उत्तरकाशी : जनपद के भैरो-नेलांग घाटी के बीच में स्थित गरतांग गली को बीती 18 अगस्त को प्रशासन ने पुनर्निर्माण के बाद पर्यटकों के लिए खोल दिया था, जिसके बाद लगातार हर दिन स्थानीय लोग और पर्यटक गरतांग गली के दीदार के उमड़ रहे हैं. वहीं, गरतांग गली के खुलने के 20 दिन के भीतर ही कुछ लोगों ने इसकी लकड़ी की रेलिंग को बदरंग करना शुरू कर दिया है.
सोशल मीडिया पर गरतांग गली का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि लकड़ी की रेलिंग पर कुछ लोगों ने नाम कुरेद कर लिख दिए हैं. जिस पर पर्यटन से जुड़े होटल एसोसिएशन सहित अनघा माउंटेन एसोसिएशन के लोगों ने इस कार्य की निंदा करते हुए इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.
अनघा माउंटेन एसोसिएशन के संयोजक अजय पुरी सहित होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र मटूड़ा, सुभाष कुमाई और अन्य पर्यटन व्यवसायियों ने गरतांग गली की लकड़ी की रेलिंग को खराब करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है.
गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप पंवार का कहना है कि गरतांग गली को बदरंग करने का मामला संज्ञान में आया है. विभाग की और से इन लोगों को चिन्हित कर सख्त कार्रवाई की जाएगी.
गरतांग गली देखने पहुंच रहे पर्यटक
गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों के अनुसार गरतांग गली खुलने के बाद दो सप्ताह में करीब 350 से अधिक पर्यटक गरतांग गली का दीदार कर चुके हैं और पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप पंवार ने बताया कि 18 अगस्त से गरतांग गली के खुलने के बाद लगातार पर्यटक पहुंच रहे हैं. दो सप्ताह में 350 से अधिक पर्यटक गरतांग गली का दीदार कर चुके हैं.
भारत-चीन युद्ध के बाद से था बंद
बता दें कि करीब 59 वर्ष बाद गरतांग गली एक बार फिर आबाद हो गई है. भारत-तिब्बत की गवाह खड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई करीब 150 मीटर लम्बी सीढ़ीनुमा रास्ते का निर्माण 17वीं शताब्दी में जाडुंग गांव के सेठ धनी राम ने कामगारों से तैयार कराया था, जो कि चट्टान को काटकर उस पर लोहे की रॉड गाड़कर व लकड़ी के फट्टे बिछाकर बनाई गई थी. फिर चलन से बाहर होने पर यह खस्ताहाल हो गई थी. भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक रिश्तों की गवाह रही गली को 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सुरक्षा कारणों के चलते बंद कर दिया गया था.
उत्तराखंड सरकार ने कराया पुनर्निर्माण
हाल ही में लोक निर्माण विभाग ने करीब 65 लाख की लागत से इस गली का जीर्णोद्धार कराया है, जिसमें देवदार की लकड़ी से दोबारा सीढ़ीदार रास्ता तैयार किया गया है. गरतांग गली का फिर से खुलना उत्तरकाशी जनपद के पर्यटन के लिए एक मील का पत्थर साबित हो रहा है. साथ ही स्थानीय लोगों ने इस प्रयास के लिए दिवंगत विधायक गोपाल रावत की भूमिका को याद कर धन्यवाद किया.
गरतांग गली का दीदार करने पहुंचे थे त्रिवेंद्र
गौर हो कि अभी कुछ दिन पहले (27 अगस्त) ही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी गरतांग गली पहुंचे थे. उनका कहना था कि शीतकालीन पर्यटन की दृष्टि से यहां स्नो लेपर्ड पार्क व्यू भी स्थापित किया जा रहा है, जो लगभग आठ करोड़ की लागत से बनेगा. स्नो लेपर्ड पार्क व्यू आकर्षण का केंद्र बिंदु बनेगा और उससे पर्यटक तो बढ़ेंगे ही, साथ ही सैकड़ों स्थानीय लोगों को भी रोजगार मिलेगा.
सामरिक दृष्टि से संवेदनशील है क्षेत्र
बता दें कि गरतांग गली जनपद मुख्यालय से करीब 90 किमी की दूरी पर स्थित है. जनपद मुख्यालय से लंका पुल तक करीब 88 किमी वाहन और उसके बाद 2 किमी का पैदल ट्रैक कर गरतांग गली पहुंचा जा सकता है.
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वहीं, गरतांग गली से जाड़ गंगा सहित नेलांग घाटी को जाने वाली बॉर्डर रोड और घाटियों का दीदार भी होता है. नेलांग घाटी सामरिक दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है. उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है. सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जादूंग अंतिम चौकियां हैं.