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MIG-21 : कब तक होते रहेंगे ऐसे हादसे, चिंता में डूबा 'मां का कलेजा', बोलीं- कल को मेरा बेटा भी ...

भारतीय वायु सेना का एक मिग-21 विमान गुरुवार रात राजस्थान के बाड़मेर में दुर्घटना ग्रस्त हो गया. वायुसेना से लेकर रक्षा मंत्री तक सब श्रदधांजलि दे कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर चुके हैं. लेकिन सालों से 'बदनाम' मिग 21 विमानों पर जो सवाल उठाए जाते रहे हैं, उनका जवाब आज तक किसी सरकार के पास नहीं मिला. ईटीवी के नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने इस सिलसिले में आज किसी सरकारी अफसर या नेता से बात न कर, एक मां से बात की है. एक ऐसे 'जेंटलमैन एयरफोर्स कैडेट' की मां, जो अगले दो सालों में फायटर पायलटों की उस जमात में खड़ा होगा, जो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी एयरफोर्स मानी जाती है. आप भी सुनिए उस मां के दिल का हाल. (Barmer MIG crash).

mig 21
मिग 21
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Published : Jul 29, 2022, 5:47 PM IST

नई दिल्ली : 48 बरस की सुनीता (बदला हुआ नाम) आज बहुत उदास हैं. रह-रह कर रोना आ रहा है. सुबह अखबार में उन्होंने राजस्थान के बाड़मेर में एक मिग-21 के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर पढ़ ली थी. तब से जी बेचैन है. बार-बार अपने 19 बरस के बेटे की सूरत आंखों के सामने घूमे जा रही है. उनका बेटा भी एनडीए, खड़गवासला में एयरफोर्स कैडेट है और दूसरे साल में है. एक साल बाद वो भी फ्लाइंग ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाएगा. अखबार में ये खबर पढ़ते ही पहला ख़्याल उन्हें क्या आया, ये पूछने पर फोन पर दूसरी ओर से जो जवाब आया, वो ह्रदय विदारक था- 'पढ़ते ही लगा कल इन दो पायलटों की जगह मेरे बाबू का भी नाम हो सकता है.' (Barmer MIG crash).

एक लंबी चुप्पी के बाद सुनीता फिर बोलना शुरू करती हैं- 'हम मान कर चलते हैं कि एक दिन उसका भी नाम अखबार में ऐसे ही छप सकता है.' मुझे अब सुनीता के सुबकने की आवाज़ साफ आ रही थी. 'आज सुबह वो खबर पढ़ने के बाद से मन रो रहा है उन दोनों बच्चों के लिए. वो भी किसी के बच्चे थे. कल मेरा भी बेटा उनकी जगह हो सकता है. ये हम मान कर चलते हैं.'

ये पूछने पर कि गुस्सा आता है कभी इन पुराने जहाज़ों पर, इस सिस्टम पर, सुनीता ठंडी आवाज़ में कहती हैं- 'गुस्सा नहीं बल्कि दुख होता है. हमारे सिस्टम में ईमानदारी की इतनी कमी होती जा रही है कि हमारे सिस्टम में इस मुद्दे पर काम करने वाले लोग ईमानदारी से सोच भी नहीं पा रहे हैं. न जनता सोच रही है, न सरकार सोच रही है.'

उनकी आवाज़ में अब तल्खी बढ़ रही थी- 'किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है. हर जगह कारपोरेट कल्चर इतना हावी हो गया है कि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे दो होनहार बच्चे इस तरह चले गए. लोग श्रद्धांजलि दे कर निपटा दते हैं और फिर भूल जाते हैं. लेकिन मुझे तो लगता है जैसे ये दोनों मेरे ही घर के बच्चे थे.'

'सरकार अरबों रुपया एक पायलट की ट्रेनिंग और उनके हवाई जहाज़ों के रखरखाव पर खर्च करती है. ये भी कहती है सरकार कि पायलट का जीवन जहाज़ से ज़्यादा कीमती होता है और संकट में पायलट इजेक्ट कर बाहर निकल सकता है. तो आखिर ऐसे पुराने विमान देते ही क्यों हैं जिसमें दुर्घटना के मौके खूब हों. हम मिग को क्यों नहीं हटाते एयरफोर्स से. क्या मिग 21 को बनाए रखना किसी बहुत बड़े करप्शन की ओर इशारा है. हम उन जहाजों में लोकल पार्ट्स लगा कर अपने पायलटों को क्यों गंवा रहे हैं.' (flying coffin mig 21).

सुनीता की तल्ख आवाज़ अब ग़ुस्से में बदलने लगी है. उनके सवाल, जिनके जवाब किसी के पास नहीं हैं, अब भी जारी हैं. 'कोई बताएगा मुझे कि मिग-21 आखिर कब तक जान लेता रहेगा…..कब तक ? इसे कौन रोकेगा..? सरकार फाइटर पायलट बनने के लिए एयरफोर्स को इतना ग्लैमरस बना कर पेश करती है कि हमारे सबसे होनहार बच्चे एयरफोर्स मे आएं. और जब वो सेलेक्ट होते हैं, तो उन्हें उड़ाने के लिए 'फ्लाइंग कॉफिन' दे दिया जाता है ? क्यों'

'आज भी मैं बेटे को कहती हूं कि दिमाग को बहुत छितराया मत करो, संकट में तुम लोगों का लक्ष्य इजेक्ट कर के जहाज़ से निकल जाना होता है और उसके लिए बहुत कांस्ट्रेशन चाहिए. इसीलिए मैं उससे कहती हूं सोशल मीडिया पर ज़्यादा ध्यान न दिया करे. ध्यान भंग होता है.'

सुनीता अपने बेटे की फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर नहीं हैं, लेकिन उसकी ज़िंदगी का एक सिरा उनकी उंगलियों से अब भी बंधा हुआ है. मां हैं इसलिए बेटे को संकट की स्थिति में कैसे खराब हो गए जहाज़ से बाहर निकलना है, उसके गुर भी बताती चलती हैं. बेटे का छुट्टियों में घर आना, मां से अपनी ट्रेनिंग के किस्से शेयर करना और अंत में सुनीता से टिप्स लेते जाना, मानों वे एक ट्रेंड फाइटर पायलट हों , ये अब एक रुटीन है.

सुनीता ने अपना जी अब कड़ा कर लिया है. उन्होंने तय किया है कि शाम को रोज़ की तरह जब बेटा खड़कवासला से फोन करेगा तो वे अपनी आवाज़ में आज सुबह की उदासी बिल्कुल नहीं लाएंगी. बेटे का हौसला बढ़ाने के लिए आज सुबह ही उन्होंने फेसबुक पर इंडियन एयरफोर्स का पायलट मैन्युअल शेयर किया है. आप भी पढ़िए- 'Fighter pilots have ice in their veins. They don’t have emotions when they are on that seat. They think, anticipate. They know that fear and other concerns cloud your mind from what’s going on and what you should be involved in. There are thousands of things that can go wrong and you have to be ready and act quickly to fix it, your life and others life depends on it.- IAF pilot manual.

(फाइटर प्लेन के पायलट की नसों में मानो बर्फ जमी होती है. जब वो विमान की सीट पर होते हैं तो निर्लिप्त भाव से काम कर रहे होते हैं. उन्हें पता होता है कि डर और दूसरी चीजें उनके दिमाग को घेर सकती हैं, ऐसा वो हर पल जानते हैं. वहां हजार चीजें गलत हो सकती हैं जिन्हें पलक झपकते ही फैसला लेकर उन्हें ठीक करना होता है. क्योंकि उसी फैसले पर उनकी और दूसरों की जिंदगी टिकी होती है)--भारतीय एयरफोर्स पायलट मैन्युअल.

ये भी पढे़ं : अक्सर अपने बयानों से पार्टी को मुश्किल में डाल देते हैं अधीर रंजन चौधरी

नई दिल्ली : 48 बरस की सुनीता (बदला हुआ नाम) आज बहुत उदास हैं. रह-रह कर रोना आ रहा है. सुबह अखबार में उन्होंने राजस्थान के बाड़मेर में एक मिग-21 के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर पढ़ ली थी. तब से जी बेचैन है. बार-बार अपने 19 बरस के बेटे की सूरत आंखों के सामने घूमे जा रही है. उनका बेटा भी एनडीए, खड़गवासला में एयरफोर्स कैडेट है और दूसरे साल में है. एक साल बाद वो भी फ्लाइंग ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाएगा. अखबार में ये खबर पढ़ते ही पहला ख़्याल उन्हें क्या आया, ये पूछने पर फोन पर दूसरी ओर से जो जवाब आया, वो ह्रदय विदारक था- 'पढ़ते ही लगा कल इन दो पायलटों की जगह मेरे बाबू का भी नाम हो सकता है.' (Barmer MIG crash).

एक लंबी चुप्पी के बाद सुनीता फिर बोलना शुरू करती हैं- 'हम मान कर चलते हैं कि एक दिन उसका भी नाम अखबार में ऐसे ही छप सकता है.' मुझे अब सुनीता के सुबकने की आवाज़ साफ आ रही थी. 'आज सुबह वो खबर पढ़ने के बाद से मन रो रहा है उन दोनों बच्चों के लिए. वो भी किसी के बच्चे थे. कल मेरा भी बेटा उनकी जगह हो सकता है. ये हम मान कर चलते हैं.'

ये पूछने पर कि गुस्सा आता है कभी इन पुराने जहाज़ों पर, इस सिस्टम पर, सुनीता ठंडी आवाज़ में कहती हैं- 'गुस्सा नहीं बल्कि दुख होता है. हमारे सिस्टम में ईमानदारी की इतनी कमी होती जा रही है कि हमारे सिस्टम में इस मुद्दे पर काम करने वाले लोग ईमानदारी से सोच भी नहीं पा रहे हैं. न जनता सोच रही है, न सरकार सोच रही है.'

उनकी आवाज़ में अब तल्खी बढ़ रही थी- 'किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है. हर जगह कारपोरेट कल्चर इतना हावी हो गया है कि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे दो होनहार बच्चे इस तरह चले गए. लोग श्रद्धांजलि दे कर निपटा दते हैं और फिर भूल जाते हैं. लेकिन मुझे तो लगता है जैसे ये दोनों मेरे ही घर के बच्चे थे.'

'सरकार अरबों रुपया एक पायलट की ट्रेनिंग और उनके हवाई जहाज़ों के रखरखाव पर खर्च करती है. ये भी कहती है सरकार कि पायलट का जीवन जहाज़ से ज़्यादा कीमती होता है और संकट में पायलट इजेक्ट कर बाहर निकल सकता है. तो आखिर ऐसे पुराने विमान देते ही क्यों हैं जिसमें दुर्घटना के मौके खूब हों. हम मिग को क्यों नहीं हटाते एयरफोर्स से. क्या मिग 21 को बनाए रखना किसी बहुत बड़े करप्शन की ओर इशारा है. हम उन जहाजों में लोकल पार्ट्स लगा कर अपने पायलटों को क्यों गंवा रहे हैं.' (flying coffin mig 21).

सुनीता की तल्ख आवाज़ अब ग़ुस्से में बदलने लगी है. उनके सवाल, जिनके जवाब किसी के पास नहीं हैं, अब भी जारी हैं. 'कोई बताएगा मुझे कि मिग-21 आखिर कब तक जान लेता रहेगा…..कब तक ? इसे कौन रोकेगा..? सरकार फाइटर पायलट बनने के लिए एयरफोर्स को इतना ग्लैमरस बना कर पेश करती है कि हमारे सबसे होनहार बच्चे एयरफोर्स मे आएं. और जब वो सेलेक्ट होते हैं, तो उन्हें उड़ाने के लिए 'फ्लाइंग कॉफिन' दे दिया जाता है ? क्यों'

'आज भी मैं बेटे को कहती हूं कि दिमाग को बहुत छितराया मत करो, संकट में तुम लोगों का लक्ष्य इजेक्ट कर के जहाज़ से निकल जाना होता है और उसके लिए बहुत कांस्ट्रेशन चाहिए. इसीलिए मैं उससे कहती हूं सोशल मीडिया पर ज़्यादा ध्यान न दिया करे. ध्यान भंग होता है.'

सुनीता अपने बेटे की फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर नहीं हैं, लेकिन उसकी ज़िंदगी का एक सिरा उनकी उंगलियों से अब भी बंधा हुआ है. मां हैं इसलिए बेटे को संकट की स्थिति में कैसे खराब हो गए जहाज़ से बाहर निकलना है, उसके गुर भी बताती चलती हैं. बेटे का छुट्टियों में घर आना, मां से अपनी ट्रेनिंग के किस्से शेयर करना और अंत में सुनीता से टिप्स लेते जाना, मानों वे एक ट्रेंड फाइटर पायलट हों , ये अब एक रुटीन है.

सुनीता ने अपना जी अब कड़ा कर लिया है. उन्होंने तय किया है कि शाम को रोज़ की तरह जब बेटा खड़कवासला से फोन करेगा तो वे अपनी आवाज़ में आज सुबह की उदासी बिल्कुल नहीं लाएंगी. बेटे का हौसला बढ़ाने के लिए आज सुबह ही उन्होंने फेसबुक पर इंडियन एयरफोर्स का पायलट मैन्युअल शेयर किया है. आप भी पढ़िए- 'Fighter pilots have ice in their veins. They don’t have emotions when they are on that seat. They think, anticipate. They know that fear and other concerns cloud your mind from what’s going on and what you should be involved in. There are thousands of things that can go wrong and you have to be ready and act quickly to fix it, your life and others life depends on it.- IAF pilot manual.

(फाइटर प्लेन के पायलट की नसों में मानो बर्फ जमी होती है. जब वो विमान की सीट पर होते हैं तो निर्लिप्त भाव से काम कर रहे होते हैं. उन्हें पता होता है कि डर और दूसरी चीजें उनके दिमाग को घेर सकती हैं, ऐसा वो हर पल जानते हैं. वहां हजार चीजें गलत हो सकती हैं जिन्हें पलक झपकते ही फैसला लेकर उन्हें ठीक करना होता है. क्योंकि उसी फैसले पर उनकी और दूसरों की जिंदगी टिकी होती है)--भारतीय एयरफोर्स पायलट मैन्युअल.

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