इंदौर। झाबुआ जिले के गुड्डन-गुड़िया के भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोग दिवाने हैं. दरअसल झाबुआ के पहनावे और स्थानीय रहन-सहन का प्रतीक माने जाने वाली गुड्डन-गुड़िया अब जीआई टैगिंग के बाद जर्मनी, स्विट्जरलैंड और हांगकांग में भी बनाई जा सकेगी. दरअसल प्रवासी भारतीय सम्मेलन में कई विदेशी मेहमानों ने इस खास गुड़िया को विदेशों में भी तैयार करने की प्लानिंग की है, इतना ही नहीं बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीयों ने इसे मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचल की यादगार के रूप में खरीदा भी है.
झाबुआ की पहचान है गुड्डन-गुड़िया: झाबुआ और अलीराजपुर के पहनावे की विरासत के रूप में तैयार की जाने वाली गुड्डन-गुड़िया का निर्माण 1980 में यहां के रहवासी उद्धव गिरवानी ने शुरू किया था. धीरे-धीरे यह गुड़िया गिफ्ट के तौर पर दी जाने लगी. इसके बाद झाबुआ में खुले शक्ति एंपोरियम के जरिए करीब एक दर्जन स्थानीय कलाकार इस गुड़िया का निर्माण करने लगे. झाबुआ के पारंपरिक पहनावे और सुंदर स्वरूप में तैयार की जाने वाली गुड़िया अब संबंधित अंचल की पहचान है.
प्रवासी भारतीय सम्मेलन में लगा था स्टॉल: कपड़ा और तार से बनाई जाने वाली यह गुड़िया सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. हाल ही में झाबुआ की गुड्डन गुड़िया का स्टॉल इंदौर में आयोजित प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भी लगा, जहां पहुंचे कई सारे प्रवासी भारतीयों ने इस गुड़िया को इंदौर की यादगार के रूप में खरीदा. इस दौरान हांगकांग की NRI अदिति ने इस गुड़िया को प्रोटोटाइप में नए सिरे से बनाने की प्लानिंग की है.
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विदेशों में गुड़िया बनाने की प्लानिंग: हांगकांग वहीं जर्मनी और स्विट्जरलैंड के प्रवासी भारतीयों ने भी अपनी परंपरा और कल्चर के हिसाब से इस गुड़िया को संबंधित देशों में बनाने की प्लानिंग की है. इस गुड़िया को दूसरी पीढ़ी में बनाने वाले सुभाष गिरवानी बताते हैं कि ''अलीराजपुर के पहनावे की चर्चित परंपरा के रूप में इसे बनाया जा रहा है. कपड़ा और तार से बनाई जाने वाली इस गुड़िया को दिन भर में एक कारीगर चार गुड़िया ही बना पाता है''. फिलहाल इस गुड़िया की जीआई टैगिंग भी करा रहे हैं जिससे कि मध्यप्रदेश की विरासत दुनिया भर में पहचानी जा सके.