सागर। कई विधाओं में महारत हासिल किए सागर के मोहन नगर इलाके के पंडित लोकनाथ मिश्र की बात करें, तो एक साहित्यकार और संगीतकार के तौर पर उन्होंने कई ऐसे शोध किए हैं, जो साहित्य और संगीत जगत की अनमोल धरोहर है. ऐसा ही कमाल पंडित लोकनाथ मिश्र ने आज के करीब 17 साल पहले हिंदी में रचा अमात्रिक छंद है. जिसे अब जाकर इंडिया बुक आफ रिकार्डस में शामिल किया गया है. कमाल की बात ये है कि अपनी युवावस्था में अमात्रिक छंद की रचना करने वाले लोकनाथ मिश्र को करीब 17 साल बाद ये पता चला कि उन्होंने ऐसी रचना रच दी, जिसे अभी तक हिंदी जगत में किसी ने नहीं रचा. 2022 में मां सरस्वती की प्रेरणा से उनके मन में विचार आया और उन्होंने रिकार्ड के लिए आवेदन किया और जांच पडताल के बाद उनका दावा मान लिया गया.
पंडित लोकनाथ मिश्र का अमात्रिक छंद: पंडित लोकनाथ मिश्र ने 1984-85 में अमात्रिक छंद की रचना की थी. इसकी सबसे खास बात ये है कि इस छंद में कोई भी मात्रा वाला शब्द नहीं है. इसके अलावा खास बात ये है कि इसे गाया भी जा सकता है और इस पर नृत्य भी किया जा सकता है. पंडित लोकनाथ मिश्र की रचना कुछ इस प्रकार है....
अनल-नयन-तल,धधकत दह -दह।
तपत गगन तन, तपन असह सह ।।
जरत सकल जग पल-पल पतझड़ ।
पवन चलत तब, सर-सर खड-खड़ ।।
जल,थल,नभ-चर,तड़पत बरबस ।
परत-परत फट,घलत अगन सर ।।
जतन करत नर, सजल नयन भर ।
भजन करत सब,भज नर हर-हर ।।
इस रचना की खूबी के बारे में पंडित लोकनाथ मिश्र मीत बताते हैं कि "इस रचना पर नृत्य भी किया जा सकता है और तांडव नृत्य में इसका उपयोग किया जा सकता है. साथ ही इसको गाया भी जा सकता है. ये तालबद्ध रूप से गाया जा सकता है. यह राग दरबारी तीन ताल में निबद्ध है. इस तरह गायक अगर चाहे तो गेय रचना और छंदबद्ध है.
साहित्य रचना के शुरूआती दौर में किया कमाल: पंडित लोकनाथ मिश्र की बात करें तो फिलहाल उनकी उम्र 74 वर्ष के करीब है और करीब 37 साल पहले उन्होंने ये रचना की थी. पंडित लोकनाथ मिश्र बताते हैं कि मेरी कविताओं के प्रारंभिक काल में मेरे लिए सरस्वती मां से प्रेरणा हुईं कि बिना मात्रा वाली रचना लिखो. सामान्य तौर पर लोग विभिन्न तरह की रचनाएं करते रहते हैं. तो मैनें भी प्रयास शुरू किया. मुझे करीब एक माह का समय लगा. शब्दों का भंडार अमात्रिक के हिसाब से चुनना पड़ा. उनको चुन-चुनकर अर्थ सहित रखना पड़ा. तब कहीं जाकर 1984-85 में ये रचना मैनें लिखी. तब सागर में होने वाली काव्य गोष्ठियों में मैंने ये रचना सुनाई. तब साहित्यकार शिव कुमार श्रीवास्तव थे, उन्होंने मेरी रचना सुनकर बहुत पीठ थपथपायी और कहा कि जब इतनी कम उम्र में इतना अच्छा लिख रहे हो, निश्चित रूप से तुम्हारा भविष्य उज्जवल है."
17 साल बाद पता चला कि बड़ा काम कर दिया: पंडित लोकनाथ मिश्र बताते हैं कि मैंने अमात्रिक छंद लिखा था, लेकिन मुझे पता नहीं था कि ऐसा किसी ने पहले कभी नहीं किया. सबसे पहले मैनें 2002 में जब आशुकवि पद्म श्री पंडित कुंजबिहारी शुक्ल को रचना सुनाई, तो वो बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरे प्रोत्साहन के लिए दो पक्तियां मेरी पुस्तक के पृष्ठ भाग पर लिखकर दी. इन पक्तियों से मुझे प्रेरणा मिली कि ये तो अभी तक भारत और विश्व में किसी ने नहीं लिखी और मैं सारे संसार को जीत सकता हूं. उस समय में मुझे अवार्ड लेना नहीं आता था. पता नहीं था कि लोगों को किस तरह बताएं कि हमनें क्या काम किया है. अचानक 2022 में मुझे प्रेरणा मिली कि इंडिया बुक आफ रिकार्डस में इसे भेजना चाहिए और मैनें भेजा तो मेरी रचना का चयन हो गया."
शिल्प और शोध पर केंद्रित रचनाएं और साहित्य: पंडित लोकनाथ मिश्र की बात करें तो उनकी रचनाएं और कविताएं शिल्प और शोध की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. पंडित मिश्र बताते हैं कि "मैनें कभी हुस्न और इश्क पर कविता नहीं की. मैनें राष्ट्रीय चेतना, गरीबों के आंसू , सर्वहारा वर्ग के लिए रचनाएं लिखी है. प्रेमकाव्य मैनें कभी नहीं लिखा. मैनें सबसे पहले काव्य कृति सभ्यता का फर्क लिखी और दूसरी अक्षर देवता लिखी है. अक्षर देवता की प्रतिनिधि रचना बहुत कीमती है और गीता से प्रभावित है. इसके पश्चात संगीत और शोध कृति लिखी. जो संगीत और काव्य का समन्वय है, इस किताब में हिंदी साहित्य और संगीत को दोनों को समाहित किया है. सम संगीत एवं काव्य का मूल आधार मेरी रचना है. आखिरी कृति मानस के सात भक्त के माध्यम से रामचरित मानस पर शोध किया है. इस शोध कृति को कई प्रवचनकर्ता और कथावाचक अपनी कथाओं में उपयोग करते हैं."