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रविदास जैसे संतों का आगमन सदियों में होता है : राष्ट्रपति कोविंद - गुरु रविदास विश्व महापीठ

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरु रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन को रविवार को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि रविदास जैसे संतों का आगमन सदियों में होता है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
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Published : Feb 21, 2021, 1:55 PM IST

Updated : Feb 21, 2021, 5:45 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संत गुरू रविदास की समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त समाज की संकल्पना को रेखांकित करते हुए रविवार को कहा कि ऐसे समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिये संकल्पबद्ध होकर काम करना सभी देशवासियों का कर्तव्य है जहां समाज में समता रहे और सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों.

श्री गुरू रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि गुरू रविदास जी ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त सुखमय समाज की कल्पना की थी . ऐसे में सभी देशवासियों का यह कर्तव्य है कि हम सभी ऐसे ही समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिये संकल्पबद्ध होकर कार्य करें और संत रविदास के सच्चे साथी कहलाने के योग्य बनें.

उन्होंने कहा कि रविदास जैसे संतों का आगमन सदियों में होता है. उन्होंने कहा कि संत रविदास चाहते थे कि सबका पेट भरे, कोई भूखा न रहे.

उन्होंने कहा कि अच्छा इंसान वह है जो संवेदनशील है, समाज की मानवोचित मर्यादाओं का सम्मान तथा कायदे-कानून और संविधान का पालन करता है.

कोविंद ने कहा कि हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने संत रविदास की संत-वाणी में व्यक्त अनेक आदर्शों को संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया है.

राष्ट्रपति ने कहा कि संत रविदास ने अपनी करुणा और प्रेम की परिधि से समाज के किसी भी व्यक्ति या वर्ग को बाहर नहीं रखा था.

उन्होंने कहा कि यदि ऐसे संत शिरोमणि रविदास को किसी विशेष समुदाय तक बांध कर रखा जाता है तो, मेरे विचार से, ऐसा करना, उनकी सर्व-समावेशी उदारता के अनुसार नहीं है.

गुरु रविदास के जीवन दर्शन, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को वर्तमान समय में प्रासंगिक बताते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि संत की न कोई जाति होती है, न संप्रदाय और न ही कोई क्षेत्र बल्कि पूरी मानवता का कल्याण ही उनका कार्य क्षेत्र होता है. इसीलिए संत का आचरण सभी प्रकार के भेद-भाव तथा संकीर्णताओं से परे होता है.

उन्होंने कहा कि मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सामाजिक न्याय, स्वतन्त्रता, समता तथा बंधुता के हमारे संवैधानिक मूल्य भी उनके आदर्शों के अनुरूप ही हैं.

उन्होंने कहा कि संत रविदास यह कामना करते थे कि समाज में समता रहे तथा सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों.

उन्होंने गुरु नानक और संत रविदास के सत्संग के अनेक विवरणों का उल्लेख भी किया.

नई दिल्ली : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संत गुरू रविदास की समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त समाज की संकल्पना को रेखांकित करते हुए रविवार को कहा कि ऐसे समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिये संकल्पबद्ध होकर काम करना सभी देशवासियों का कर्तव्य है जहां समाज में समता रहे और सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों.

श्री गुरू रविदास विश्व महापीठ राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि गुरू रविदास जी ने समता-मूलक और भेदभाव-मुक्त सुखमय समाज की कल्पना की थी . ऐसे में सभी देशवासियों का यह कर्तव्य है कि हम सभी ऐसे ही समाज एवं राष्ट्र के निर्माण के लिये संकल्पबद्ध होकर कार्य करें और संत रविदास के सच्चे साथी कहलाने के योग्य बनें.

उन्होंने कहा कि रविदास जैसे संतों का आगमन सदियों में होता है. उन्होंने कहा कि संत रविदास चाहते थे कि सबका पेट भरे, कोई भूखा न रहे.

उन्होंने कहा कि अच्छा इंसान वह है जो संवेदनशील है, समाज की मानवोचित मर्यादाओं का सम्मान तथा कायदे-कानून और संविधान का पालन करता है.

कोविंद ने कहा कि हमारे संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबासाहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने संत रविदास की संत-वाणी में व्यक्त अनेक आदर्शों को संवैधानिक स्वरूप प्रदान किया है.

राष्ट्रपति ने कहा कि संत रविदास ने अपनी करुणा और प्रेम की परिधि से समाज के किसी भी व्यक्ति या वर्ग को बाहर नहीं रखा था.

उन्होंने कहा कि यदि ऐसे संत शिरोमणि रविदास को किसी विशेष समुदाय तक बांध कर रखा जाता है तो, मेरे विचार से, ऐसा करना, उनकी सर्व-समावेशी उदारता के अनुसार नहीं है.

गुरु रविदास के जीवन दर्शन, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को वर्तमान समय में प्रासंगिक बताते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि संत की न कोई जाति होती है, न संप्रदाय और न ही कोई क्षेत्र बल्कि पूरी मानवता का कल्याण ही उनका कार्य क्षेत्र होता है. इसीलिए संत का आचरण सभी प्रकार के भेद-भाव तथा संकीर्णताओं से परे होता है.

उन्होंने कहा कि मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि सामाजिक न्याय, स्वतन्त्रता, समता तथा बंधुता के हमारे संवैधानिक मूल्य भी उनके आदर्शों के अनुरूप ही हैं.

उन्होंने कहा कि संत रविदास यह कामना करते थे कि समाज में समता रहे तथा सभी लोगों की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों.

उन्होंने गुरु नानक और संत रविदास के सत्संग के अनेक विवरणों का उल्लेख भी किया.

Last Updated : Feb 21, 2021, 5:45 PM IST
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