पटना : पटना के गांधी मैदान में 27 वां पटना पुस्तक मेला चल रहा है. इस बार पुस्तक मेला में 'किराए की गर्लफ्रेंड' की काफी चर्चा है. किराए की गर्लफ्रेंड एक उपन्यास है जो नोवेल्टी प्रकाशन से पब्लिश हुई है. पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व उपाध्यक्ष अंशुमान ने इसे लिखा है, पुस्तक 2 साल पहले विमोचित की गई थी, लेकिन आज भी इसकी डिमांड काफी अधिक है. युवा वर्ग इस पुस्तक के प्रति काफी आकर्षित हैं. खासियत इसकी यह है कि यह पुस्तक मगही और हिंदी में और देसी शैली में लिखी गई है.
उपन्यास किराए की गर्लफ्रेण्ड : लेखक अंशुमान बताते हैं कि कॉलेज के युवा जिस सामान्य भाषा में बोलचाल करते हैं, उसी भाषा में उन्होंने पुस्तक को लिखा है. इस पुस्तक में टीनेजर्स के मन की व्यथा है. पुस्तक में उन लड़कों की कहानी है, जो छोटे गांव कस्बे से बड़े शहर में बड़े सपने को लेकर आते हैं. कोई यूपीएससी निकालकर बड़ा अफसर बनने की चाहत रखता है, कोई बैंक का बड़ा पदाधिकारी बनने की चाहत रखता है. उसके सपने को पूरा करने के लिए मां-बाप काफी संघर्ष से पैसा जुटाकर उसे भेजते हैं. लेकिन इसी बीच हुस्न के माया जाल में फंसकर वह अपने सपने को भूल जाता है और फिर जब उसे होश आता है तो काफी देर हो गई रहती है.
माया जाल में न फंसे युवा : अंशुमान ने बताया कि आजकल इश्क में पैसा सब कुछ हो गया है. लड़का जब तक पैसा खर्च करता है, लड़की प्रेमिका बनकर उसके साथ रहती है, लड़के के घरवाले जब पैसा देना बंद करते हैं. लड़का जीवन में जो बनने आया था, वह बन नहीं पता. तब लड़की भी उसका साथ छोड़ देती है. किसी और के साथ सात फेरे लेकर लाइफ सेटल कर लेती है. इसमें लड़के बर्बाद होते हैं.
पुस्तक की एक पंक्ति है…
''हमें तो यही पसंद है अपनी गर्लफ्रेंड की अदा, चार दिन इश्क और फिर कह दो अलविदा..'' |
बड़ी सीख देती है ये पुस्तक : अंशुमान बताते हैं कि एक साधारण कद काठी के लड़के के लिए गर्लफ्रेंड बनाना मुश्किल होता है. जब कोई गर्लफ्रेंड नहीं रहती तो उसके दोस्त ही उसे हिकारत की नजर से देखते हैं. ऐसे में लड़का चाहता है कि उसकी कोई प्रेमिका बने और इसके लिए पैसे खर्च करता है. कई जगहों पर कई बार पैसे पर गर्लफ्रेंड मिल जाती है, कुछ की दिल्लगी हो जाती है और अंत में वही होता है, दिल टूटता है.
'लक्ष्य प्राप्ति तक न भटकें युवा' : उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से युवाओं को यह सब तमाम दृश्य के माध्यम से समझाने की कोशिश की है कि जिस उद्देश्य से वह अपने गांव से शहर पढ़ने आए हैं उसी पर हमेशा ध्यान केंद्रित रहे. क्योंकि पुरानी परंपरा रही है कि जब भी ऋषि मुनि तपस्या करते थे तो उसे भंग करने के लिए सुंदर अप्सराएं आती थीं. यह स्थिति आज भी है और आज भी इन लड़कों को यह हसीनाएं अपने हुस्न के मायाजाल में फंसाती हैं, फिर लड़के से जब कोई फायदा नहीं दिखता तो छोड़ कर चली जाती हैं.
पुस्तक की एक पंक्ति है…
''इश्क करते हो तो हल्के से इशारा करो, जरूरी नहीं पूरे शहर नंगे बदन तमाशा करो…'' |
देसी शैली में लिखा गया है उपन्यास : अंशुमान ने बताया कि वह देसी शैली में लिखते हैं और जो उन्होंने अनुभव किया है, उसे शब्दों में बयां किया है. वह कोई साहित्यकार नहीं रहे हैं, ना ही उनकी पढ़ाई का विषय हिंदी साहित्य से जुड़ा हुआ है. उनकी लिखने की भाषा पर कई साहित्यकार प्रश्न जरूर उठाते हैं, लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. युवा वर्ग इस पुस्तक के प्रति आकर्षित हैं और यह देखकर अच्छा भी लग रहा है. पाठकों का प्यार लेखक के लिए सबसे प्रिय होता है.
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