नई दिल्ली : राजनीतिक रूप से संवेदनशील 64 करोड़ रुपये के बोफोर्स दलाली मामले (Bofors case) में सभी आरोपों को खारिज करने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर की गई है. हाई कोर्ट ने अपने 2005 के फैसले में तीन हिंदुजा बंधुओं - एसपी हिंदुजा, जीपी हिंदुजा और पीपी हिंदुजा तथा बोफोर्स कंपनी के खिलाफ सभी आरोपों को खारिज कर दिया था.
अधिवक्ता अजय अग्रवाल की ओर से दायर अर्जी में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने दो नवंबर, 2018 को हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई की याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि जांच एजेंसी फैसले के खिलाफ अग्रवाल द्वारा दायर अपील में सभी आधार रख सकती है. अग्रवाल ने कहा कि उन्होंने 2005 में ही हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी और इस 'घोटाले' को सामने आए तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है.
अर्जी में कहा गया है कि न्याय के हित में यह समयोचित है कि मामले की जल्द से जल्द सुनवाई की जाए. उन्होंने कहा कि बोफोर्स मामले में आरोपियों को अभी तक दंडित नहीं किए जाने से रक्षा क्षेत्र में घोटालों की पुनरावृत्ति हुई है.
याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत द्वारा नवंबर 2018 में आदेश सुनाया गया था, लेकिन तीन साल बीत जाने के बावजूद मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो नवंबर, 2018 के आदेश में हाई कोर्ट के 31 मई, 2005 के फैसले के खिलाफ अपील दायर करने में 13 साल की देरी को माफ करने को लेकर सीबीआई का अनुरोध ठुकरा दिया था. अदालत ने कहा था कि वह अपील दायर करने में विलंब को लेकर दिए गए कारण से आश्वस्त नहीं है.
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि हम याचिकाकर्ता द्वारा वर्तमान विशेष अनुमति याचिका दायर करने में 4,522 दिनों की अत्यधिक देरी के लिए दिए गए आधार से सहमत नहीं हैं.
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साल 2005 के फैसले से पहले, हाई कोर्ट ने चार फरवरी, 2004 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मामले में दोषमुक्त कर दिया था और बोफोर्स कंपनी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 465 के तहत जालसाजी का आरोप तय करने का निर्देश दिया था.
(पीटीआई-भाषा)