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Belagavi border dispute: बेलगावी में शिवसेना सांसद के प्रवेश पर लगी रोक

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Published : Jan 17, 2023, 10:35 AM IST

Updated : Jan 17, 2023, 12:08 PM IST

कर्नाटक के बेलगावी में महाराष्ट्र सांसद के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है. शिवसेना सांसद धैर्यशील माने ने यहां आने का ऐलान कर रखा था. जिला प्रशासन ने इस बाबत एक आदेश जारी किया. बेलगावी को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है.

Maharashtra MP entry banned
शिवसेना सांसद धैर्यशील माने

बेलागवी : शिवसेना सांसद धैर्यशील माने के कर्नाटक सीमा और बेलगावी में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. एमईएस कार्यकर्ता मंगलवार को शहर में शहीद दिवस मनाने वाले हैं. इस कार्यक्रम में धैर्यशील माने जो महाराष्ट्र सीमा समन्वय समिति के अध्यक्ष भी हैं, शामिल होने वाले हैं. इसे ध्यान में रखते हुए बेलागवी के डीसी नितेश पाटिल ने एक आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के सांसद धैर्यशील माने के जिले में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है.

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जिलाधिकारी ने भड़काऊ भाषण देने से कानून व्यवस्था को खतरा होने की आशंका जताते हुए सीआरपीसी 1997 की धारा 144(3) के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग कर पाबंदियां लगाने का आदेश दिया है. कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद को लेकर भड़काऊ बयानों से भाषा का मुद्दा उठ सकता है. कानून और व्यवस्था को खतरा है और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान होने की अधिक संभावना है. इसलिए जिला प्रशासन ने यह कदम उठाया है. इससे पहले 19 दिसंबर को भी डीसी ने एमपी माने को कर्नाटक में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो बेलगावी में महामेलव में भाग लेंगे. अब फिर से डीसी ने आदेश जारी किया.

1956 में विवाद की हुई शुरुआत: दरअसल इस विवाद की शुरुआत 1956 में हुई थी. 1956 में राज्य पुनर्गठन एक्ट (State Reorganisation Act, 1956) पारित किया गया था. इसके जरिए देश को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया था. दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. इसमें फजल अली के साथ ही के एम पणिक्कर और एच एन कुंजरू सदस्य थे.

पढ़ें: कर्नाटक के बेलगावी में श्रीराम सेना के नेता गोलीबारी में घायल, तीन गिरफ्तार

आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग ने रिपोर्ट में ये बात मानी कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए, लेकिन 'एक राज्य एक भाषा' के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया. इससे साफ था कि सिर्फ भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं होना चाहिए. इन सिफारिशों को मानते हुए राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 पारित किया गया और 1 नवंबर 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया.

1956 में बॉम्बे और मैसूर के नाम से था प्रांत: राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे ( मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) राज्य बनाए गए. एक मई 1960 को बॉम्बे (Bombay) को बांटकर दो राज्य महाराष्ट्र और गुजरात बनाया गया. मराठी भाषा को आधार बनाकर महाराष्ट्र और गुजराती भाषा को आधार बनाकर गुजरात बनाया गया. वहीं एक नवंबर 1973 को मैसूर (Mysore) प्रांत का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया.

पढ़ें: 'कर्नाटक के कब्जे वाले महाराष्ट्र के इलाकों' को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करे केंद्र : उद्धव

संसद में भी दोनों राज्यों ने दिए थे तर्क: महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद की नींव राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 से ही पड़ गई थी. उस वक्त बॉम्बे और मैसूर के बीच सीमा निर्धारण के बाद से ही विवाद शुरू हो गया. विवादित क्षेत्र में मराठी और कन्नड भाषी दोनों लोग शामिल हैं. इस वजह से सिर्फ भाषायी आधार पर विवाद को समझना थोड़ा मुश्किल है. 1956 में बॉम्बे (मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) दोनों ने ही सीमा पर लगे कई शहरों और गांवों को अपने-अपने राज्य में मिलाने के लिए संसद में तर्क दिया.

महाराष्ट्र मराठी भाषा को बनाता है आधार: बॉम्बे का दावा था कि मैसूर के उत्तर पश्चिम जिला बेलगाम (बेलगावी) को मराठी भाषा होने की वजह से बॉम्बे का हिस्सा होना चाहिए. इस विश्वास की वजह से ही महाराष्ट्र हमेशा से कर्नाटक के इस इलाके पर अपना दावा करते रहा है. 1957 में ही बॉम्बे राज्य ने राज्य पुनर्गठन एक्ट के सेक्शन 21 (2) (b) को लागू करके मैसूर के साथ अपने सीमा को फिर से निर्धारित करने की मांग की. बॉम्बे प्रांत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इससे जुड़ा ज्ञापन सौंपते हुए मराठी भाषा क्षेत्रों को कर्नाटक के साथ जोड़े जाने पर आपत्ति जताया.

पढ़ें: जैसे चीन भारतीय क्षेत्र में घुसा उसी तरह कर्नाटक में घुसेंगे : संजय राउत

बेलागवी : शिवसेना सांसद धैर्यशील माने के कर्नाटक सीमा और बेलगावी में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. एमईएस कार्यकर्ता मंगलवार को शहर में शहीद दिवस मनाने वाले हैं. इस कार्यक्रम में धैर्यशील माने जो महाराष्ट्र सीमा समन्वय समिति के अध्यक्ष भी हैं, शामिल होने वाले हैं. इसे ध्यान में रखते हुए बेलागवी के डीसी नितेश पाटिल ने एक आदेश जारी किया है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के सांसद धैर्यशील माने के जिले में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है.

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जिलाधिकारी ने भड़काऊ भाषण देने से कानून व्यवस्था को खतरा होने की आशंका जताते हुए सीआरपीसी 1997 की धारा 144(3) के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग कर पाबंदियां लगाने का आदेश दिया है. कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद को लेकर भड़काऊ बयानों से भाषा का मुद्दा उठ सकता है. कानून और व्यवस्था को खतरा है और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान होने की अधिक संभावना है. इसलिए जिला प्रशासन ने यह कदम उठाया है. इससे पहले 19 दिसंबर को भी डीसी ने एमपी माने को कर्नाटक में प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो बेलगावी में महामेलव में भाग लेंगे. अब फिर से डीसी ने आदेश जारी किया.

1956 में विवाद की हुई शुरुआत: दरअसल इस विवाद की शुरुआत 1956 में हुई थी. 1956 में राज्य पुनर्गठन एक्ट (State Reorganisation Act, 1956) पारित किया गया था. इसके जरिए देश को 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया था. दिसंबर 1953 में फजल अली की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. इसमें फजल अली के साथ ही के एम पणिक्कर और एच एन कुंजरू सदस्य थे.

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आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट पेश की. आयोग ने रिपोर्ट में ये बात मानी कि राज्यों के पुनर्गठन में भाषा को मुख्य आधार बनाया जाना चाहिए, लेकिन 'एक राज्य एक भाषा' के सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया. इससे साफ था कि सिर्फ भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन नहीं होना चाहिए. इन सिफारिशों को मानते हुए राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 पारित किया गया और 1 नवंबर 1956 को 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का गठन किया गया.

1956 में बॉम्बे और मैसूर के नाम से था प्रांत: राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 के तहत बॉम्बे ( मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) राज्य बनाए गए. एक मई 1960 को बॉम्बे (Bombay) को बांटकर दो राज्य महाराष्ट्र और गुजरात बनाया गया. मराठी भाषा को आधार बनाकर महाराष्ट्र और गुजराती भाषा को आधार बनाकर गुजरात बनाया गया. वहीं एक नवंबर 1973 को मैसूर (Mysore) प्रांत का नाम बदलकर कर्नाटक कर दिया गया.

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संसद में भी दोनों राज्यों ने दिए थे तर्क: महाराष्ट्र-कर्नाटक के बीच सीमा विवाद की नींव राज्य पुनर्गठन एक्ट 1956 से ही पड़ गई थी. उस वक्त बॉम्बे और मैसूर के बीच सीमा निर्धारण के बाद से ही विवाद शुरू हो गया. विवादित क्षेत्र में मराठी और कन्नड भाषी दोनों लोग शामिल हैं. इस वजह से सिर्फ भाषायी आधार पर विवाद को समझना थोड़ा मुश्किल है. 1956 में बॉम्बे (मौजूदा महाराष्ट्र) और मैसूर ( मौजूदा कर्नाटक) दोनों ने ही सीमा पर लगे कई शहरों और गांवों को अपने-अपने राज्य में मिलाने के लिए संसद में तर्क दिया.

महाराष्ट्र मराठी भाषा को बनाता है आधार: बॉम्बे का दावा था कि मैसूर के उत्तर पश्चिम जिला बेलगाम (बेलगावी) को मराठी भाषा होने की वजह से बॉम्बे का हिस्सा होना चाहिए. इस विश्वास की वजह से ही महाराष्ट्र हमेशा से कर्नाटक के इस इलाके पर अपना दावा करते रहा है. 1957 में ही बॉम्बे राज्य ने राज्य पुनर्गठन एक्ट के सेक्शन 21 (2) (b) को लागू करके मैसूर के साथ अपने सीमा को फिर से निर्धारित करने की मांग की. बॉम्बे प्रांत ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इससे जुड़ा ज्ञापन सौंपते हुए मराठी भाषा क्षेत्रों को कर्नाटक के साथ जोड़े जाने पर आपत्ति जताया.

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Last Updated : Jan 17, 2023, 12:08 PM IST
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