लखनऊ : उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में आज भी महात्मा गांधी के सत्याग्रह और स्वतंत्रता की लड़ाई में साथ देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोवर्धन लाल कनौजिया मौजूद हैं. उनकी उम्र करीब 106 साल हो चुकी है, लेकिन उनका राष्ट्र के प्रति जज्बा आज भी उसी तरह कायम है, जब उन्होंने गांधीजी के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए देश को आजादी दिलाई थी. उनका शरीर भले ही बूढ़ा हो गया हो, लेकिन उनका मन अब भी जवान है और वह आज भी राष्ट्र के लिए समर्पण को तैयार हैं.
गोवर्धन लाल के हौसले आज भी बुलंद हैं
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोवर्धन लाल कनौजिया अब 106 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके हैं. उनके हौसले आज भी बुलंद है और आजादी की लड़ाई में जो जज्बा उन्होंने दिखाया था, उसी को मन में लिए राष्ट्र समर्पण की भावना से जीवन जी रहे हैं. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को नीचा दिखाने के लिए जो भी कार्य किए, वे देश की आजादी के लिए काफी महत्वपूर्ण थे.
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अंग्रेजी हुकूमत का था बोलबाला
गांधी जी के साथ 31 सितंबर 1929 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोवर्धन लाल कनौजिया ने प्रण लिया था कि वह अपने जीवन को देशहित में लगाएंगे, जिसके बाद से लगातार सन् 30, 32, 39, 40 के दौरान स्वतंत्रता संग्राम के समय की उनकी कहानी आज भी लोगों के दिलों में है. उन्होंने बताया कि उस समय अंग्रेजी हुकूमत से लोग बहुत डरते थे. आलम यह था कि अगर एक चौकीदार गांव में आ जाता था तो लोग घरों में छिप जाते थे.
अंग्रेजी हुकूमत में भी दिलेरी का किया काम
13 अगस्त 1942 को होने वाली मीटिंग को लेकर अंग्रेज बहुत सतर्क हो गए थे. तब गोवर्धन लाल ने कन्नौज तहसील में आग लगा दी, जिसके बाद अंग्रेजों का ध्यान भटक गया. इसी बीच उन्होंने तिर्वां में एक दारोगा की वर्दी उन्होंने फाड़ दी और उसकी रिवाल्वर छीनकर उसे मरणासन्न कर छोड़ दिया.
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गांधी जी के नारे की गूंज मुंबई से कन्नौज तक पहुंची थी
वयोवृद्ध गोवर्धन लाल ने बताया कि वह अगस्त 1942 में गांधी जी के साथ रहे और 1942 के आंदोलन में जेल भी गए. 9 अगस्त 1942 की रात को जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मुंबई से 'करो या मरो' का नारा दिया, तो उनका फरमान कन्नौज के तिर्वां तक पहुंचा था. इस पर गोवर्धन लाल भी 'जेल भरो आंदोलन' का हिस्सा बनकर अंग्रेजी हुकूमत में जेल गए थे.
सत्याग्रह आंदोलन में दिया था गांधी जी का साथ
कन्नौज जिले के तिर्वां के रहने वाले गोवर्धन लाल ने बताया, 'सन् 30, 32, 39, 40 और 42 तक मैं सभी कार्यक्रमों में गांधीजी के साथ रहा और आजीवन कारावास की सजा प्राप्त की. मैं आज जीवित हूं और मैं अब भी राष्ट्र के प्रति नतमस्तक होकर सदैव के लिए अपना जीवन दे रहा हूं.'
'आज भी मेरा मन राष्ट्र के प्रति समर्पित'
गोवर्धन लाल ने कहा, 'भले ही मैं 106 वर्ष का हो गया हूं, फिर भी मेरे अंदर लालसा यही है कि मैं अपनी उम्र को देखते हुए आज आपके सामने एक नौजवान की तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहा हूं. मैं नहीं समझता कि मैं 106 वर्ष का हूं. आज भी मेरा मन राष्ट्र के प्रति लगा हुआ है और मैं राष्ट्र के लिए अपने आपको दिए बैठा हूं.'