हैदराबाद: अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज है. हर दल अपनी-अपनी तैयारी में जुटा हुआ है और इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ऐलान किया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वो अपने चाचा शिवपाल यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने कहा कि शिवपाल यादव का पूरा सम्मान होगा. चाचा-भतीजे के बीच सियासी गठबंधन को लेकर सुगबुगाहट कई दिनों से हो रही थी और आखिरकार अखिलेश यादव ने उसपर मुहर लगा दी.
अखिलेश यादव ने क्या कहा ?
अखिलेश यादव ने कहा है कि ''समाजवादी पार्टी ने लगातार प्रयास किया है कि क्षेत्रीय दल और जो छोटे दल हैं उन्हें साथ लिया जाए. उनमें से कई दल समाजवादी पार्टी के साथ आए हैं. चाचा का भी एक दल है, उस दल को भी साथ लाने का काम करेंगे. पूरा सम्मान उनका होगा और ज्यादा सम्मान का काम समाजवादी लोग करेंगे" शिवपाल यादव की पार्टी के विलय के सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा कि "सवाल विलय का नहीं है, चुनाव में हम जब जा रहे हैं तो जब गठबंधन होगा तो कोशिश करेंगे कि उन्हें भी साथ लिया जाएगा"
22 नवंबर को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के 82वें जन्मदिन पर शिवपाल और अखिलेश यादव का गठबंधन हो सकता है.
चाचा-भतीजे के साथ आने से क्या होगा ?
अखिलेश यादव के मुताबिक दोनों दल 2022 विधानसभा चुनाव के लिए साथ आ रहे हैं. परिवार और पार्टी में साल 2017 चुनाव से पहले पड़ी दरार के बाद पहली बार दोनों साथ आ रहे हैं, भले पार्टी के विलय की बात ना हुई हो लेकिन परिवार के दिल मिलना तो पक्का ही समझिए. अखिलेश यादव के ऐलान से पहले ही शिवपाल यादव कह चुके थे कि नेताजी यानि मुलायम सिंह यादव ही उनके और अखिलेश यादव के बीच बातचीत कराएंगे. 5 साल बाद दोनों का साथ आना ही सबसे बड़ा फायदा है और वो भी दोनों के लिए. दोनों के साथ आने से जो भी कार्यकर्ता, नेता, संगठन दो धड़ों में बंट गया था या कन्फ्यूज़ था वो अब एक साथ होगा. जिस यादव वोट बैंक पर मुलायम पविवार अपना दावा ठोकता रहा है, परिवार में दो फाड़ के बाद वो भी बंटा है. चाचा-भतीजे के साथ आने से अब वो वोट बैंक भी एकजुट होगा.
2017 विधानसभा चुनाव में परिवार और पार्टी में हुए दो फाड़े के बाद नुकसान अखिलेश यादव और शिवपाल यादव दोनों को हुआ था. 2012 में 224 सीटें जीतकर सरकार बनाने वाली समाजवादी पार्टी 2017 में 47 सीटों पर सिमट गई और पार्टी से अलग हुए शिवपाल यादव ने जो प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई, उसके वो इकलौते विधायक हैं. इस हार के लिए परिवार और पार्टी में हुई सिर फुटव्वल को भी सबसे बड़ी वजहों में माना गया.
अखिलेश यादव की क्या है प्लानिंग ?
दरअसल अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के छोटे दलों को साथ लेकर आना चाहते हैं. इसी कड़ी में वो पहले ओमप्रकाश राजभर से हाथ मिला चुके हैं और अब चाचा शिवपाल को साथ ले आए हैं. ऐसी ही कवायद वो राष्ट्रीय लोकदल को भी साथ लाने के लिए कर रहे हैं. जानकार मानते हैं कि प्रदेश में समाजवादी पार्टी अपने दम पर 120 से 130 सीटें जीत सकती है लेकिन सरकार बनाने के लिए 202 सीटों का जादुई आंकड़ा छूने के लिए 70 से 80 सीटों की और जरूरत है. इस बात से अखिलेश यादव भी अनजान नहीं है और इसीलिये वो छोटे-छोटे दलों को साध रहे हैं, जिनका प्रदेश के विशेष हिस्सों में वोट बैंक हैं. जैसे कि राजभर का वोट बैंक पूर्वांचल और रालोद का वोटबैंक पश्चिमी यूपी में है.
अखिलेश यादव भी जानते हैं कि सत्ता की जंग में उनकी सीधी लड़ाई भारतीय जनता पार्टी से है और मौजूदा वक्त में वो अकेले ये काम नहीं कर सकते हैं. इसलिये छोटे-छोटे दलों को साधकर सत्ता पर निशाना साध रहे हैं.
2017 के बाद 2019 में भी भुगत चुके हैं अलग होने का खामियाज़ा
2017 में समाजवादी पार्टी सत्ता से बेदखल हुई और शिवपाल अपनी पार्टी के इकलौते विधायक रह गए. इसी तरह लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी 5 लोकसभा सीट जीत पाई जबकि शिवपाल यादव अपनी सीट भी नहीं बचा पाए. 2017 हो या 2019 उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने हर दल को पानी पिलाए रखा. इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटें अपने नाम की थी और 2019 में उसे 62 सीटों पर जीत मिली थी. इसी तरह 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीतकर राज्य में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी और इन बीते तीन चुनावों को देखते हुए सियासी जानकार बीजेपी को उत्तर प्रदेश में हर दल से आगे बता रहे हैं. इसलिये अखिलेश यादव सबको साथ लेकर चल रहे हैं.
साथ आना दोनों की मजबूरी है ?
बीते विधानसभा चुनाव के वक्त यादव परिवार और सपा पार्टी में जो भी हुआ, उससे सीख लेते हुए अखिलेश यादव और शिवपाल यादव दोनों ने कदम आगे बढ़ाए हैं. मौजूदा वक्त की मांग और दोनों की मजबूरी ही इस साथ की वजह है.
बीजेपी के खिलाफ अखिलेश यादव छोटे दलों को साथ लेकर चलने की रणनीति पर चल रहे हैं. ऐसे में शिवपाल यादव को छोड़ने पर विपक्ष भी सवाल उठाता और चाचा भी, जानकार मानते हैं कि इकलौते विधायक वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को दूर रखकर अखिलेश को कोई खासा नुकसान तो शायद ना होता, लेकिन चाचा शिवपाल को साथ लाने से फायदा बहुत हो सकता है. जानकार मानते हैं कि शिवपाल के अलग होने का नुकसान सपा और अखिलेश को 2017 में हो चुका है.
यूपी के चुनावी रण को सिर्फ 3 महीने बचे हैं लेकिन शिवपाल यादव इस सियासी रण में अकेले खड़े हैं. जिससे उन्हें कोई भी फायदा नहीं होता और साथ भी उन्हें किसी का नहीं मिल रहा था. जानकार मानते हैं कि समाजवादी पार्टी के कैडर और अखिलेश यादव के चेहरे पर उन्हें दूसरे दलों के बागी विधायकों से लेकर नाराज नेता और गठबंधन के साथी मिल रहे हैं. यूपी में वैसे भी इन दिनों गठबंधन के मामले हर कोई अपनी जुगत भिड़ा रहा है. शिवपाल यादव इस मामले में थोड़े अनलकी कहे जाएंगे, उन्हें किसी का साथ नहीं मिल रहा और यही मजबूरी उन्हें वापस अखिलेश की साथ लेकर आई है.
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