआ.
475 साल पुरानी परंपरा
विजया दशमी के दूसरे दिन नाटी इमली इलाके में गोधूलि बेला में सूर्यास्त के पहले होने वाला विश्व विख्यात 'भरत मिलाप' का मंचन किया जाता है. बताया जाता है कि यह 475 साल पुरानी परंपरा है. 5 मिनट की इस लीला को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहते हैं. लोगों की मान्यता है कि भरत मिलाप के दौरान कुछ क्षणों के लिए भगवान के दर्शन होते हैं.
मेघा भगत जी ने रखी थी रामलीला की आधारशीला
वाराणसी में इस आयोजन को लक्खा मेले के नाम से जाना जाता है. इसकी शुरुआत मेघा भगत ने 475 वर्ष पूर्व में की थी. मान्यता है कि मेघा भगत को भगवान राम ने स्वयं दर्शन दिया था. इसके बाद से उन्होंने इस मेले की शुरुआत की थी, जिसे आज भी पूरी श्रद्धा से मनाया जाता है.
कोरोना की वजह से नहीं हुआ भव्य आयोजन
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भरत मिलाप का मंचन तो हुआ, लेकिन लाखों की भीड़ नहीं हुई. इस बार प्रशासन ने सिर्फ 100 लोगों के साथ ही लीला करने की अनुमति दी. कोरोना महामारी को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ इस बार भरत मिलाप का समापन किया गया.
स्थान में हुआ बदलाव
वैश्विक महामारी की वजह से प्रशासन के द्वारा अधिक भीड़-भाड़ नहीं करने की अनुमति देने पर नाटी इमली के सुप्रसिद्ध भरत मिलाप के स्थान में परिवर्तन कर मैदागिन बड़ा गणेश स्थित रामलीला समिति पर सम्पन्न किया गया.