शाहजहांपुर: काकोरी कांड के बाद उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के तीन महानायकों को आज ही के दिन अंग्रेजी हकूमत ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था. अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इन शहीदों की कुर्बानी पर आज हर कोई फक्र करता है. काकोरी कांड के महानायक अशफाक उल्ला खां के परिवार ने उनके स्मृति चिन्हों को संजोकर रखा है.
9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड हुआ था. काकोरी कांड की रूपरेखा तैयार करने और उसे अंजाम देने में शाहजहांपुर के तीन महानायक अशफाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह का बड़ा योगदान था. इस कांड के बाद अंग्रेजों ने 19 दिसंबर 1927 को तीनों महानायकों को अलग-अलग जिलों में फांसी दे दी थी.
जेल में बंद अशफाक उल्ला खान से 19 दिसंबर 1927 के दिन फांसी देने से पहले जब उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी गई तो उन्होंने कहा कुछ आरजू नहीं है. आरजू तो यह है कि रख दे कोई ख़ाक ए वतन कफन में. इसके बाद देश की खातिर आजादी के यह दीवाने हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.
शहीदों की नगरी शाहजहांपुर में जहां एक नहीं बल्कि तीन-तीन शहीदों ने देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर की थी. इनमें एक नाम है अमर शहीद अशफाक उल्ला खान का. वह शहर के मोहल्ला एमन जई जलाल नगर में 22 अक्टूबर 1900 में जन्मे थे. इस अमर शहीद की तमाम चीजें आज भी इनके परिवार ने संभाल कर रखी हैं. इनमें जेल में लिखी उन उनकी चिट्ठियां भी शामिल हैं. उनके परिवार में उनके तीन पोते आज भी उनकी विरासत की देखभाल कर रहे हैं. अशफाक उल्ला खां और पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की दोस्ती आज भी मुल्क में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. उनके परिवार वालों को इस बात का फक्र है कि उन्होंने ऐसे परिवार में जन्म लिया, जिन्हें आज पूरा मुल्क सलाम करता है.
शहर के बीचो बीच में अशफाक उल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह की प्रतिमाएं हर वक्त उनकी कुर्बानी को याद दिलाती हैं. यहां केएवी रिच इंटर कॉलेज में अशफाक उल्ला खान और राम प्रसाद बिस्मिल ने एक साथ एक ही क्लास में पढ़ाई की थी. आजादी के लिए दोनों को ही काकोरी कांड में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई.
शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला ने बताया कि शहीद अशफाक उल्ला खां की फांसी से पहले मेरा परिवार मिला था. उन्होंने खुशी जाहिर की थी कि मैं देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर जा रहा हूं. उन्होंने अपनी मां को एक खत भी लिखा था. इसमें लिखा था ऐ दुखिया मां, मेरा वक्त बहुत करीब आ गया है. मैं फांसी के फंदे पर जाकर आपसे रुखसत हो जाऊंगा. आप पढ़ी-लिखी मां हैं. ईश्वर और कुदरत ने मुझे आपकी गोद में दिया था. मेरी पैदाइश पर लोग आपको मुबारकबाद देते थे. आप लोगों से कहा करती थीं कि यह अल्लाह ताला की अमानत है. अगर मैं उसकी अमानत था वो इस देश के लिए अपनी अमानत मांग रहा है तो आपको अमानत में खयानत नहीं करनी चाहिए. इस देश को सौंप देना चाहिए. अशफाक उल्ला खान ने फांसी से पहले एक आखरी शेर भी कहा था- कुछ आरजू नहीं है है आरजू तो यह है रख दे कोई जरा सी खाके वतन कफन में.
शहीद अशफाक उल्ला खां के प्रपौत्र अशफाक उल्ला का कहना है कि शहीद अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लहरी इन सभी क्रांतिकारियों को ब्रिटिश हुकूमत ने काकोरी कांड को अंजाम देने के आरोप में0 19 दिसंबर 1927 को अलग-अलग जिलों में फांसी दी थी. हिंदुस्तान की आजादी के लिए इन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया था. 19 दिसंबर को देश के अलग-अलग कोनों में इन्हीं शहीदों याद किया जाता है. काकोरी कांड के तीन शहीद अशफाक उल्ला खान, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह शाहजहांपुर के हैं. 19 दिसंबर को शाहजहांपुर में अशफाक उल्ला खान की मजार पर विशेष कार्यक्रम किया जाता है और उनको याद किया जाता है.