शिमला : अचानक से उपजे कोरोना संकट ने समाज में अवसाद का नया दौर पैदा कर दिया है. सवाल है कि क्या तेजी से भागते जीवन की रफ्तार क्या धीमी हुई है. क्या अवसाद जिंदगी पर हावी हो रहा है. क्या डिप्रेशन के चलते जिंदगी से आसान मौत लगने लगी है. ये सवाल इसलिये, क्यों कि हिमाचल में लॉकडाउन के दो महीनों के दौरान आत्महत्याओं के जो आंकड़े सामने आए हैं वो काफी डराने वाले हैं.
कई जानकार कोरोना को अब तक की सबसे बड़ी महामारी का दर्जा दे रहे हैं लेकिन हिमाचल में कोरोना संक्रमण से हुई मौतों से कई गुना ज्यादा मामले खुदकुशी के हैं. आंकड़ों की मानें तो बीते दो महीने में हिमाचल में 121 लोगों ने खुदकुशी कर ली.
रविवार को बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने खुदकुशी कर ली. बताया जा रहा है कि वो बीते करीब 6 महीने से डिप्रेशन में थे. वहीं, हिमाचल में भी बीते दो महीनों में सुसाइड के मामलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है. ये आंकड़े विभिन्न जिलों से पुलिस मुख्यालय शिमला में कम्पाइल की गई रिपोर्ट के हैं.
2 महीनों में हिमाचल में 121 लोगों ने की आत्महत्या
अप्रैल और मई महीने में लॉकडाउन के दौरान 121 हिमाचलियों ने आत्महत्या की है. प्रदेश में साल 2019 में 563 के करीब लोगों ने आत्महत्या की थी. वहीं, साल 2020 में अब तक 237 आत्महत्या के मामले आ चुके हैं. इसमें सबसे ज्यादा अप्रैल और मई महीने में 121 सुसाइड के मामले सामने आए हैं. इस दौरान जिला कांगड़ा में सबसे ज्यादा 140 केस सुसाइड के दर्ज हुए थे. मंडी में 82 और सोलन में 67 मामले दर्ज किए गए हैं.
अप्रैल महीने में सुसाइड के 40 मामले
24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी से बचाव के लिए लॉकडाउन के पहले चरण की घोषणा की थी. ये चरण 24 मार्च से 17 अप्रैल तक चला था जिसके बाद लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाया गया था. इस दौरान हिमाचल में सुसाइड के 40 मामले दर्ज किए गए थे.
अकेले मई महीने में सुसाइड के 81 मामले
मई महीने में कोरोना के चलते पूरे देश में लॉकडाउन के नियम सख्त कर दिए गए थे. पुलिस और प्रशासन बेवजह घर से निकलने पर लोगों पर कार्रवाई कर रहा था. इस बीच हिमाचल में भी सरकार ने पूर्ण रूप से कर्फ्यू लगाया था. लोग घरों में कैद थे. ऐसे में मई महीने में प्रदेश में 81 आत्महत्या के मामले सामने आए. जो अप्रैल महीने से दोगुना था. ऐसे में साफ है कि लॉकडाउन में लोग अलग-अलग कारणों से अवसाद का शिकार हो रहे हैं.
आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या अधिक
प्रदेश में लॉकडाउन के दो महीनों में सबसे ज्यादा पुरुषों ने आत्महत्या की है. आकंड़ों के मुताबिक इस दौरान करीब 75 पुरुषों ने अपनी जीवन लीला खत्म की है. वहीं, इस दौरान 46 महिलाओं ने सुसाइड किया है. इनमें मंडी में 23, कांगड़ा में 21 और शिमला में 13 सुसाइड के मामले दर्ज हुए थे.
मनोचिकित्सक डॉ. रवि शर्मा के मुताबिक इस समय लोगों में कोरोना महामारी को लेकर डर का माहौल है, वहीं लोगों में नौकरी जाना, काम-धंधा ठप होने के साथ अन्य कारणों की वजह से भी अवसाद बढ़ रहा है. ऐसे में कुछ लोग आत्महत्या करने तक का भयानक कदम उठा रहे हैं. ऐसे में तनाव में लोगों का मनोबल कमजोर हो जाता है, जिस वजह से डिप्रेशन का रोगी सुसाइड करने से गुरेज नहीं करता.
तनाव से बचाव
अगर कोई व्यक्ति तनाव का शिकार है तो उसके परिवार के सदस्यों और दोस्तों को अपनी जिम्मेवारी समझ कर उस व्यक्ति को कभी भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. कई बार डिप्रेशन के कारण काउंसलिंग लेनी भी जरूरी हो जाता है. डॉक्टरी सलाह और मेडिसिन लेने से तनाव से बचा जा सकता है.
आत्महत्या के खिलाफ जागरूक कर रही संस्था ब्लैक ब्लेंकेट की काउंसलर मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति गुमसुम रहता है और अचानक से समाज, परिवार से कटना शुरू हो जाता है तो उसकी काउंसलिंग जरूरी है. अपनी बात को दूसरों के साथ साझा करने पर मन हल्का होता है.
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आइजीएमसी में मनोचिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. देवेश शर्मा ने खुलासा किया है कि आत्महत्या के पीछे कई कारण छिपे होते हैं. उनका कहना कि एक ही कारण से व्यक्ति आत्महत्या करे ऐसा कहना सही नहीं है.
आत्महत्या करने वालों में 80 से 90 फीसदी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं. ऐसे रोगियों में डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मूड डिसऑर्डर, नशे का इस्तेमाल शामिल है. मनोचिकित्सक के मुताबिक आत्महत्या करने वाले पहले ही संकेत देने लगते हैं, जैसे अब जिंदगी भारी लगने लगी है, जीने की इच्छा न रहना, भूख न लगना, नींद न आना. ऐसे में समय पर संकेतों को समझ कर अवसाद के रोगियों की जान बचाई जा सकती है.