नई दिल्ली : तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं हैं, साथ ही उन्होंने हिरासत में लेकर पूछताछ करने की ईडी की शक्ति पर सवाल उठाया. इस बात पर भी जोर दिया कि पूरे देश में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) का कथित दुरुपयोग हुआ है.
मंत्री और उनकी पत्नी मेगाला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ के समक्ष जोरदार दलील दी कि ईडी के अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं हैं और शीर्ष अदालत द्वारा पिछले साल दिए गए विजय मंडल चौधरी फैसले में यह कहा गया है.
सिब्बल ने सीमा शुल्क अधिनियम और विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) के समान प्रावधानों का हवाला दिया और तर्क दिया कि जांच अधिकारियों को उनके तहत किसी आरोपी की पुलिस हिरासत प्राप्त करने की अनुमति नहीं है. सिब्बल ने पूरे देश में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के कथित दुरुपयोग का जिक्र किया.
सुनवाई के इस मौके पर ईडी का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राजनीतिक बयान देने की कोई जरूरत नहीं है और 'हमें खुद को तथ्यों और कानून तक ही सीमित रखना चाहिए.'
सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि पीएमएलए के तहत, आरोपी को घातक अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, इसलिए इसमें आरोपी की हिरासत मांगने की शक्ति नहीं है. उन्होंने कहा कि ईडी अधिकारियों को आरोपियों को पुलिस के सामने पेश करना चाहिए. शीर्ष अदालत इस मामले की सुनवाई दो अगस्त को भी जारी रखेगी.
मेगाला की याचिका में मद्रास उच्च न्यायालय के 14 जुलाई और 4 जुलाई के आदेशों की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसमें उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को सुनवाई योग्य नहीं बताते हुए खारिज कर दिया गया था. 14 जुलाई को एकल न्यायाधीश पीठ ने खंडपीठ के एक न्यायाधीश के विचार से सहमति जताते हुए ईडी को उसे हिरासत में लेने की अनुमति दे दी.
याचिका में कहा गया, 'एक 'पुलिस अधिकारी' नहीं होने के नाते, ऐसा कोई कानून नहीं है जो ईडी को आरोपी की पुलिस हिरासत मांगने की शक्ति प्रदान करता हो. पीएमएलए में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो ईडी को उसी तरह अपनी हिरासत में रिमांड का आदेश मांगने की शक्ति प्रदान करता हो जैसे 'एक पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी' या 'जांच करने वाला एक पुलिस अधिकारी' काम करता है.'
अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया कि उच्च न्यायालय ने यह मानकर गलती की कि ईडी को पीएमएलए (धन शोधन निवारण अधिनियम) की धारा 19 के तहत गिरफ्तारी के बाद आगे की जांच करने का अधिकार है और फिर आगे की जांच के लिए हिरासत की मांग करना स्वीकार्य है.