नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बृहस्पतिवार को बैठक के लिए बुलाए गए जम्मू कश्मीर से 14 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे आजाद ने कहा कि संवाद की प्रक्रिया सिर्फ एक शुरुआत है. पूर्ववर्ती राज्य में विश्वास और भरोसा कायम करने की जिम्मेदारी अब केंद्र की है.
पूर्व मुख्यमंत्री आजाद ने एक साक्षात्कार में कहा कि वहां एक बात थी कि सभी को खुलकर बोलने को कहा गया. मुझे लगता है कि सभी नेताओं ने बेहद खुलेपन से अपनी बात रखी और महत्वपूर्ण बात यह कि किसी को लेकर कोई गलत मंशा नहीं थी. आजाद (72) ने कहा कि उन्होंने बैठक में यह स्पष्ट किया कि जम्मू कश्मीर के लिए केंद्र शासित क्षेत्र का दर्जा स्वीकार्य नहीं है. जिसका वहां मौजूद सभी राजनेताओं ने समर्थन किया. आजाद के अलावा तीन और पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती भी इस बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.
आजाद ने कहा कि इसलिए हमने अपनी बात स्पष्ट कर दी. हम चाहते थे कि पहले राज्य का दर्जा बहाल किया जाए और उसके बाद चुनाव होने चाहिए. स्वाभाविक रूप से उन्होंने (केंद्र ने) प्रतिक्रिया नहीं दी लेकिन सभी राजनीतिक दलों का संयुक्त रुख था कि पहले राज्य का, पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए और फिर उसके बाद चुनाव होने चाहिए. यह पूछे जाने पर कि केंद्र द्वारा पहले राज्य का दर्जा देने की मांग पर सहमत होने की कितनी गुंजाइश है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता आजाद ने कहा कि वह आशावादी हैं और कम से कम उन्होंने इनकार नहीं किया.
उन्होंने कहा कि और मुझे लगता है कि चीजें अब बदल गई हैं. प्रधानमंत्री ने जितना समय दिया, उन्होंने बीती बातों को भूल जाने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. इस बैठक ने चिंताओं और मुद्दों को समझने का महत्वपूर्ण अवसर दिया. प्रधानमंत्री के साथ इन नेताओं की बैठक करीब साढ़े तीन घंटे चली. आजाद ने कहा कि मुझे लगता है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री बोले कि बीती बातों को भूल जाइए और हमें शांति लानी है तथा दिल्ली और जम्मू कश्मीर के बीच विश्वास के नए पुल बनाने हैं, वह महत्वपूर्ण है.
प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि वह चाहेंगे कि राजनीति वहां मौजूद राजनीतिक दलों द्वारा की जाए और वह सहयोग करेंगे. कांग्रेस नेता ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री या गृह मंत्री कुछ ऐसा करेंगे जो उन्हें (जम्मू कश्मीर के राजनेताओं को) स्वीकार्य होने के विरोधाभासी हो. जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित करने और विशेष दर्जा खत्म किए जाने के करीब दो साल बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्ववर्ती राज्य के सियासी नेताओं से पहली बार बातचीत की. कहा कि केंद्र की प्राथमिकता वहां जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत बनाने की है, जिसके लिए परिसीमन तेजी से किया जाना है. ताकि चुनाव कराए जा सकें.
यह पूछे जाने पर कि क्या पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य के नेताओं को बैठक के लिए बुलाना केंद्र की नीति में बदलाव को दर्शाता है. आजाद ने कहा कि स्पष्ट रूप से कहूं तो मुझे नहीं पता कि क्या कोई नीति थी क्योंकि मुझे कोई नीति नहीं नजर आई. उन्होंने कहा कि विशेष दर्जा रद्द कर देना, राज्य को केंद्र शासित क्षेत्र में बांट देना और विपक्षी नेताओं की सुरक्षा व घर वापस ले लेना नीति नहीं हो सकती. जैसे कि उनकी (केंद्र की) कोई नीति नहीं थी, जिसकी वजह से राज्य को सबसे अधिक नुकसान हुआ, कोई नीति नहीं होने के कारण.
उन्होंने कहा कि अगर आप एक व्यवस्था हटाते हैं तो दूसरी व्यवस्था उसकी जगह नहीं लेती. आपने मंत्रियों को हटा दिया, सरकार को भंग कर दिया. आपने विधायकों को हटा दिया. क्या अधिकारी मंत्रियों की जगह ले सकते हैं. क्या अधिकारी विधायकों की जगह ले सकते हैं. क्या अधिकारी जाकर जनसभाओं और जनसुनवाई में हिस्सा ले सकते हैं. क्या अधिकारी दैनिक आधार पर मिल सकते हैं और 10 से 12 घंटे उपलब्ध रह सकते हैं? जवाब है नहीं. एक पूरी व्यवस्था को मार दिया गया और उसकी जगह कोई नई व्यवस्था नहीं लाई गई.
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जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने पर कांग्रेस पार्टी का रुख पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 5 अगस्त 2019 को दो चीजें हुईं. राज्य का दर्जा कम कर उसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बांटा गया तथा अनुच्छेद 370 को रद्द किया गया. उन्होंने कहा कि इसलिए क्योंकि यह (अनुच्छेद 370) उच्चतम न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है हम सार्वजनिक रूप से इसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहेंगे. वहीं राज्य के दर्जे का मामला उच्चतम न्यायालय में नहीं है, इसलिए हम इसकी मांग कर रहे हैं.
(पीटीआई-भाषा)