पटना: पटना से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर स्थित नौबतपुर के तरेत पाली मठ में बागेश्वर सरकार पंडित धीरेंद्र शास्त्री का दरबार 13 मई से 17 मई तक लगने वाला है. बिहार के प्राचीनतम मठों में से एक तरेत पाली मठ इस कारण सुर्खियों में बना हुआ है. एक तरफ बागेश्वर सरकार के कथा वाचन की भव्य तैयारी हो रही है तो दूसरी तरफ आरजेडी इसका विरोध कर रही है. वहीं नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने तो लालू यादव को इस मठ में जाकर प्रवचन सुनने की सलाह तक दे डाली है. ऐसे में आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लालू यादव का इस मठ से गहरा नाता है. लालू इसे अपना दूसरा घर मानते हैं.
तरेत पाली मठ की जमीन बांटना चाहते थे लालू: दरअसल लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री थे तो इस मठ की जमीन गरीबों में बांटने की कोशिश की थी. हालांकि पटना उच्च न्यायालय के फैसले से लालू की कोशिश नाकाम हो गई. हाईकोर्ट के फैसले के बाद लालू प्रसाद यादव तरेत पाली मठ पहुंचे और वहां के साधु संतो की सहानुभूति लेने की कोशिश की. जिस मठ को नेस्तनाबूद करने के लिए लालू प्रसाद यादव ने मठ के चारों तरफ पुलिस की घेराबंदी करवा दी थी, बाद में उस मठ को लेकर उनके विचार ही बदल गए.
कुछ नेताओं ने मठ को लेकर गलतफहमी पैदा की थी: तरेत पाली मठ के स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज ने बताया कि घटना वर्ष 1999 की है. लालू प्रसाद यादव को उन्हीं की पार्टी के कुछ नेताओं ने मठ के बारे में गलत जानकारी दी थी. लालू यादव के मन में इस मठ के प्रति गलत भावना प्रकट किया गया था. नेताओं ने उन्हें समझा दिया था कि मठ के जमीन को अगर वहां के गरीबों के बीच बांट दिया जाए तो इससे पार्टी को राजनीतीक लाभ मिलेगा और वोट बैंक बढ़ेगा. इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने मठ के लगभग 66 एकड़ उपजाऊ भूमि की आम जनों में पर्चा बटवा दिया. इसके बाद हमने निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया जहां से जीत मिली. उसके बाद भी सरकार नहीं मानी और जमीन आम लोगों में बांटती रही और मठ को पुलिस छावनी मे तब्दील कर दिया गया. मठ के स्वामी उच्च न्यायालय पहुंचे.
कोर्ट के फैसले के बाद लालू की हुई किरकिरी: मामले की गम्भीरता को देखते हुए उच्च न्यायालय ने उस पर स्टे लगा दिया. वर्ष 2002 में मुकदमे का फैसला मठ के पक्ष में आया. ऐसे में लालू प्रसाद यादव ने देखा कि गरीबों में जमीन का बंटवारा नहीं हुआ. वहीं मठ के हस्तक्षेप मामले में उनकी किरकिरी होने लगी. ऐसे में लालू यादव खुद मठ पहुंचे. वहां जाकर वहां के स्वामी से मुलाकात की. लालू ने स्वामी से माफी भी मांगी. साथ ही वहां के लोगों से माफी मांगी और कहा कि उनके मन में कुछ लोगों ने जाति धर्म के भावना को लेकर गलत संदेश दिया, जिससे आहत होकर उन्होंने यह फैसला लिया था.
"लालू प्रसाद जब मठ आए तो उन्होंने देखा कि यहां सभी धर्म, जाति के लोग बैठते हैं और विद्यालय में पढ़ाई करते हैं. इसके बाद उनका भ्रम दूर हुआ. जब लालू जी ने मठ के जर्जर विद्यालय भवन को देखा तो उन्होंने वहीं से सरकारी कोष से लगभग 55 लाख रुपए देने की घोषणा की. साथ ही उस समय के तत्कालीन डीएम को भी हर संभव सरकारी मदद करने के आदेश दिया. इस मठ के सबसे पहले राजनेता भक्त, लालू यादव बन गए."-स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज, मठाधीश, तरेत पाली मठ
मठ को लालू ने बताया था अपना दूसरा घर: तरेत पाली मठ के स्वामी ने बताया कि एक बार लालू प्रसाद यादव अपनी बेटी मीसा भारती के साथ इस मठ में पहुंचे थे. यहीं पर लालू प्रसाद स्नान किए और हम सभी संतो के साथ बैठकर भोजन भी किया. मीसा भारती को पूरा मठ घुमाकर दिखाया और कहा कि अब यही मेरा दूसरा घर है.
आरजेडी कर रही बागेश्वर बाबा का विरोध: बता दें कि लालू यादव के बड़े बेटे तेजप्रताप यादव के द्वारा लगातार धीरेंद्र शास्त्री का विरोध किया जा रहा है. इसपर मठ के स्वामी का कहना है कि इन राजनीतिक बातों से कोई मतलब नहीं है. कौन क्या बोलता है उससे उनका कोई वास्ता नहीं वो राजनीति से दूर रहते हैं. आपको बता दें कि एक बार फिर से तरेत पाली मठ बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री के कारण सुर्खियों में हैं.
पांच दिनों तक कथा वाचन करेंगे बागेश्वर सरकार: धीरेंद्र शास्त्री का कार्यकर्म तरेत पाली मठ में आयोजित हो रहा है. 13 में से 17 मई तक हनुमंत कथा करेंगे. मठ से जुड़े लोगों का कहना है कि इस मठ में किसी भी तरह की जाति-पाति का भेदभाव नहीं है. यह मठ मुख्य मठ है और देश में इसके 336 मठ बताए जाते हैं. हर मठ से यही बात निकलकर आती है कि इस प्रांगण में कोई भी जाति धर्म का भेदभाव नहीं है.