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उत्तराखंडः सेना का स्वॉर्ड ऑफ ऑनर सम्मान तैयार कर रहे जसवीर सिंह, सद्दाम हुसैन भी रह चुके हैं मुरीद - सरदार जसवीर सिंह

सेना का स्वॉर्ड ऑफ ऑनर के रूप में दिए जाने वाली तलवार को देहरादून में 1968 से तैयार कर रहे हैं. यह सम्मान सेना में उत्कृष्ठ कार्य करने वाले व इंडियन मिलिट्री एकेडमी में बेस्ट ट्रेनिंग का खिताब पाने वाले जेंटलमैन कैडेट को भी दिया जाता है.

sword of honor
स्वॉर्ड ऑफ ऑनर
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Published : Aug 14, 2022, 12:41 PM IST

देहरादूनः भारतीय सेना में उत्कृष्ट कार्यों के लिए दिए जाने वाला सम्मान 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' (Sword of Honor) की तलवार को पाने का सपना हर जवान का होता है. इस सम्मान चिन्ह को 1968 से देहरादून में तैयार किया जा रहा है. देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी (Indian Military Academy) में बेस्ट ट्रेनिंग का खिताब पाने वाले जेंटलमैन कैडेट को भी पासिंग आउट परेड में इस 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' तलवार से सम्मान देकर नवाजा जाता है.

देशभर में सेना के अलग-अलग इवेंट से लेकर राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त और 26 जनवरी में शामिल होने वाले उत्कृष्ट सेवा ऑफिसर के हाथों में भी यह तलवार सम्मान चिन्ह के रूप में नजर आती है. सेना के सम्मान चिन्हों से लेकर मोमेंटो वाले सामान को तैयार करने में खानदानी पेशे से जुड़े सरदार जसवीर सिंह (Sardar Jasveer Singh) बताते हैं कि देश बटवारें से पहले वे लोग पाकिस्तान के एबटाबाद में रॉयल इंडिया मिलिट्री के लिए यह तलवार बनाते थे. उसके बाद 1968 से देहरादून रेस कोर्स और घंटाघर के समीप अन्य तलवारों के साथ ही सेना की 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' वाली तलवार तैयार कर रहे हैं.

सेना का स्वॉर्ड ऑफ ऑनर सम्मान तैयार कर रहे जसवीर सिंह.

उम्दा कारीगरों की कलाकारीः भारतीय सेना में 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' सम्मान में मिलने वाली इस ऐतिहासिक तलवार को उम्दा कारीगरों द्वारा बड़ी मेहनत के साथ तैयार किया जाता है. जसवीर सिंह के मुताबिक, सबसे पहले बेहतरीन क्वालिटी लोहे पट्टे को नापतोल कर काटा जाता है. उसके बाद लोहे की कटाई छटाई कर पीटा जाता है. दूसरे चरण में तलवार का रूप देकर उनको अलग-अलग तरह से फिनिशिंग दिया जाता है.
ये भी पढ़ेंः सीडीओ को हनक दिखानी पड़ी भारी, बदसूलकी के लिए सभासदों से मांगी माफी

तीसरे चरण में तलवार की म्यान (कवर) को कुछ हिस्सों में तैयार किया जाता है. उधर दूसरी तरफ सेना के सम्मान प्रतीक चिन्ह 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' की तलवार को अलग-अलग कारीगर अपनी कलाकारी से ऐसा रूप देते हैं, जिसका कोई जवाब नहीं. अंत में इस तलवार का हैंडल सुविधाजनक ढंग से तैयार किया जाता है और उसके बाद कलाई में फंसने वाले हिस्से को बनाया जाता है.

सद्दाम हुसैन की नायाब स्मृतियां भी तैयार कीः हस्तकला के माहिर सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक, उनके पिता जोध सिह द्वारा इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की पीतल व चांदी की म्यान तैयार की गई थी. इस कार्य से सद्दाम इतना खुश हुआ कि उसने अपने लिए सोने की बंदूक भी जोध सिह से स्पेशल डिमांड देकर बनवाई.

देश सेवा में योगदानः सैनिक सम्मान के चिन्ह को तैयार करने के खानदानी पेशे से जुड़े सरदार जसवीर सिंह बताते हैं कि 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' की तलवार को तैयार करने में पांच से साढ़े हजार रुपए का खर्चा आता है. इस काम में कमाई से ज्यादा इस बात की खुशी होती है कि वह देश सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं. वह देश के वीर सैनिकों के सम्मान में यह तलवार तैयार कर रहे हैं.

देहरादूनः भारतीय सेना में उत्कृष्ट कार्यों के लिए दिए जाने वाला सम्मान 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' (Sword of Honor) की तलवार को पाने का सपना हर जवान का होता है. इस सम्मान चिन्ह को 1968 से देहरादून में तैयार किया जा रहा है. देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी (Indian Military Academy) में बेस्ट ट्रेनिंग का खिताब पाने वाले जेंटलमैन कैडेट को भी पासिंग आउट परेड में इस 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' तलवार से सम्मान देकर नवाजा जाता है.

देशभर में सेना के अलग-अलग इवेंट से लेकर राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त और 26 जनवरी में शामिल होने वाले उत्कृष्ट सेवा ऑफिसर के हाथों में भी यह तलवार सम्मान चिन्ह के रूप में नजर आती है. सेना के सम्मान चिन्हों से लेकर मोमेंटो वाले सामान को तैयार करने में खानदानी पेशे से जुड़े सरदार जसवीर सिंह (Sardar Jasveer Singh) बताते हैं कि देश बटवारें से पहले वे लोग पाकिस्तान के एबटाबाद में रॉयल इंडिया मिलिट्री के लिए यह तलवार बनाते थे. उसके बाद 1968 से देहरादून रेस कोर्स और घंटाघर के समीप अन्य तलवारों के साथ ही सेना की 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' वाली तलवार तैयार कर रहे हैं.

सेना का स्वॉर्ड ऑफ ऑनर सम्मान तैयार कर रहे जसवीर सिंह.

उम्दा कारीगरों की कलाकारीः भारतीय सेना में 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' सम्मान में मिलने वाली इस ऐतिहासिक तलवार को उम्दा कारीगरों द्वारा बड़ी मेहनत के साथ तैयार किया जाता है. जसवीर सिंह के मुताबिक, सबसे पहले बेहतरीन क्वालिटी लोहे पट्टे को नापतोल कर काटा जाता है. उसके बाद लोहे की कटाई छटाई कर पीटा जाता है. दूसरे चरण में तलवार का रूप देकर उनको अलग-अलग तरह से फिनिशिंग दिया जाता है.
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तीसरे चरण में तलवार की म्यान (कवर) को कुछ हिस्सों में तैयार किया जाता है. उधर दूसरी तरफ सेना के सम्मान प्रतीक चिन्ह 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' की तलवार को अलग-अलग कारीगर अपनी कलाकारी से ऐसा रूप देते हैं, जिसका कोई जवाब नहीं. अंत में इस तलवार का हैंडल सुविधाजनक ढंग से तैयार किया जाता है और उसके बाद कलाई में फंसने वाले हिस्से को बनाया जाता है.

सद्दाम हुसैन की नायाब स्मृतियां भी तैयार कीः हस्तकला के माहिर सरदार जसवीर सिंह के मुताबिक, उनके पिता जोध सिह द्वारा इराक के पूर्व शासक सद्दाम हुसैन की पीतल व चांदी की म्यान तैयार की गई थी. इस कार्य से सद्दाम इतना खुश हुआ कि उसने अपने लिए सोने की बंदूक भी जोध सिह से स्पेशल डिमांड देकर बनवाई.

देश सेवा में योगदानः सैनिक सम्मान के चिन्ह को तैयार करने के खानदानी पेशे से जुड़े सरदार जसवीर सिंह बताते हैं कि 'स्वॉर्ड ऑफ ऑनर' की तलवार को तैयार करने में पांच से साढ़े हजार रुपए का खर्चा आता है. इस काम में कमाई से ज्यादा इस बात की खुशी होती है कि वह देश सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं. वह देश के वीर सैनिकों के सम्मान में यह तलवार तैयार कर रहे हैं.

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