नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) नेता और सांसद राघव चड्ढा ने राज्यसभा से अपने निलंबन को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. चड्ढा को नियमों के घोर उल्लंघन, कदाचार, उद्दंड रवैया और अवमाननापूर्ण आचरण के लिए 11 अगस्त को संसद के उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया था.
उनके खिलाफ कार्रवाई चार सांसदों - सस्मित पात्रा, एस फांगनोन कोन्याक, एम थंबीदुरई और नरहरि अमीन द्वारा प्रस्तुत शिकायतों के जवाब में हुई. सांसदों ने उन पर उनकी सहमति के बिना एक प्रस्ताव में उनका नाम शामिल करने का आरोप लगाया और उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के समक्ष शिकायत दर्ज की गई.
उनके नाम कथित तौर पर चड्ढा द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन विधेयक, 2023 का अध्ययन करने के लिए एक चयन समिति के गठन की मांग वाले प्रस्ताव पर जोड़े गए थे. शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में, चड्ढा ने तर्क दिया है कि उनका निलंबन राज्यों की परिषद (राज्यसभा) में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के साथ-साथ संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का स्पष्ट उल्लंघन है.
अदालत के समक्ष दायर याचिका में राज्यसभा सचिवालय और उसके अध्यक्ष प्रतिवादी हैं. याचिका में तर्क दिया गया कि किसी भी सदस्य को शेष सत्र से अधिक अवधि के लिए निलंबित करने पर स्पष्ट प्रतिबंध है. उन्हें इस साल संसद के मानसून सत्र के आखिरी घंटे से निलंबित कर दिया गया है. चड्ढा ने कहा कि वह वित्त पर स्थायी समिति और अधीनस्थ कानून पर समिति की बैठकों में भाग लेने में सक्षम नहीं हैं, जो संसद सत्र नहीं होने पर भी अपना काम जारी रखते हैं.
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 101(4) के संदर्भ में कहा गया कि अनिश्चितकालीन निलंबन का प्रभाव, विशेष रूप से सत्र की अवधि के बाहर, वास्तव में साठ दिनों की अवधि के बाद एक रिक्ति बनाना है, जो कि प्रथम दृष्टया लागू कार्रवाई की अवैधता को भी दर्शाता है. चड्ढा की याचिका में दलील दी गई कि निलंबन से निष्कासन का प्रभाव नहीं पड़ सकता और सदन में कोई पद रिक्त नहीं हो सकता.