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साल 2020 : कश्मीर के लिए '40' के मायने हैं कुछ अलग

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Published : Dec 30, 2020, 12:14 PM IST

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में हाल ही में जिला विकास परिषद के चुनाव संपन्न हुए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि यह प्रदेश में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से बंद पड़ी राजनीतिक प्रक्रिया को शुरू करने में मदद करेंग. 2020 खत्म होने वाला है. इस वर्ष पहले की तुलना में ज्यादा आतंकी मारे गए, ज्यादा बार संघर्ष विराम का उल्लंघन हुआ और ज्यादा कश्मीरी आतंकी रैंक में शामिल हो गए. यह सभी एक संख्या से जुड़े हैं और वह है '40'. पढ़ें ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

terrorist encounter in kashmir
डिजाइन फोटो

नई दिल्ली : 2020 में कोरोना वायरस से फैली महामारी के बीच जम्मू-कश्मीर में मारे गए आतंकियों की संख्या में 2019 की तुलना में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. वहीं पाकिस्तान की तरफ से होने वाले संघर्ष विराम उल्लंघन में भी 2019 की तुलना में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

पहाड़ियों में 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक सर्दियां चरम पर रहती हैं. इस समयावधि (40 दिन) को चिल्लाई कलां कहा जाता है. यह संयोग ही है कि 2020 में जम्मू-कश्मीर के लिए '40' के मायने अलग ही हैं.

ईटीवी भारत को सुरक्षा एजेंसियों से मिले आकड़ों मुताबिक मारे गए आतंकियों की संख्या में 41 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. आतंकियों की भर्ती का आकड़ा भी इसी के करीब है, 40 प्रतिशत.

सोमवार तक पाकिस्तान द्वारा बिना उकसावे के किए गए संघर्ष विराम के उल्लंघन की संख्या 4,700 थी, जो 2019 की तुलना में 48 प्रतिशत ज्यादा है. संघर्ष विराम का उल्लंघन दर्शाता है कि पाकिस्तान ने घुस्पैठियों को सीमा पार कराने की पूरी कोशिश की. इनका उद्देश्य स्थानीय लोगों को भड़काना था, जो अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से पहले से ही नाराज थे.

यह बात किसी से नहीं छुपी है कि पाकिस्तानी सेना संघर्ष विराम का उल्लंघन कर घुस्पैठियों को सीमा पार करने के लिए कवर देती है.

यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पाकिस्तान की गतिविधियों पर करीब से नजर बनाए हुए हैं. हालांकि, अब भी बड़ी संख्या में स्थानीय लोग आतंक का रास्ता चुन रहे हैं.

सोमवार तक सुरक्षाबलों ने कुल 215 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था. इस वर्ष का औसत देखा जाए तो यह हर सप्ताह पांच आतंकियों के मारे जाने के बराबर है.

बीते पांच वर्षों में सुरक्षाबलों ने कश्मीर में कुल 937 आतंकियों को मौत के घाट उतारा है. 2020, 2019, 2018, 2017 और 2016 में क्रमश: 215, 153, 215, 213 और 141 आतंकी मारे गए थे.

बड़ी संख्या में भर्ती के अलावा बड़ी संख्या में आतंकियों के मारे जाने के दो प्रमुख कारण हैं. इनमें पहले है सुरक्षाबलों के बीच समन्वय. कश्मीर में आतंक के खिलाफ लड़ाई तीन-टियर में काम करती है. इनमें भारतीय सेना, अर्धसैनिक और राज्य की पुलिस शामिल हैं.

दूसरा कारण है नए आतंकियों की खराब ट्रेनिंग. हथियारों की कमी, वित्त और लॉजिस्टिक के मसले ट्रेनिंग को प्रभावित करते हैं और ऑपरेशन के दौरान यही आतंकी सबसे पहले मारे जाते हैं.

जैसा की पहले बताया गया कि इस दौरान आतंकी रैंक में शामिल होने वाले कश्मीरियों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है. सोमवार तक कुल 166 कश्मीरियों ने आतंक के रास्ते को अपनाया, जो 2019 की तुलना में 40 प्रतिशत ज्यादा है. 2019 में यह संख्या 116 थी.

2018, 2017 और 2016 में क्रमश: 128, 88 और 66 कश्मीरी आतंकी बन गए थे.

पढ़ें-नापाक हरकतों को छिपाने के लिए भारत पर आरोप लगा रहे पाक एनएसए

केंद्र शासित प्रदेश में जिला विकास परिषद (डीडीसी) के हालिया सफल चुनावों के बाद यह माना जा रहा है कि राजनीतिक गतिविधि फिर से शुरू होगी, जो अनुच्छेद 370 के हटने बाद से बंद थी. जमीनी स्तर पर राजनीतिक प्रक्रिया लोगों को अपनी आवाज उठाने का मौका देगी.

नई दिल्ली : 2020 में कोरोना वायरस से फैली महामारी के बीच जम्मू-कश्मीर में मारे गए आतंकियों की संख्या में 2019 की तुलना में 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. वहीं पाकिस्तान की तरफ से होने वाले संघर्ष विराम उल्लंघन में भी 2019 की तुलना में 48 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.

पहाड़ियों में 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक सर्दियां चरम पर रहती हैं. इस समयावधि (40 दिन) को चिल्लाई कलां कहा जाता है. यह संयोग ही है कि 2020 में जम्मू-कश्मीर के लिए '40' के मायने अलग ही हैं.

ईटीवी भारत को सुरक्षा एजेंसियों से मिले आकड़ों मुताबिक मारे गए आतंकियों की संख्या में 41 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. आतंकियों की भर्ती का आकड़ा भी इसी के करीब है, 40 प्रतिशत.

सोमवार तक पाकिस्तान द्वारा बिना उकसावे के किए गए संघर्ष विराम के उल्लंघन की संख्या 4,700 थी, जो 2019 की तुलना में 48 प्रतिशत ज्यादा है. संघर्ष विराम का उल्लंघन दर्शाता है कि पाकिस्तान ने घुस्पैठियों को सीमा पार कराने की पूरी कोशिश की. इनका उद्देश्य स्थानीय लोगों को भड़काना था, जो अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से पहले से ही नाराज थे.

यह बात किसी से नहीं छुपी है कि पाकिस्तानी सेना संघर्ष विराम का उल्लंघन कर घुस्पैठियों को सीमा पार करने के लिए कवर देती है.

यह आंकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियां पाकिस्तान की गतिविधियों पर करीब से नजर बनाए हुए हैं. हालांकि, अब भी बड़ी संख्या में स्थानीय लोग आतंक का रास्ता चुन रहे हैं.

सोमवार तक सुरक्षाबलों ने कुल 215 आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया था. इस वर्ष का औसत देखा जाए तो यह हर सप्ताह पांच आतंकियों के मारे जाने के बराबर है.

बीते पांच वर्षों में सुरक्षाबलों ने कश्मीर में कुल 937 आतंकियों को मौत के घाट उतारा है. 2020, 2019, 2018, 2017 और 2016 में क्रमश: 215, 153, 215, 213 और 141 आतंकी मारे गए थे.

बड़ी संख्या में भर्ती के अलावा बड़ी संख्या में आतंकियों के मारे जाने के दो प्रमुख कारण हैं. इनमें पहले है सुरक्षाबलों के बीच समन्वय. कश्मीर में आतंक के खिलाफ लड़ाई तीन-टियर में काम करती है. इनमें भारतीय सेना, अर्धसैनिक और राज्य की पुलिस शामिल हैं.

दूसरा कारण है नए आतंकियों की खराब ट्रेनिंग. हथियारों की कमी, वित्त और लॉजिस्टिक के मसले ट्रेनिंग को प्रभावित करते हैं और ऑपरेशन के दौरान यही आतंकी सबसे पहले मारे जाते हैं.

जैसा की पहले बताया गया कि इस दौरान आतंकी रैंक में शामिल होने वाले कश्मीरियों की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई है. सोमवार तक कुल 166 कश्मीरियों ने आतंक के रास्ते को अपनाया, जो 2019 की तुलना में 40 प्रतिशत ज्यादा है. 2019 में यह संख्या 116 थी.

2018, 2017 और 2016 में क्रमश: 128, 88 और 66 कश्मीरी आतंकी बन गए थे.

पढ़ें-नापाक हरकतों को छिपाने के लिए भारत पर आरोप लगा रहे पाक एनएसए

केंद्र शासित प्रदेश में जिला विकास परिषद (डीडीसी) के हालिया सफल चुनावों के बाद यह माना जा रहा है कि राजनीतिक गतिविधि फिर से शुरू होगी, जो अनुच्छेद 370 के हटने बाद से बंद थी. जमीनी स्तर पर राजनीतिक प्रक्रिया लोगों को अपनी आवाज उठाने का मौका देगी.

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