अलीगढ़: जिले की तहसील इगलास की सुप्रसिद्ध मिठाई चमचम की बात ही अलग है. आप मथुरा की ओर से अलीगढ़ आएं और रास्ते में कस्बा इगलास में रुक कर चमचम न खाएं, तो सफर अधूरा ही लगेगा. चमचम का स्वाद लाजबाव है. सभी तरह की मिठाई हर जगह मिल जाती है, लेकिन चमचम (मिठाई) केवल इगलास में ही मिलेगी. मथुरा-वृंदावन दर्शन करने वाले श्रद्धालु इगलास कस्बा से चमचम खरीदना नहीं भूलते है. वहीं, आने- जाने वाले लोग रिश्तेदारी में चमचम अवश्य लेकर जाते हैं.
इसी के साथ इगलास में आने वाले मेहमानों को नाश्ते व खाने में चमचम परोसी जाती है. इसकी मिठास यूपी के साथ हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों सहित विदेशों तक मशहूर है. इगलास की चमचम का स्वाद लेने के लिए विदेशों में रह रहे लोग ऑनलाइन मंगवाते हैं. अब इस मिठाई को जीआई टैग (Geographical Indication Tag, भौगोलिक संकेत) की सूची में शामिल किया गया है. जीआई टैग मिलने के बाद चमचम की प्रदेश में विशेष पहचान होगी.
नामचीन हस्तियों ने भी चखा चमचम का स्वाद: इगलास में सबसे पहले चमचम बनाने वाले रघ्घा सेठ के सुपौत्र यश सिंघल बताते हैं कि पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू एक बार यहां से गुजरने के दौरान चमचम लेकर गए थे. इसके बाद माहेश्वरी क्रिएटिव क्लब के अध्यक्ष संजय माहेश्वरी बॉलीवुड तक चमचम को लेकर गए हैं. वहीं, भाभी जी घर पर हैं सीरियल में गुलफाम कली का किरदार निभाने वाली फालगुनी व सीरियल के लेखक मनोज संतोष भी चमचम के मुरीद है. जो भी एक बार इस चमचम का स्वाद चख लेता है वो इसका मुरीद हो जाता है.
छेना और सूजी से मिलकर बनती है चमचम: सबसे पहले चमचम बनाने वाले रघ्घा सेठ के सुपौत्र यश सिंघल ने बताया कि बाबा ने सन् 1944 एक मिठाई बनाना शुरू किया था, जिसका नाम है चमचम. चमचम की बनाने के लिए सबसे पहले दूध से छेना निकाला जाता है. फिर छेना और सूजी को मिलाकर गोले तैयार किए जाते हैं. फिर इन गोले को चीनी की चासनी में सेका जाता है. जब तक उसके अंदर रस न भर जाए, इससे गोले सुरक हो जाते है. चमचम को बनाने में रिफाइंड का प्रयोग नहीं किया जाता है. जिससे चमचम मिठाई जल्दी खराब नहीं होती है और स्वाद जैसे का तैसा बना रहता है. इसकी एक और खासियत है चमचम को 10 दिन तक सिंपल रख सकते हैं. चाहे इसे फ्रीज में रखो चाहे मत रखो, यह खराब नहीं होती है. इसको गर्म करके खाओ तो अलग टेस्ट है और ठंडा करके खाओ तो एक अलग टेस्ट आता है. इसका कीमत भी अन्य मिठाइयों की तुलना में कम है. ये अभी 240 रुपये किलो के हिसाब से मिलती है. 1 किलो में लगभग 20 पीस आते हैं और एक पीस 50 ग्राम का होता है.
स्वाद बरकरार, दुकानों में हुई बढ़ोत्तरी: यश सिंघल के मुताबिक पहले चमचम 25 पैसे की मिलती थी, लेकिन आज 12 रुपये की एक मिलती है. पहले इसकी पैकिंग मिट्टी के बर्तन होती थी, अब डिजाइनर डिब्बों में होती है. लेकिन स्वाद आज भी वैसा ही है. समय के साथ स्वाद के कारण चमचम की मांग बढ़ी तो दुकानों की संख्या भी बढ़ती चली गई. इगलास में चमचम बनाने वालों की इस समय करीब 50 दुकानें हैं. करीब 10 कुंतल चमचम की प्रतिदिन बिक्री होती है. आने-जाने वालों से उनके परिचित इस खास मिठाई को मंगाना नहीं भूलते है.
जीआई टैग के बारे में समझिए: जीआई का फुल फार्म है जियोग्राफिकल इंडीकेशन यानी भौगोलिक संकेत. यह टैग किसी भी उत्पाद को उसके मूल स्थान, जहां का वह उत्पाद है वहां से जोड़ने का काम करता है. इसके साथ ही उत्पाद की विशेषता बताता है. जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र में विशेष महत्व रखते हैं और सिर्फ उसी क्षेत्र में बनते हैं. उल्लेखनीय है कि 2003 में जीआई टैग देने की शुरुआत हुई थी. इसके पहले साल 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया गया था. जीआई टैग विशेष उत्पाद को केंद्र सरकार द्वारा दिया जाता है.
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