हल्द्वानी: ऑपरेशन मेघदूत में 38 साल पहले शहीद हुए कुमाऊं रेजिमेंट के जवान चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर बुधवार को उनके आवास हल्द्वानी पहुंचेगा. शहीद परिवार उनके पार्थिव शरीर को लाए जाने का इंतजार कर रहा है. बताया जा रहा है कि मौसम खराब होने की वजह से सेना का हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पा रहा है. ऐसे में उनका पार्थिव शरीर कल लाए जाने की उम्मीद है.
जानकारी के मुताबिक, कश्मीर में बरसात होने के चलते सेना का हेलीकॉप्टर लैंड नहीं कर पाया है. जिसके चलते बुधवार तक उनके पार्थिव शरीर को लाए जाने की संभावना है. उनके आवास पर भारी सुरक्षा के बीच उनका पार्थिव शरीर लाए जाने का इंतजार किया जा रहा है. जहां सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. उनके आवास से लेकर रोड तक पूरी तरह से जिला प्रशासन ने तिरंगे से सजाया हुआ है. बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शहीद चंद्रशेखर के आवास पहुंचेंगे. जहां वे शहीद को श्रद्धांजलि देंगे.
खराब मौसम के चलते उड़ान नहीं भर पा रहा हेलीकॉप्टरः हल्द्वानी एसडीएम मनीष कुमार (Haldwani SDM Manish Kumar) ने बताया कि शहीद चंद्रशेखर हरबोला का पार्थिव शरीर अभी भी लेह के सैनिक हेड क्वार्टर में रखा हुआ है. जहां मौसम खराब होने के चलते सेना का हेलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर पा रहा है. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि बुधवार का उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी पहुंचेगा. जहां सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
ऑपरेशन मेघदूत में शामिल बद्री दत्त उपाध्याय ने साझा किए अनुभवः शहीद चंद्रशेखर हरबोला (operation meghdoot martyr Chandrashekhar) के ऑपरेशन मेघदूत के साथी रहे बद्री दत्त उपाध्याय ने अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने कहा कि जिस समय यह घटना हुई थी, उस समय वो उनके साथ मौजूद थे. 38 साल पहले 29 मई 1984 को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot in Siachen) के दौरान चंद्रशेखर शहीद हो गए थे. जिसमें 19 जवान शामिल थे, जहां बाकी जवानों की बॉडी मिल गयी थी, जबकि पांच जवान लापता हो गए थे. उनको ढूंढने का काफी प्रयास किया गया, लेकिन अब 38 साल बाद उनकी बॉडी मिली है.
एवलांच की चपेट में आए थे जवानः बद्री दत्त उपाध्याय ने बताया कि ये ऑपरेशन काफी मुश्किल था. कुमाऊं रेजीमेंट की 19 कंपनी को गेंवला ग्लेशियर में कब्जा करने का टास्क मिला. जब ऑपरेशन के दौरान रात हुई तो एक जगह 16 जवानों की टीम रुकी थी. तभी सुबह के समय एवलांच आ गया. जिससे एक अफसर और 16 जवान बर्फ के नीचे दब गए. जिसमें चंद्रशेखर हरबोला समेत कुछ लोगों के पार्थिव शरीर नहीं मिले. अब जाकर उनकी बॉडी मिली है.
38 साल पहले किया था अंतिम संस्कार: जब ऑपरेशन मेघदूत चला था, तब चंद्रशेखर हरबोला की उम्र सिर्फ 28 साल थी. उनकी दोनों बेटियां बहुत छोटी थी. परिजनों ने चंद्रशेखर का अंतिम संस्कार पहाड़ के रीति रिवाज के हिसाब से किया था, लेकिन अब 38 साल बाद उनका पार्थिव शरीर सियाचिन में खोजा गया है, जो बर्फ के अंदर दबा हुआ था. जब वे ड्यूटी पर जा रहे थे, तब उन्होंने अपनी पत्नी से जल्द वापस आने का वादा किया था.
चंद्रशेखर की शहादत पर परिवार को गर्व: चंद्रशेखर हरबोला की पत्नी शांति देवी (Chandrashekhar wife Shanti Devi) की आंखों के आंसू अब सूख चुके हैं. क्योंकि उनको पता है कि उनके पति (Saheed Chandrashekhar harbola) अब इस दुनिया में नहीं हैं. गम उनको सिर्फ इस बात का था कि आखिरी समय में उनका चेहरा नहीं देख सकी.
पिता का चेहरा याद नहीं, अब देखेंगे चेहराः वहीं, उनकी बेटी कविता पांडे ने कहा पिता के शहीद होने के समय वो बहुत छोटी थी. ऐसे में उनको अपने पिता का चेहरा याद नहीं है. अब जब उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा, तभी जाकर उनका चेहरा देख सकेंगे. उनकी मौत का गम तो उनके पूरे परिजनों को है, लेकिन गर्व इस बात का है कि उन्होंने अपनी जान देश की रक्षा के लिए गंवाई है.
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