भरतपुर. पक्षियों का स्वर्ग कहे जाने वाले केवलादेव उद्यान में हर साल रंग-बिरेंगे और दूरदराज से देशी-विदेशी पक्षी प्रवास करने आते हैं. सैकड़ों प्रजाति के हजारों पक्षी यहां मौसस के अनुरूप कुछ दिनों के लिए घना के खूबसूरत उद्यान में अपनी ठिकाना बनाते हैं औऱ मौसम बदलने के साथ फिर अपने देश लौट जाते हैं. यह इन पक्षियों की सतत प्रक्रिया है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में इस बार अभी तक राजहंस (फ्लेमिंगो) ने दस्तक नहीं दी है जिससे पक्षी प्रेमियों में निराशा है.
खूबसूरत पक्षियों में शुमार राजहंस की अठखेलियों को अपने कैमरे में कैद करने के लिए वाइल्डलाइफर भी लालायित रहते हैं लेकिन इस बार इनको भी घना में फ्लेमिंगों की उड़ान देखने को नहीं मिल रही है. एक तरफ जहां घना में लगातार राजहंसों की संख्या में गिरावट देखने को मिल रही है तो वहीं 35 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश स्थित जोधपुर झाल बर्ड सेंचुरी में करीब 500 राजहंस अठखेलियां करते नजर आते हैं. आखिर क्या वजह है कि घना में इस बार राजहंस नहीं पहुंचे और जोधपुर झाल में लगातार फ्लेमिंगों के समूह प्रवास कर रहे हैं. पर्यावरणविदों के माध्यम से जानते हैं राजहंस की घना से बेरुखी की वजह...
पर्यावरणविद डॉ. केपी सिंह ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में राजहंसों को न तो उनका पर्याप्त हैबिटाट मिल पा रहा और न ही उपयुक्त पानी. ऐसे में यहां पर लगातार राजहंसों की संख्या में गिरावट आ रही है. यही वजह है कि इस बार अभी तक घना में राजहंस नहीं पहुंचे हैं. हालांकि गर्मियों में इनका माइग्रेशन होता है लेकिन इस बार अभी तक राजहंस घना नहीं पहुंचे हैं तो अब आने की संभावना भी बहुत कम रह गई है.
नेचर गाइड देवेंद्र सिंह ने बताया कि इस बार घना के ब्लॉकों में ज्यादा पानी है. जबकि फ्लेमिंगो कम और छिछले पानी में प्रवास करना पसंद करता है. हालांकि इस बार पांचना बांध से पानी नहीं आया है. गत वर्ष पांचना बांध का पानी मिला था तो उद्यान में 33 राजहंसों ने करीब एक माह से भी अधिक समय तक प्रवास किया था.
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प्रदूषित पानी से हैबिटाट प्रभावित
घना के नेचर गाइड देवेंद्र सिंह ने बताया कि उद्यान में गोवर्धन कैनाल से भी पानी लिया गया है. इस वजह से उद्यान का हैबिटाट प्रभावित हो रहा है. काफी हैबिटाट तो नष्ट भी हो गया है. इसका सीधा असर पक्षियों के प्रवास पर पड़ता है. पक्षी को जब पर्याप्त भोजन और माहौल नहीं मिलता है तो वे उस जगह आना पसंद नहीं करते.
जोधपुर झाल में इसलिए अच्छी संख्या
डॉ. केपी सिंह ने बताया कि जोधपुर झाल में फ्लेमिंगो के लिए बहुत ही उपयुक्त माहौल और हैबिटाट उपलब्ध है. पानी शुद्ध नमकीन और भरपूर हैबिटाट युक्त है. यही वजह है कि बीते कुछ सालों में जोधपुर झाल राजहंसों की पसंद बन गया है. पास ही कीठम झील पर भी राजहंस कम पहुंचते हैं, लेकिन जोधपुर झाल पर फ्लेमिंगो की संख्या 500 तक पहुंच जाती है. इतना ही नहीं यहां राजहंस लंबा प्रवास करते हैं.
पर्यावरणविद डॉ. केपी सिंह ने बताया कि यदि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में फिर से राजहंस को आकर्षित करना है तो उसके लिए सबसे पहले उद्यान के अंदर प्रदूषित पानी के बजाय शुद्ध पानी की आवक का रास्ता तलाशना होगा जिससे हैबिटाट फिर से तैयार हो सके. साथ ही उद्यान में पानी के प्रबंधन पर भी काम करने की जरूरत है. तभी यहां राजहंसों (फ्लेमिंगो) का आना फिर से शुरू हो सकता है.