नई दिल्ली: असम में बेदखली के 3 लाख पीड़ित परिवारों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों ने गुरुवार को राज्य सरकार को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने की धमकी दी है. साथ ही उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) प्रमुख के अलावा बदरुद्दीन अजमल और राज्य के अन्य उद्योगपति के हितों की रक्षा करने का भी आरोप लगाया है. इस संबंध में सिल्साको में बेदखली के पीड़ित बिद्युत कलिता ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के आदेश पर असम सरकार बदरुद्दीन अजमल, हिम्मत सिंहका और अन्य कॉर्पोरेटों को सिल्साको क्षेत्र में उनकी संपत्तियों को न छूकर सुरक्षा प्रदान कर रही है.
उन्होंने कहा कि अगर राज्य सरकार ने बेदखली अभियान नहीं रोका तो पीड़ित परिवारों के सदस्य संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाएंगे. बता दें कि इस साल मार्च से असम सरकार ने जल निकायों, झीलों को अतिक्रमण से मुक्त करने के लिए गुवाहाटी में सिल्साको बील (झील) वेटलैंड सहित पूरे असम में बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान शुरू किया है. वहीं असम में अधिकारियों ने दावा किया कि आर्द्रभूमि और चैनलों का अतिक्रमण कई जिलों में जलभराव का एक प्रमुख कारण माना जाता है. कलिता ने कहा, 'सरकार केवल गरीबों को निशाना बना रही है. जबकि बदरुद्दीन अजमल और अन्य की बहुमंजिला इमारतें हैं जिन्हें छुआ भी नहीं गया है.'
उन्होंने दावा किया कि अहोम, गरिया मोरिया, कलिता, बोडो सहित असम के मूल निवासी दशकों से सिल्साको में रह रहे हैं. सरकार का लक्ष्य सिलसाको क्षेत्र की 13 एकड़ जमीन से परिवारों को बेदखल करना है, जिसमें 3,000 परिवार रहते हैं. असम सरकार ने एक हालिया आदेश में कहा है कि जैव विविधता को बनाए रखने और कृत्रिम बाढ़ के साथ-साथ सूखे से सुरक्षा के लिए राज्य में आर्द्रभूमि और जल निकायों के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र को उसके प्राकृतिक रूप में संरक्षित करने की आवश्यकता है. असम के शहरी मामलों के मंत्री अशोक सिंघल ने बताया कि राज्य में कई आर्द्रभूमि और जल निकाय में अतिक्रमण है.
उन्होंने कहा कि इस अतिक्रमण के कारण राज्य के कई हिस्सों में कृत्रिम बाढ़ आ रही है. इस वजह से सरकार आर्द्रभूमि के संरक्षण को लेकर गंभीर है. हालांकि, असम सरकार के बेदखली अभियान के खिलाफ आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है. कलिता ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों राज्य के मूल लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की बात करती हैं. लेकिन सिल्साको में सरकार एक अलग दिशा में कार्रवाई कर रही है.
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