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हरियाणा : सोनीपत के 14 वर्षीय किशोर ने जीते 110 मेडल

सोनीपत के सपना बाल कुंज में रह रहा 14 साल का बादल स्टेट और नेशनल लेवल पर 110 मेडल जीत चुका है. जब बादल दो साल का था, तभी उसके मामा उसे बाल कुंज में छोड़कर चले गए थे. अब बाल संरक्षण अधिकारी उसके सपनों को पंख देने की कोशिश कर रहे हैं.

डिजाइन फोटो
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Published : Nov 21, 2020, 11:05 PM IST

चंडीगढ़ : प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, ये बात एक बेसहारा किशोर बादल पर बिल्कुल सटीक बैठती है. मात्र 14 वर्ष की आयु में ही बादल ने विभिन्न क्षेत्रों में जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की स्पर्धाओं में 110 पदक जीते हैं.

आईएएस अधिकारी एवं खिलाड़ी बनने की चाहत रखने वाले बादल की प्रतिभा को जिला बाल संरक्षण एवं बाल संरक्षण अधिकारियों ने गंभीरता से परखा और उसके सपनों को पंख देने के लिए हर संभव कोशिश की.

14 वर्षीय किशोर ने जीते 110 मेडल

बादल ने बताया कि वह आईएएस या फिर खिलाड़ी बनना चाहते हैं. जिसको लेकर उन्होंने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. वह सुबह एक घंटा और शाम को एक घंटा खेल पर लगाते हैं. उसके बाद फिर वह अपनी पढ़ाई करते हैं.

रचनात्मक और खेल स्पर्धाओं में जीता पदक
सोनीपत की बाल संरक्षण अधिकारी ममता शर्मा ने बताया कि बादल खेल और रचनात्मक स्पर्धाओं का उस्ताद है. उसने राष्ट्रीय और राज्य स्तर के 110 पदक जीते हैं. आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बादल को स्कूल की तरफ से भी छूट मिलती है. स्कूल प्रबंधन अपनी तरफ से भी बादल के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया कराता है.

दो साल की उम्र से संरक्षण केंद्र पर रह रहा है बादल
ममता शर्मा ने बताया कि मात्र दो साल की उम्र में बादल को उसके मामा द्वारा सपना बाल कुंज गोहाना में छोड़ा गया था. आज बादल की उम्र 14 साल की हो गई है, लेकिन अभी तक कोई भी व्यक्ति बादल से मिलने नहीं आया. उन्होंने बताया कि बादल के मामा द्वारा दिए गए पते पर जब उन लोगों ने संपर्क किया. तो भी उसके परिजनों का कोई अता-पता नहीं चल पाया. ऐसे में बादल को बेसहारा बच्चों की श्रेणी में रखा गया है.

ये भी पढ़ें: कोरोना वायरस का असर : रोगियों के कई अंगों को नुकसान पहुंचा

बाल संरक्षण अधिकारी ममता शर्मा ने बताया कि वो बादल के सपनों को उड़ान देने की हर संभव मदद कर रही हैं. आईएएस की तैयारी के लिए जरूरी किताबें इत्यादी वो मुहैया करा रही हैं. ताकि बच्चा बड़ा होकर अपने लक्ष्य को हासिल कर सके. उन्होंने कहा कि हमारी संस्था बेसहारा बच्चों के भविष्य को सुधारने की दिशा में प्रभावी रूप से काम कर रही है.

इतनी छोटी सी उम्र में इतने पदक जीत चुके इस बच्चे के पर नरेंद्र देव शर्मा की ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं- जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का.

चंडीगढ़ : प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, ये बात एक बेसहारा किशोर बादल पर बिल्कुल सटीक बैठती है. मात्र 14 वर्ष की आयु में ही बादल ने विभिन्न क्षेत्रों में जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक की स्पर्धाओं में 110 पदक जीते हैं.

आईएएस अधिकारी एवं खिलाड़ी बनने की चाहत रखने वाले बादल की प्रतिभा को जिला बाल संरक्षण एवं बाल संरक्षण अधिकारियों ने गंभीरता से परखा और उसके सपनों को पंख देने के लिए हर संभव कोशिश की.

14 वर्षीय किशोर ने जीते 110 मेडल

बादल ने बताया कि वह आईएएस या फिर खिलाड़ी बनना चाहते हैं. जिसको लेकर उन्होंने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. वह सुबह एक घंटा और शाम को एक घंटा खेल पर लगाते हैं. उसके बाद फिर वह अपनी पढ़ाई करते हैं.

रचनात्मक और खेल स्पर्धाओं में जीता पदक
सोनीपत की बाल संरक्षण अधिकारी ममता शर्मा ने बताया कि बादल खेल और रचनात्मक स्पर्धाओं का उस्ताद है. उसने राष्ट्रीय और राज्य स्तर के 110 पदक जीते हैं. आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बादल को स्कूल की तरफ से भी छूट मिलती है. स्कूल प्रबंधन अपनी तरफ से भी बादल के लिए कुछ सुविधाएं मुहैया कराता है.

दो साल की उम्र से संरक्षण केंद्र पर रह रहा है बादल
ममता शर्मा ने बताया कि मात्र दो साल की उम्र में बादल को उसके मामा द्वारा सपना बाल कुंज गोहाना में छोड़ा गया था. आज बादल की उम्र 14 साल की हो गई है, लेकिन अभी तक कोई भी व्यक्ति बादल से मिलने नहीं आया. उन्होंने बताया कि बादल के मामा द्वारा दिए गए पते पर जब उन लोगों ने संपर्क किया. तो भी उसके परिजनों का कोई अता-पता नहीं चल पाया. ऐसे में बादल को बेसहारा बच्चों की श्रेणी में रखा गया है.

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बाल संरक्षण अधिकारी ममता शर्मा ने बताया कि वो बादल के सपनों को उड़ान देने की हर संभव मदद कर रही हैं. आईएएस की तैयारी के लिए जरूरी किताबें इत्यादी वो मुहैया करा रही हैं. ताकि बच्चा बड़ा होकर अपने लक्ष्य को हासिल कर सके. उन्होंने कहा कि हमारी संस्था बेसहारा बच्चों के भविष्य को सुधारने की दिशा में प्रभावी रूप से काम कर रही है.

इतनी छोटी सी उम्र में इतने पदक जीत चुके इस बच्चे के पर नरेंद्र देव शर्मा की ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं- जब हौसला बना लिया ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिज़ूल है कद आसमान का.

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