श्रीनगर: सेना की 15वीं कोर के निवर्तमान कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडेय ( Lieutenant General D P Pandey) ने गुरुवार को कहा कि सेना को युद्धविराम की जरूरत नहीं है, लेकिन संघर्षविराम सीमा पर रहने वालों को शांतिपूर्ण जीवन जीने में मदद करता है. आज यहां चिनार काेर मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कोर कमांडर ने ईटीवी भारत से कहा कि सेना को युद्धविराम की आवश्यकता नहीं है. यह सेना की मदद नहीं करता है. हालांकि, एलओसी या सीमा पर रहने वाले लोगों का दोनों तरफ शांतिपूर्ण जीवन होता है.
उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में सबसे बड़ा परिवर्तन यह हुआ कि कश्मीर के लोग और विशेष रूप से युवा आतंकवाद और आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ मुखर होने लगे. लेफ्टिनेंट जनरल पांडेय ने कहा कि पहले लोग चुप रहते थे, लेकिन अब वे आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडेय को पिछले साल चिनार कोर कमांडर के रूप में कार्यभार संभाला था और कश्मीर घाटी में महत्वपूर्ण पद पर रहने के एक साल बाद अब उन्हें मध्यप्रदेश में इंदौर के पास स्थित महू स्थित सेना के वार कालेज के कमांडेंट के रूप में जिम्मेदारी दी गई है.
आत्मसमर्पण नीति के बारे में उन्होंने कहा कि आतंकवादियों के आत्मसमर्पण के लिए सेना की कोई आधिकारिक नीति नहीं है, लेकिन स्थानीय आतंकवादियों के लिए वे एक मौका प्रदान करते हैं ताकि वे वापस आ सकें और मुख्यधारा में शामिल हो सकें. लेफ्टिनेंट जनरल पांडेय ने बताया कि पिछले एक साल में लगभग 230 युवा जो या तो उग्रवाद में शामिल हो गए थे या शामिल होने वाले थे, उन्हें शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए वापस लाया गया. सचमुच यही मेरी उपलब्धि है. साथ ही उन्होंने कहा कि बाकी आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चलाने की गिनती नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि वह अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर में हिंसा के चक्र को काफी हद तक तोड़ने में सफल रहे.
उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या जैसा शब्द इस्तेमाल करना गलत है. कश्मीर समस्या नहीं है, कश्मीर में कभी जरूर समस्या थी, जिसे हमने स्थानीय लोगों के सहयोग से किसी हद तक समाप्त कर दिया है. जीओसी ने कहा कि चाहे वह भीतरी इलाकों में राष्ट्रीय राइफल्स हो या एलओसी पर सैनिक, दोनों ही कश्मीरी समाज के अंतरंग पक्ष थे. जीओसी ने कहा कि चाहे वह भीतरी इलाकों में राष्ट्रीय राइफल्स हो या एलओसी पर सैनिक, दोनों ही कश्मीरी समाज के अंतरंग पक्ष थे.
उन्होंने कहा कि एक तरफ वे मुठभेड़ों के दौरान आत्मसमर्पण सुनिश्चित करते हुए आतंकवादियों को मारते रहे और दूसरी तरफ युवाओं को हथियार उठाने से रोकने के प्रयास भी किए गए. उन्होंने कहा कि आज जम्मू-कश्मीर पुलिस को तकनीकी खुफिया जानकारी से ज्यादा मानवीय खुफिया जानकारी मिली है और ओवर ग्राउंड वर्कर्स सहित उग्रवादियों को समाज के अलावा किसी और को अलग-थलग किया जा रहा है.
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हाइब्रिड उग्रवादियों के बारे में एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी, एक दुकानदार या 15 या 16 साल की उम्र के छात्र की आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने की पहचान करना मुश्किल था. लेकिन अब समाज में लोगों में जागरुकता आ गई है और माता-पिता भी बच्चों पर कड़ी नजर रख रहे हैं ताकि वे गलत रास्ते पर न चले. उन्होंने कहा हमेशा अमरनाथ यात्रा को बाधित करने की धमकी दी जाएगी, लेकिन सुरक्षा व्यवस्था और किए गए उपाय ऐसी योजनाओं को हमेशा विफल कर देंगे.