ETV Bharat / bharat

कोई नया नहीं है उत्तरकाशी टनल हादसा, पहले भी ऐसे कई दर्द झेल चुका है उत्तराखंड

Tunnel accidents in Uttarakhand उत्तराखंड में 2021 के बाद आई रैणी आपदा के बाद उत्तरकाशी टनल भूस्खलन सबसे बड़ा हादसा है. गनीमत है कि इस हादसे में अभी तक किसी भी प्रकार की कोई जनहानि नहीं हुई है. लेकिन रेस्क्यू अभियान पिछले 36 घंटे से जारी है. आशंका जताई जा रही है रेस्क्यू ऑपरेशन तीसरे दिन भी जारी रह सकता है.

Uttarakhand Tunnel Accident
उत्तराखंड टनल हादसा
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 13, 2023, 7:52 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड के इतिहास में उत्तरकाशी भूस्खलन हादसा कोई नया नहीं है. हर साल मॉनसून सीजन के दौरान सैकड़ों जिंदगियां उत्तराखंड में काल के गाल में समा जाती हैं. लेकिन पिछले लगभग 36 घंटे से उत्तरकाशी के सिलक्यारा में फंसे 40 लोगों को बचाने का लगातार प्रयास जारी है. पीएम मोदी से लेकर सीएम धामी सभी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. संभावना जताई जा रही है कि जल्द मलबे को बहार निकालकर सभी 40 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा. लेकिन इस हादसे ने एक बार फिर से कुछ हादसों की भयानक यादों को ताजा कर दिया है.

ऑल वेदर रोड और रेल मार्ग पर बन रही कई टनल: उत्तरकाशी टनल में फंसे लोगों को बचाने के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ और हाईवे अथॉरिटी ने मोर्चा संभाला हुआ है. मशीनों के जरिए मलबा निकलवाया जा रहा है. उत्तराखंड में मौजूदा समय में कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिसमें हाईवे अथॉरिटी के साथ-साथ रेलवे की सुरंग भी बन रही है. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग में भी पहाड़ों को खोदकर कई टनल बनाई जा रही है. इसके साथ ही उत्तराखंड ऑल वेदर रोड के लिए 4 बड़ी टनल बननी प्रस्तावित है.

Uttarakhand Tunnel Accident
अभी भी लगभग एक तिहाई मबला हटाना बाकी है.

उत्तराखंड में टनल पहले भी बनी हादसों की वजह: उत्तराखंड में बन रही टनलों में कई हादसे हो चुके हैं. इसमें कई बार लोगों की जान भी जा चुकी है. कार्य के दौरान ना केवल इंसान बल्कि घर और खेत भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. अकेले रुद्रप्रयाग में ही रेलवे की सुरंग की वजह से एक दर्जन से अधिक गांव में दरारें आ चुकी हैं. टनल में कार्य के दौरान बीते कुछ महीने पहले ही एक के बाद एक हादसे में दो मजदूर मारे जा चुके हैं. ये हादसा रुद्रप्रयाग के जवाड़ी बाईपास पर बन रही सुरंग में हुआ था. हालांकि, ये हादसे भूस्खलन की वजह से नहीं हुए. लेकिन कार्यदायी संस्था के ऊपर कई बार ये आरोप लगे हैं कि वो सुरक्षा मनकों को ध्यान में नहीं रख रही है.
ये भी पढ़ेंः ह्यूम पाइप से टल सकता था उत्तरकाशी टनल हादसा, पलभर में बाहर होते मजदूर,नहीं करनी पड़ती मशक्कत

रैणी आपदा आई याद: सिलक्यारा हादसे के बाद जो सबसे अधिक घटना लोगों के जेहन में है, वो है 7 फरवरी 2021 में आई चमोली के रैणी गांव की आपदा. जिसमें पलक झपकते ही 130 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. ऐसा ही रेस्क्यू उस वक्त तपोवन की उस टनल में भी चला था. एक के बाद एक शव साल 2022 तक भी उस टनल से मिलते रहे. इतना ही नहीं, रेल मार्ग के लिए बन रही टनल में इसी साल जनवरी माह में टिहरी के अटाली में हुए भू-धंसाव के कारण दरार भी आ चुकी है. जिसको बाद में सही किया गया है. ये दरार सुरंग के रिटेनिंग वॉल में आई थी.

Uttarakhand Tunnel Accident
टनल के अंदर 40 मजदूर फंसे हुए हैं.

परीक्षण के बाद भी आ रही तमाम समस्या: उत्तराखंड में बन रही तमाम परियोजना को लेकर सरकार से लेकर कार्यदायी संस्था लगातार ये दावे करती रही है कि कार्य से पहले पूरी तरह से भूगर्भीय परीक्षण किया जाता है. ये बात सही भी है. लेकिन वाबजूद इसके आखिरकार क्यों उत्तराखंड में बन रही पहाड़ों के अंदर सुरंग से ना केवल उत्तराखंड के लोग बल्कि लोगों के घर, खेत भी भूस्खलन की चपेट में आ रहे हैं.

Tunnel accidents in Uttarakhand
7 फरवरी 2021 को रैणी आपदा के दौरान भी कई लोग टनल में फंसने से मर गए थे.

क्या कहते हैं भू-वैज्ञानिक: जाने माने भू-वैज्ञानिक बीड़ी जोशी बताते हैं कि ये हादसे किसी और वजह से नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ कैरिंग कैपेसिटी (वहन क्षमता) की वजह से हो रहे हैं. हम ये नहीं देख रहे हैं कि कौन सी जगह कितना भार सह सकती है. ना हम ये देख रहे हैं कितनी सुरंग कौन से पहाड़ों में बनाई जा सकती है. सिर्फ मिट्टी का परीक्षण करके ही काम किया जा रहा है.

Uttarakhand Tunnel Accident
उत्तरकाशी टनल हादसे को 36 घंटे से अधिक का समय हो चुका है.
ये भी पढ़ेंः Uttarkashi: सिलक्यारा टनल से हटाया गया 20 मीटर मलबा, मजदूरों के रेस्क्यू में लग सकते हैं दो दिन, 6 दिन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन

उत्तरकाशी टनल हादसे में अब तक क्या हुआ: 12 नवंबर की सुबह लगभग 5 बजकर 30 मिनट पर उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में भारी भूस्खलन हुआ. हादसा तब हुआ जब मजदूर काम काम कर रहे थे. हादसे के बाद कंपनी ने खुद ही मलबा हटाने की कोशिश की. लेकिन जब बात नहीं बनी तो प्रशासन को घटना की सूचना दी. लगभग दोपहर 12 बजे युद्धस्तर पर रेस्क्यू शुरू किया गया. शाम तक फंसे हुए मजदूरों से सेटेलाइट फोन के माध्यम से बातचीत हुई. इसके बाद पाइप डालकर भोजन और पीना भेजा गया. ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई. घटना के 36 घंटे बाद भी लगभग एक तिहाई मलबा हटना बाकी है. उम्मीद है कि 14 नवंबर की सुबह तक सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा.

देहरादूनः उत्तराखंड के इतिहास में उत्तरकाशी भूस्खलन हादसा कोई नया नहीं है. हर साल मॉनसून सीजन के दौरान सैकड़ों जिंदगियां उत्तराखंड में काल के गाल में समा जाती हैं. लेकिन पिछले लगभग 36 घंटे से उत्तरकाशी के सिलक्यारा में फंसे 40 लोगों को बचाने का लगातार प्रयास जारी है. पीएम मोदी से लेकर सीएम धामी सभी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. संभावना जताई जा रही है कि जल्द मलबे को बहार निकालकर सभी 40 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा. लेकिन इस हादसे ने एक बार फिर से कुछ हादसों की भयानक यादों को ताजा कर दिया है.

ऑल वेदर रोड और रेल मार्ग पर बन रही कई टनल: उत्तरकाशी टनल में फंसे लोगों को बचाने के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ और हाईवे अथॉरिटी ने मोर्चा संभाला हुआ है. मशीनों के जरिए मलबा निकलवाया जा रहा है. उत्तराखंड में मौजूदा समय में कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिसमें हाईवे अथॉरिटी के साथ-साथ रेलवे की सुरंग भी बन रही है. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग में भी पहाड़ों को खोदकर कई टनल बनाई जा रही है. इसके साथ ही उत्तराखंड ऑल वेदर रोड के लिए 4 बड़ी टनल बननी प्रस्तावित है.

Uttarakhand Tunnel Accident
अभी भी लगभग एक तिहाई मबला हटाना बाकी है.

उत्तराखंड में टनल पहले भी बनी हादसों की वजह: उत्तराखंड में बन रही टनलों में कई हादसे हो चुके हैं. इसमें कई बार लोगों की जान भी जा चुकी है. कार्य के दौरान ना केवल इंसान बल्कि घर और खेत भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. अकेले रुद्रप्रयाग में ही रेलवे की सुरंग की वजह से एक दर्जन से अधिक गांव में दरारें आ चुकी हैं. टनल में कार्य के दौरान बीते कुछ महीने पहले ही एक के बाद एक हादसे में दो मजदूर मारे जा चुके हैं. ये हादसा रुद्रप्रयाग के जवाड़ी बाईपास पर बन रही सुरंग में हुआ था. हालांकि, ये हादसे भूस्खलन की वजह से नहीं हुए. लेकिन कार्यदायी संस्था के ऊपर कई बार ये आरोप लगे हैं कि वो सुरक्षा मनकों को ध्यान में नहीं रख रही है.
ये भी पढ़ेंः ह्यूम पाइप से टल सकता था उत्तरकाशी टनल हादसा, पलभर में बाहर होते मजदूर,नहीं करनी पड़ती मशक्कत

रैणी आपदा आई याद: सिलक्यारा हादसे के बाद जो सबसे अधिक घटना लोगों के जेहन में है, वो है 7 फरवरी 2021 में आई चमोली के रैणी गांव की आपदा. जिसमें पलक झपकते ही 130 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. ऐसा ही रेस्क्यू उस वक्त तपोवन की उस टनल में भी चला था. एक के बाद एक शव साल 2022 तक भी उस टनल से मिलते रहे. इतना ही नहीं, रेल मार्ग के लिए बन रही टनल में इसी साल जनवरी माह में टिहरी के अटाली में हुए भू-धंसाव के कारण दरार भी आ चुकी है. जिसको बाद में सही किया गया है. ये दरार सुरंग के रिटेनिंग वॉल में आई थी.

Uttarakhand Tunnel Accident
टनल के अंदर 40 मजदूर फंसे हुए हैं.

परीक्षण के बाद भी आ रही तमाम समस्या: उत्तराखंड में बन रही तमाम परियोजना को लेकर सरकार से लेकर कार्यदायी संस्था लगातार ये दावे करती रही है कि कार्य से पहले पूरी तरह से भूगर्भीय परीक्षण किया जाता है. ये बात सही भी है. लेकिन वाबजूद इसके आखिरकार क्यों उत्तराखंड में बन रही पहाड़ों के अंदर सुरंग से ना केवल उत्तराखंड के लोग बल्कि लोगों के घर, खेत भी भूस्खलन की चपेट में आ रहे हैं.

Tunnel accidents in Uttarakhand
7 फरवरी 2021 को रैणी आपदा के दौरान भी कई लोग टनल में फंसने से मर गए थे.

क्या कहते हैं भू-वैज्ञानिक: जाने माने भू-वैज्ञानिक बीड़ी जोशी बताते हैं कि ये हादसे किसी और वजह से नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ कैरिंग कैपेसिटी (वहन क्षमता) की वजह से हो रहे हैं. हम ये नहीं देख रहे हैं कि कौन सी जगह कितना भार सह सकती है. ना हम ये देख रहे हैं कितनी सुरंग कौन से पहाड़ों में बनाई जा सकती है. सिर्फ मिट्टी का परीक्षण करके ही काम किया जा रहा है.

Uttarakhand Tunnel Accident
उत्तरकाशी टनल हादसे को 36 घंटे से अधिक का समय हो चुका है.
ये भी पढ़ेंः Uttarkashi: सिलक्यारा टनल से हटाया गया 20 मीटर मलबा, मजदूरों के रेस्क्यू में लग सकते हैं दो दिन, 6 दिन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन

उत्तरकाशी टनल हादसे में अब तक क्या हुआ: 12 नवंबर की सुबह लगभग 5 बजकर 30 मिनट पर उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में भारी भूस्खलन हुआ. हादसा तब हुआ जब मजदूर काम काम कर रहे थे. हादसे के बाद कंपनी ने खुद ही मलबा हटाने की कोशिश की. लेकिन जब बात नहीं बनी तो प्रशासन को घटना की सूचना दी. लगभग दोपहर 12 बजे युद्धस्तर पर रेस्क्यू शुरू किया गया. शाम तक फंसे हुए मजदूरों से सेटेलाइट फोन के माध्यम से बातचीत हुई. इसके बाद पाइप डालकर भोजन और पीना भेजा गया. ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई. घटना के 36 घंटे बाद भी लगभग एक तिहाई मलबा हटना बाकी है. उम्मीद है कि 14 नवंबर की सुबह तक सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.