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Aarey forest: सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ों की कटाई पर आदिवासियों को बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की अनुमति दी

मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा मुंबई के आरे जंगल में पेड़ों की कटाई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की अनुमति दे दी है. आदिवासियों का कहना है कि प्रोजेक्ट के लिए काटे जा रहे कई पेड़ उनकी जमीन पर हैं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने याचिका पर सुनवाई की है.

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Published : Apr 28, 2023, 2:07 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वन में रहने वाले कुछ आदिवासियों को मुंबई के आरे जंगल में मेट्रो रेल परियोजना के लिए काटे जा रहे पेड़ों से संबंधित शिकायतों को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की अनुमति दे दी है. दरअसल, आदिवासियों का कहना है कि प्रोजेक्ट के लिए काटे जा रहे कई पेड़ उनकी जमीन पर हैं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने आरे वन क्षेत्र में रहने का दावा करने वाले कुछ आदिवासियों की याचिका पर सुनवाई की. आदिवासियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने सुना. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए कहा है.

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 'मैं उन आदिवासियों और अन्य लोगों की तरफ से पेश हुआ हूं, जो पेड़ काटे जाने पर विस्थापित होने से मजूर हो जाएंगे. आदिवासियों का कहना है कि उनकी जमीन पर 49 पेड़ हैं.' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक याचिका पहले से ही उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है और वे वहां अपने अधिकार के प्रवर्तन का मुद्दा उठा सकते हैं.

ये भी पढ़ें- Reservation bill issue: आरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी भूपेश सरकार

दरअसल, याचिकाकर्ता वनवासी होने के नाते अपने अधिकारों का दावा करते हैं. चूंकि याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाने की स्वतंत्रता दी जाती है और उच्च न्यायालय शीघ्र सूचीबद्ध करने के लिए इस पर विचार कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल को कार शेड परियोजना के लिए आरे जंगल में केवल 84 पेड़ों की कटाई की अनुमति देने के अपने पहले के आदेश को पार करने की कोशिश करने के लिए मुंबई मेट्रो को फटकार लगाई और जुर्माना के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया.

अदालत ने कहा कि मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) की ओर से 84 से अधिक पेड़ों की कटाई के लिए पेड़ प्राधिकरण को स्थानांतरित करना अनुचित था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने कंपनी को आरे जंगल से 177 पेड़ों को हटाने की अनुमति दी. यह कहते हुए कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने से सार्वजनिक परियोजना ठप हो जाएगी जो उचित नहीं है.

ये भी पढ़ें- Manish Kashyap Case : मनीष कश्यप मामले पर आज आएगा बड़ा फैसला, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

शीर्ष अदालत ने साल 2019 में कानून के छात्र रिशव रंजन द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित एक पत्र याचिका पर स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें कॉलोनी में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी. पिछले साल 29 नवंबर को शीर्ष अदालत ने मुंबई मेट्रो को मुंबई की आरे कॉलोनी में 84 पेड़ों को काटने के लिए प्रासंगिक प्राधिकरण के साथ अपनी याचिका उठाने की अनुमति दी थी.

पिछले साल 24 अगस्त को, शीर्ष अदालत ने एमएमआरसीएल को निर्देश दिया कि वह अपने उपक्रम का सख्ती से पालन करे कि वहां कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा और चेतावनी दी कि किसी भी उल्लंघन के परिणामस्वरूप सख्त कार्रवाई होगी. महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल कहा था कि अधिकारियों को पेड़ काटने से रोक दिया गया है. कॉलोनी में पेड़ों की कटाई का हरित कार्यकर्ताओं और निवासियों ने विरोध किया है.

(पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वन में रहने वाले कुछ आदिवासियों को मुंबई के आरे जंगल में मेट्रो रेल परियोजना के लिए काटे जा रहे पेड़ों से संबंधित शिकायतों को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की अनुमति दे दी है. दरअसल, आदिवासियों का कहना है कि प्रोजेक्ट के लिए काटे जा रहे कई पेड़ उनकी जमीन पर हैं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने आरे वन क्षेत्र में रहने का दावा करने वाले कुछ आदिवासियों की याचिका पर सुनवाई की. आदिवासियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने सुना. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए कहा है.

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 'मैं उन आदिवासियों और अन्य लोगों की तरफ से पेश हुआ हूं, जो पेड़ काटे जाने पर विस्थापित होने से मजूर हो जाएंगे. आदिवासियों का कहना है कि उनकी जमीन पर 49 पेड़ हैं.' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक याचिका पहले से ही उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है और वे वहां अपने अधिकार के प्रवर्तन का मुद्दा उठा सकते हैं.

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दरअसल, याचिकाकर्ता वनवासी होने के नाते अपने अधिकारों का दावा करते हैं. चूंकि याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाने की स्वतंत्रता दी जाती है और उच्च न्यायालय शीघ्र सूचीबद्ध करने के लिए इस पर विचार कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल को कार शेड परियोजना के लिए आरे जंगल में केवल 84 पेड़ों की कटाई की अनुमति देने के अपने पहले के आदेश को पार करने की कोशिश करने के लिए मुंबई मेट्रो को फटकार लगाई और जुर्माना के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया.

अदालत ने कहा कि मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (MMRCL) की ओर से 84 से अधिक पेड़ों की कटाई के लिए पेड़ प्राधिकरण को स्थानांतरित करना अनुचित था. हालांकि, शीर्ष अदालत ने कंपनी को आरे जंगल से 177 पेड़ों को हटाने की अनुमति दी. यह कहते हुए कि पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने से सार्वजनिक परियोजना ठप हो जाएगी जो उचित नहीं है.

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शीर्ष अदालत ने साल 2019 में कानून के छात्र रिशव रंजन द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित एक पत्र याचिका पर स्वत: संज्ञान लिया था, जिसमें कॉलोनी में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी. पिछले साल 29 नवंबर को शीर्ष अदालत ने मुंबई मेट्रो को मुंबई की आरे कॉलोनी में 84 पेड़ों को काटने के लिए प्रासंगिक प्राधिकरण के साथ अपनी याचिका उठाने की अनुमति दी थी.

पिछले साल 24 अगस्त को, शीर्ष अदालत ने एमएमआरसीएल को निर्देश दिया कि वह अपने उपक्रम का सख्ती से पालन करे कि वहां कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा और चेतावनी दी कि किसी भी उल्लंघन के परिणामस्वरूप सख्त कार्रवाई होगी. महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल कहा था कि अधिकारियों को पेड़ काटने से रोक दिया गया है. कॉलोनी में पेड़ों की कटाई का हरित कार्यकर्ताओं और निवासियों ने विरोध किया है.

(पीटीआई)

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