नई दिल्ली : अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन (Joint Study) से पता चला है कि बच्चों में सार्स कोव-2 (SARS-CoV-2) सेरो-पोजिटिविटी दर (Sero-Positivity Rate) अधिक और वयस्कों की आबादी के बराबर है.
अध्ययन में कहा गया है कि यह संभव नहीं है कि कोविड-19 की तीसरी लहर (Third Wave of Corona Virus) दो साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी. बता दें, कोविड-19 की तीसरी लहर को लेकर चिंता जताई गई है, जिसमें छोटे बच्चों के अधिक प्रभावित होने की संभावना है.
अध्यनन में कहा गया कि बच्चों और व्यस्कों में कोविड-19 की सीरो-पॉजिटिविटी दर की तुलना करने के लिए एक अध्ययन किया गया है. यह अध्ययन एक बहु-केंद्रित जनसंख्या-आधारित सेरो-एपिडेमियोलॉजिकल (Sero-epidemiological) अध्ययन का हिस्सा है. अध्ययन पांच चयनित राज्यों के दस हजार नमूनों पर किया जा रहा है.
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अध्ययन के मुताबिक, इसमें भारत के चार राज्यों के 4,500 प्रतिभागियों का डेटा है. सार्स कोव-2 वायरस के खिलाफ सीरम एंटीबॉडी का मूल्यांकन एक मानक एलिसा किट का उपयोग करके गुणात्मक रूप से किया गया था.
यहां, 18 साल और उससे अधिक उम्र के प्रतिभागियों से तुलना करने के साथ 2 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों में सीरोलॉजिकल प्रसार के अंतरिम डेटा की रिपोर्ट पेश की गई है.
अध्ययन के मुताबिक, 18 वर्ष से कम आयु वर्ग में 55.7 प्रतिशत और 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में 63.5 प्रतिशत सेरोप्रवलेंस (Sero-prevalence) पाया गया है. वयस्कों और बच्चों के बीच वायरस के प्रसार में कोई सांख्यिकीय महत्वपूर्ण अंतर नहीं देखा गया है.
अध्ययन के मुताबिक, अगस्त-सितंबर 2020 में किए गए दूसरे राष्ट्रव्यापी सीरो-प्रवेलेंस अध्ययन ने 10-17 वर्ष की आयु के 3,021 बच्चों में 9.0 प्रतिशत सेरोपॉजिटिविटी रिपोर्ट की थी, जबकि हमारे अध्ययन में यह दर 60.3 फीसदी थी.
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वहीं, चेन्नई में एक अस्पताल के अध्ययन ने 1 महीने से 17 वर्ष के आयु वर्ग में 19.6 प्रतिशत वायरस के प्रसार की रिपोर्ट पेश की थी.