नई दिल्ली: गृह मंत्रालय (MHA) ने विशेषकर पूर्वोत्तर राज्यों में तैनात असम राइफल्स के जवानों के लिए स्थानीय बोली सीखने पर जोर दिया है. मंत्रालय का मानना है कि खुफिया जानकारी एकत्र करने में स्थानीय बोली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. ऐसे में खासकर इस इलाके में तैनात किए जाने वाले जवानों का स्थानीय बोली जानना जरूरी है.
असम राइफल्स के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया,'हमने पहले ही कोहिमा (नागालैंड) में नागामी भाषा पाठ्यक्रम, सेरचिप (मिजोरम) में लाई भाषा पाठ्यक्रम, लुंगलेई (मिजोरम) में मारा भाषा पाठ्यक्रम, आइजोल (मिजोरम) में हमार और लुशाई भाषा पाठ्यक्रम और म्यांमार भाषा पाठ्यक्रम प्रशिक्षण दीमापुर में असम राइफल्स प्रशिक्षण केंद्र और स्कूल में शुरू कर दिया है.'
अधिकारी ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों की अधिक स्थानीय भाषाओं को सीखने के लिए अतिरिक्त पहल पहले ही की जा चुकी है. अधिकारी ने कहा, 'कई मौकों पर स्थानीय बोलियां सीखना बहुत उपयोगी साबित हुआ.' अधिकारी ने मणिपुर में हाल ही में हुए जातीय संघर्ष का जिक्र करते हुए स्वीकार किया कि स्थानीय भाषाओं को समझने में असमर्थता ने सुरक्षाकर्मियों के लिए कई चुनौतियां खड़ी कीं.
अधिकारी ने बताया,'हालांकि, असम राइफल्स में हमारे पास कई अधिकारी हैं जो स्थानीय हैं. वास्तव में उनकी उपस्थिति ने हमें स्थानीय लोगों के साथ उनकी अपनी भाषाओं में बातचीत करके स्थिति को संभालने में मदद की है.' संपर्क करने पर गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि असम राइफल्स के कर्मियों को विभिन्न स्थानों पर स्थानीय भाषाओं के पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि वे स्थानीय स्तर पर खुफिया जानकारी जुटाने के लिए स्थानीय आबादी को समझने और उनसे बातचीत करने में सक्षम हो सकें.
गृह मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, 'खुफिया जानकारी जुटाने के लिए स्थानीय भाषाओं का ज्ञान बहुत जरूरी है.' गृह मंत्रालय की राय थी कि चूंकि असम राइफल्स ज्यादातर पूर्वोत्तर क्षेत्र में काम करती है, इसलिए भर्ती के समय पूर्वोत्तर के स्थानीय लोगों को भी प्राथमिकता दी जा सकती है. हालाँकि, इसे असम राइफल्स की कार्यात्मक आवश्यकताओं के आधार पर बनाया जाना चाहिए, ताकि बल की दक्षता पूर्वोत्तर क्षेत्र से रंगरूटों की कमी से प्रभावित न हो.'