काशी के इस मंदिर का खुद उद्घाटन करने पहुंचे थे महात्मा गांधी वाराणसी: 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पूरा विश्व मनाएगा. पीएम मोदी के स्वच्छता मिशन को महात्मा गांधी की प्रेरणा से अलख जगाने के लिए 1 अक्टूबर से ही विशेष अभियान शुरू हो गया है. जगह-जगह महात्मा गांधी की स्मृतियां और संदेशों को प्रसारित प्रसारित किया जा रहा है. मोबाइल के कॉलर ट्यून से लेकर मोहल्ले में आने वाली स्वच्छता गाड़ी भी महात्मा गांधी के संदेश को सुना रही है. इन सब के बीच हम आपको महात्मा गांधी के उस सपने के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान अहिंसा वादी तरीके लोगों को एकजुट करने के लिए देखा था.
मंदिर के अंदर बना भारत का नक्शा वाराणसी में एक ऐसा अद्भुत मंदिर है जिसको 1917 के उसे अखंड भारत के मानचित्र पर राष्ट्र रतन बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने महात्मा गांधी के निर्देश पर तैयार करवाया था. जिसको आज भी देखने के लिए सर्वधर्म के लोग काशी पहुंचते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि अखंड भारत के नक्शे को मकराना मार्बल पर उकेर कर तैयार किया गया. यह मंदिर खुद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हाथों उद्घाटित हुआ था. मंदिर के उद्घाटन के दौरान अखंड भारत के इस मानचित्र के आधार पर सर्वधर्म सौहार्द का संदेश देते महात्मा गांधी नेलोगों को एकजुट रहने की अपील भी की थी. जो अपने आप में महात्मा गांधी की स्मृति की सबसे बड़ी निशानी है.
मंदिर का उद्घाटन करने पहुंचे महात्मा गांधी दरअसल, वाराणसी के चंदुआ सिगरा इलाके में मौजूद भारत माता का अद्भुत मंदिर अपने आप में महात्मा गांधी की मौजूदगी का आज भी एहसास कराता है. मंदिर में इस्तेमाल हुए लाल पत्थर, मकराना मार्बल और अन्य निर्माण सामग्री इस मंदिर को और भी भव्य बना देते हैं. 1917 के बाद इस मंदिर के निर्माण की शुरुआत हुई और 1924 में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ. अंग्रेजी हुकूमत जब अंग्रेजों का विरोध कर रहे लोगों को कुचलने का हर संभव प्रयास कर रही थी. उस वक्त राष्ट्र रतन बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने महात्मा गांधी के निर्देश पर इस भव्य मंदिर के निर्माण के रूपरेखा तैयार की और चुप-चुप कर टुकड़े-टुकड़े में इस मंदिर का निर्माण शुरू हुआ.
भारत माता मंदिर के उद्घाटन के दौरान महात्मा गांधी और नेहरू लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की वजह से इसे खोला नहीं जा सका. 1936 में जब महात्मा गांधी काशी आए तब उनके हाथों इस मंदिर का उद्घाटन हुआ. उसे वक्त की यह तस्वीर भी निश्चित तौर पर महात्मा गांधी का इस मंदिर के प्रति प्रेम और अपार श्रद्धा व्यक्त करने के लिए काफी है. यहां के केयरटेकर राजू सिंह बताते हैं कि यहां हर धर्म हर संप्रदाय के लोग आते हैं. इसकी बड़ी वजह यह है कि यह है तो मंदिर, लेकिन यहां पर किसी मूर्ति या प्रतिमा को स्थापित नहीं किया गया है, बल्कि मकराना मार्बल पर 1917 के मानचित्र के आधार पर एक भव्य अखंड भारत का नक्शा है. 1924 में मंदिर बनकर तैयार हुआ और 12 सालों बाद महात्मा गांधी ने इस मंदिर को अपने हाथों से उद्घाटित किया. उस वक्त उन्होंने कहा भी यह मंदिर सभी धर्म हरिजन और हर संप्रदाय के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण जगह होगी और मेरे द्वारा इसका उद्घाटन किया जाना अपने आप में मेरे लिए बहुत खास है.
मंदिर उद्घाटन की दौरान की तस्वीरें मैं इसके लायक तो नहीं लेकिन बाबू शिवप्रसाद गुप्त ने मुझे इस लायक समझा और मुझे आमंत्रण दिया. इसके लिए मैं उनका धन्यवाद देता हूं. महात्मा गांधी के इन कथनों के बाद राष्ट्र रतन शिव प्रसाद गुप्त के साथ उस वक्त कई महान नेताओं की तस्वीर भी आज भी इस मंदिर में मौजूद हैं. उस वक्त ट्रेन आरंग साधनों की कमी के बावजूद 25000 से ज्यादा लोग इस उद्घाटन समारोह में मौजूद हुए थे.
महात्मा गांधी की प्रेरणा से 1936 में हुई मंदिर की शुरुआत शिव प्रसाद गुप्त ने गणितीय सूत्रों के आधार पर दुर्गा प्रसाद खत्री की देख-रेख में 25 शिल्पकार और 30 मजदूरों को लगाकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मकराना मार्बल पर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार और श्रीलंका इसमें साफ तौर पर दिखाई देंगे. 450 पर्वत श्रृंखलाएं और चोटियां मैदान, पठार, जलाशय, नदियां, महासागर उनकी ऊंचाई और गहराई सब अंकित हैं. इसकी धरातल भूमि 1 इंच में 2000 फीट दिखाई गई है. चित्र की लंबाई 32 फीट, 2 इंच और चौड़ाई 30 फीट 2 इंच है, जिसे 762 खानों में बांटा गया है. पुणे के एक आश्रम में मिट्टी पर उकेरे गए मानचित्र को देखकर शिव प्रसाद ने मार्बल से इस मंदिर में मानचित्र बनाने की ठानी और बापू से परमिशन के बाद इसे तैयार करवाकर उनके ही हाथों उसका उद्घाटन करवाया.
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