प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य के भर/ राजभर समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने के अनुरोध वाले प्रतिवेदन पर दो महीने के भीतर निर्णय करने का निर्देश दिया है. अभी तक ये जाति उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग में गिनी जाती हैं.
'जागो राजभर जागो समिति' और अन्य द्वारा दायर रिट याचिका का निस्तारण करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की पीठ ने गत 11 मार्च को पारित एक आदेश में कहा कि चूंकि केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन को उत्तर प्रदेश सरकार के पास भेजा है, इस मामले को इस अदालत के समक्ष लटकाने का कोई सार्थक उद्देश्य नहीं है.
इससे पूर्व, याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले रिकार्ड को देखते हुए भर/ राजभर समुदाय को अनुसूचित जनजाति के तौर पर माना जाना चाहिए, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा दे रखा है. इस समुदाय के ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में पाये जाते हैं. इस याचिका में लगाए गए आरोपों के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने एक विधायक के जरिए राजभर समुदाय के लोगों को प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की सूची में डालने का आवेदन किया था.
यह मामला केंद्र के पास पहुंचा जिसने 11 अक्टूबर, 2021 को प्रदेश के प्रमुख सचिव (समाज कल्याण विभाग) को एक पत्र लिखा कि जब तक राज्य सरकार द्वारा भर/ राजभर समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची में डालने के प्रस्ताव की प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती, वह इस मामले को आगे नहीं बढ़ा सकता. सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने पाया कि रिकार्ड से यह कहीं भी पता नहीं चलता कि याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार के उचित प्राधिकार से संपर्क किया है.
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इसके अलावा, केंद्र सरकार के 11 अक्टूबर, 2011 के पत्र से पता चलता है कि विभिन्न अधिकारियों के पास भेजे गए प्रतिवेदन को प्रमुख सचिव (समाज कल्याण विभाग) के पास निर्णय करने के लिए भेज दिया गया है.
(पीटीआई-भाषा)