जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट में आतंकवादी संगठन आईएस को भारत व बांग्लादेश सहित यूएई से धन एकत्रित करके सीरिया, तुर्की, इंस्ताबल व लेबनान में आतंकियों को हवाला के जरिए फंडिंग के आरोपी जमील अहमद की जमानत अर्जी पर दोनों पक्षों की बहस पूरी हो गई है. अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. जस्टिस अनिल उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.
मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से ही एएजी राजेश महर्षि ने बहस की. वहीं एनआईए की ओर से न तो इस मामले में कोई जवाब आया और न ही किसी ने पैरवी की. हालांकि गत सुनवाई पर एनआईए के अधिवक्ता टीपी शर्मा ने अदालत से आग्रह किया था कि यह मामला जांच के लिए एनआईए के पास आ रहा है, इसलिए एक महीने का समय दिया जाए, ताकि फाइल एनआईए के पास आने पर वे इसमें अपना वकालतनामा पेश कर सकें.
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जिस पर अदालत ने एनआईए को अंतिम मौका दिया था. जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान आरोपी की ओर से कहा कि वह साढ़े छह साल से जेल में बंद है और मामले के सह आरोपी इकबाल की जमानत हो चुकी है. इस मामले में उसका कोई लिंक नहीं है और केस की ट्रायल में समय लगेगा, इसलिए उसे जमानत दी जाए. जवाब में एएजी महर्षि ने कहा कि जमील ने आतंकवादी संगठनों को ट्रांजैक्शन किया है और इसके लिए अपनी पत्नी के मोबाइल का उपयोग किया था.
वहीं, सह आरोपी इकबाल को मिली जमानत रद्द करने के लिए भी राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर करेगी. यह मामला आतंकवादी संगठनों को हवाला के जरिए फंडिंग करने का है, जो देश की सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ गंभीर प्रकरण है. इसके अलावा मामले की ट्रायल जारी है और केवल दो गवाहों के बयान बाकी हैं. ऐसे में आरोपी को जमानत का लाभ नहीं दे सकते.
गौरतलब है कि एसओजी ने नवंबर 2016 में जमील अहमद को गिरफ्तार किया था और 2017 में उसके खिलाफ चालान पेश किया. वह जयपुर की सेंट्रल जेल में बंद है. जयपुर की निचली कोर्ट ने 11 सितंबर 2020 को उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी थी, जिसे उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी है.