अयोध्या: रामलला के गर्भगृह के निर्माण का काम पूरा हो चुका है और अब इसे अंतिम तौर पर सजाया और संवारा जा रहा है. 15 जनवरी से यहां विधिवत पूजन और अनुष्ठान आरंभ होने हैं. इससे पहले यहां काम कर रहे इंजीनियर और कारीगर पूरी तन्मयता के साथ काम में जुटे हैं. वह नहीं चाहते कि कहीं किसी भी प्रकार की कोई कमी रह जाए. गर्भगृह के सफेद संगमरमर पर मूर्तियां उकेरने वाले इंजीनियर बताते हैं कि उन्हें भी 22 जनवरी का इंतजार है. गर्भगृह में मूर्तियों की नक्काशी का काम देख रहे अभियंता प्रांशू गहलोत से ईटीवी भारत संवाददाता ने बातचीत की और जाना कि किस तरह से मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान किया जा रहा है.
प्रांशू बताते हैं कि वह सफेद मार्बल पर नक्काशी का काम करते हैं. पहले भी उन्होंने कई मंदिरों के लिए काम किया है. इस वक्त राम मंदिर के गर्भगृह में नक्काशी का काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि जहां पर रामलला विराजमान होंगे, उस द्वार पर काफी मूर्तियों की नक्काशी की जा रही है. जैसे ब्रह्मांड के रचना में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर लेटे रहते हैं और ब्रह्मा जी, शिव जी, लक्ष्मी जी गरुड़ और नारद जी साक्षात शेष नाग पर वर्णन किया जाता है. इसी तरह की मूर्ति की नक्काशी की जा रही है, जहां श्री राम विराजमान होंगे, उस द्वार के ऊपर. इसके साथ ही काफी देवांगनाएं, गंगा और यमुना आदि की मूर्तियों की भी नक्काशी की जा रही है.
पहले गेट पर भगवान विष्णु का पूरा वर्णन
प्रांशू बताते हैं कि जहां रामलला विराजेंगे, उसे द्वारशाख कहा जाता है. जो पहला गेट आता है, उस पर भगवान विष्णु का पूरा वर्णन किया गया है. यहां ब्रह्माण की रचना के समय का तीनों लोकों का समागम दिखाया गया है. द्वार के दोनों ओर देवांगनाएं, द्वारपाल, चंवरधारी और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों की नक्काशी सफेद मार्बल पर की गई है. इसके साथ ही द्वार के दोनों ओर कोलिकोक आता है, जिसकी एक ओर गणपति विराजमान हैं. गणपति के दोनों ओर ऋद्धि-सिद्धि बनाई गई हैं. सभी मार्बल की मूर्तियों पर लाइव नक्काशी की गई है. द्वार के दूसरी ओर हनुमान जी और सुग्रीव की प्रतिमाएं बनाई गई हैं. उनके दोनों ओर अंगद और जामवंत की प्रतिमाएं बनाई गई हैं. नीचे की ओर तमाम हाथी और नल-नील व अन्य प्रतिमाएं उकेरी गई हैं. वह बताते हैं कि सफेद मार्बल पर जो आइकोनोग्राफी का काम किया जा रहा है, वह जहां रामलला विराजेंगे, उसी स्थान पर की जा रही है. बाकी स्थानों पर लाल पत्थर से मूर्तियां बनाई जा रही हैं.
राम मंदिर में गर्भगृह का काम पूरा हो चुका
इंजीनियर प्रांशू गहलोत कहते हैं कि गर्भगृह का हमारा काम सौ प्रतिशत हो चुका है. जैसा उत्साह अन्य लोगों में है, ठीक उसी प्रकार का उत्साह हमारे भीतर भी है. इस समय जो छोटी-मोटी बारिकियां रह गई हैं, उसका काम कर रहे हैं. बाकी का काम पूरा हो चुका है. जब पूरा देश इस काम को देखागा, तो जो लोगों की भावना है, उम्मीद है वह उसी रूप में प्रकट होकर आएगा. वह बताते हैं कि उनकी टीम में अधिकांश कारीगर राजस्थान से हैं. मुख्यतः: इनकी टीम वाइट मार्बल पर आइकोनोग्राफी और इनले का काम करती है. अभी यह काम भूतल पर किया जा रहा है. कारीगरों की बात करें, तो इनमें कोई राजस्थान का है, तो कोई उड़ीसा का. सभी भारतीय ही हैं, जो यह काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि उनकी कंपनी की तीसरी पीढ़ी मंदिरों के लिए संगमरमर तराशी का काम कर रही है. देश के तमाम बड़े मंदिरों में वह काम कर चुके हैं. इनले के काम के विषय में वह बताते हैं कि यह एक प्रकार की रंगोली होती है. इसे मार्बल के अंदर खुदाई और अलग-अलग पत्थर लगाकर किया जाता है. इनले वर्क के अंदर जितने भी पत्थर उपयोग किए जाते हैं, वह राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं.
मंदिर निर्माण में ज्यादातर राजस्थान के सैंडस्टोन का काम
प्रांशू गहलोत बताते हैं कि राम मंदिर के तीन प्रमुख मंडपों में इनले का काम देखने को मिलेगा. जैसे ही हम राम मंदिर में प्रवेश करेंगे, तो सबसे पहले नृत्य मंडप आता है. नृत्य मंडप से थोड़ा आगे चलें तो रंग मंडप आता है. इसके दोनों ओर भी छोटे-छोटे इनले के काम किए गए हैं. जैसे-जैसे हम आगे राम लला की ओर बढ़ेंगे, जहां द्वारशाख का काम किया जा रहा है, वहां एक बड़ा मंडप आता है, जिसे गुण मंडप कहा जा रहा है. इस तरह उत्तर और दक्षिण में भी दो मंडप रखे गए हैं. प्रार्थना मंडप और कीर्तन मंडप. भूतल पर इन सभी स्थानों पर इनले का काम किया गया है, जो रामलला के इस मंदिर की सुंदरता को और निखारेगा. वह बताते हैं कि मंदिर निर्माण में ज्यादातर राजस्थान के सैंडस्टोन का काम हुआ है. दूसरे नंबर पर सफेद मार्बल का काम दिखाई देगा. यहां जो भी पत्थर उपयोग किए जा रहे हैं, ज्यादातर राजस्थान से ही लाए गए हैं.
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