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नियमित नेत्र जांच बचा सकती हैं स्थाई अंधपन से : विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 2021

भारत में काला मोतिया नाम से प्रचलित ग्लूकोमा एक ऐसा नेत्र रोग है, जिस पर समय से ध्यान ना देने पर बड़ी संख्या में लोग अंधेपन का शिकार हो जाते हैं। इस रोग से बचाव के लिए वैश्विक स्तर पर लोगों को ऑप्टिक तंत्रिका परीक्षण सहित नियमित आंखों की जांच के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 7 से 13 मार्च तक विश्व ग्लूकोमा सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।

World Glaucoma Week
विश्व ग्लूकोमा सप्ताह
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Published : Mar 13, 2021, 3:52 PM IST

वैश्विक स्तर पर आम माने जाने वाली नेत्र रोग ग्लूकोमा की गंभीरता तथा उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के प्रति लोगों को अवगत कराने तथा जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 'विश्व ग्लूकोमा सप्ताह' मनाया जा रहा है। गौरतलब है कि ग्लूकोमा एक ऐसा रोग है, जिससे पूरे विश्व में हर साल लगभग 78 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं। सिर्फ भारत की बात करें तो यहां लगभग 12 मिलियन लोग इस रोग के शिकार है। जिनमें से लगभग 1 मिलियन लोगों को इस रोग के कारण अंधेपन का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ष यह सप्ताह 'द वर्ल्ड इज ब्राइट सी योर साइट' यानी दुनिया खूबसूरत है, अपनी दृष्टि संरक्षित रखें, विषय पर मनाया जा रहा है।

ग्लूकोमा रोग

रोग नियंत्रण तथा निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार ग्लूकोमा जिसे काला मोतिया भी कहा जाता है, आंखों की समस्याओं का एक समूह है, जो हमारी ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है, जो कि अच्छी दृष्टि के लिए जिम्मेदार होती है। आमतौर पर यह क्षति आंखों पर उच्च दबाव के कारण होती है, लेकिन इस विषय पर यह किये गए नए शोधों के अनुसार ग्लूकोमा आंखों पर सामान्य दबाव की अवस्था में भी हो सकता है।

ग्लूकोमा के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए वी.आई.एन.एन अस्पताल, हैदराबाद के फिजीशियन डॉ. राजेश वुक्काला बताते हैं कि आंखों पर दबाव के अलावा भी ग्लूकोमा के कई अन्य कारण हो सकते हैं, जिनमें से एक प्रमुख कारण नेत्र की वाहिकाओं में रूकावट हो सकती है। वहीं आंखों के भीतर पाये जाने वाले द्रव्य या फ्लुएड के प्रसार में किसी प्रकार का कोई अवरोध उत्पन्न होने पर भी आंखों पर जोर पड़ सकता है, जिसके चलते यह समस्या हो सकती है। समस्या गंभीर होने पर रोगी स्थाई दृष्टिहानि भी हो सकती है।

आयुर्वेद में ग्लूकोमा को लेकर दिए गए प्रस्तुतीकरण के बारे में आयुर्वेदाचार्य डॉ. पी बी रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद में चोट, दुर्घटना, तनाव, संक्रमण, अनुवांशिकता तथा आंखों की सर्जरी आदि को ग्लूकोमा का कारण माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार जब हमारी आंखें किसी भी कारणवश सामान्य दबाव को भी नहीं झेल पाती हैं, तो उच्च इंट्राऑकुलर दबाव जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है। जिसका असर व्यक्ति की ऑप्टिक नर्व पर पड़ता है और ग्लूकोमा जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्लूकोमा की गंभीरता के चलते होने वाले अंधेपन को ठीक नहीं किया जा सकता है।

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद पर आधारित शास्त्रों में ग्लूकोमा की व्याख्या 'अधीमंथा' नाम से की गई है तथा उसके कारणों और लक्षणों के आधार पर उसे 4 समूहों में वर्गीकृत किया गया है। इसी वर्गीकरण के आधार पर इस समस्या के लिए उपचार भी बताया गया है।

ग्लूकोमा के संकेत और लक्षण

डॉक्टर रंगनायकुलु के अनुसार आयुर्वेद में बताए गए ग्लूकोमा के संकेत और लक्षण इस प्रकार हैं;

  • आंखों में इस तरह का तनाव उत्पन्न होना कि ऐसा लगे की आंखें बाहर आ रही हैं।
  • आंखों में दर्द तथा सिर दर्द।
  • आंखों में अधिक गंदगी आना।
  • आंखों में खुजली तथा लगातार आंखों से पानी बहना।
  • रोशनी के आसपास गोले नजर आना।
  • देखने की क्षमता में कमी आना।
  • आसपास की चीजें तांबे जैसे रंग में नजर आना।
  • आंखों में चिपचिपाहट का बढ़ जाना।

वही इस संबंध में डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि ग्लूकोमा के शुरुआती दौर में बहुत ज्यादा लक्षण नहीं नजर आते हैं, जब तक की आंखों पर दबाव की स्थिति जानने के लिए कोई जांच ना कराई जाए। साथ ही यदि ग्लूकोमा के बारे में देर से पता चले तो बड़ी संख्या में लोगों को ऑप्टिक तंत्रिका में नुकसान के चलते स्थाई दृष्टि दोष का सामना करना पड़ सकता है। जिसे ठीक करना संभव नहीं है।

ग्लूकोमा का उपचार

आयुर्वेद की बात करें तो ग्लूकोमा के इलाज में संपूर्ण सावधानियां बरते जाना बहुत जरूरी माना गया है। आयुर्वेद में ग्लूकोमा के इलाज के लिए विशेषज्ञ शिरावेधन की सलाह दी जाती है। लेकिन इस प्रक्रिया से पूर्व विशेषज्ञ विभिन्न प्रकार के चिकित्सीय गुणों से भरे घी, चिकित्सीय भाप व धुंआ तथा आई ड्रॉप के माध्यम से रोग के उपचार किए जाने की सलाह देते हैं।

ग्लूकोमा को ठीक कर सकने में सक्षम कुछ आयुर्वेदिक औषधियां तथा उनका उपयोग इस प्रकार है;

  1. होगवीड यानी पुनर्नवा तथा डेविल वीड यानी गोक्षुरा का 30 एमएल सत का दिन में 2 बार 1 महीने तक सेवन किया जाए।
  2. गोक्षुरा गुग्गुलु की दो गोलियों का दिन में दो बार 1 महीने तक सेवन किया जाए।
  3. दिन में तीन बार पुनर्नवा ड्रॉप की दो-दो बूंद का 1 महीने तक सेवन किया जाए।
  4. सिर में बालद्दात्रियादी तेल लगाया जाए।
  5. दूध में काला नमक, नध्यापन यानी लीकोरस, पीपली तथा खसखस की घास मिलाकर आंखों के लिए तैयार की गई ड्रॉप का इस्तेमाल किया जाए।
  6. त्रिफला घृता की 10 ग्राम मात्रा का दिन में 2 बार सेवन करें।

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि ग्लूकोमा के लिए स्वतः उपचार नहीं लेना चाहिए। इन सभी औषधियों के सेवन से पूर्व तथा किसी भी प्रकार की चिकित्सा लेने से पहले प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक से चिकित्सीय जांच तथा सलाह लेना बहुत जरूरी है। यही नहीं किसी भी प्रकार के आयुर्वेदिक इलाज की शुरुआत से पहले नेत्र विशेषज्ञ द्वारा रोग की संपूर्ण जांच कराना भी बहुत जरूरी है। डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि इसके अतिरिक्त आंखों को नियमित आराम देना, चकाचौंध वाली वस्तुओं को कम से कम देखना, अच्छी नींद तथा स्वास्थ्य की देखभाल के जरिए ग्लूकोमा में काफी हद तक राहत पाई जा सकती है।

डॉ. राजेश वुक्काला भी ग्लूकोमा से बचाव के लिए नियमित तौर पर आंखों की जांच के लिए जोर देते हैं। वे बताते हैं कि नियमित आंखों की जांच से ना सिर्फ ग्लूकोमा बल्कि अन्य दृष्टि संबंधी रोगों के बारे में समय से पता लगा कर उनका इलाज किया जा सकता है, जिससे दृष्टि दोष जैसी किसी भी गंभीर समस्या से बचा जा सके।

वैश्विक स्तर पर आम माने जाने वाली नेत्र रोग ग्लूकोमा की गंभीरता तथा उससे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के प्रति लोगों को अवगत कराने तथा जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 'विश्व ग्लूकोमा सप्ताह' मनाया जा रहा है। गौरतलब है कि ग्लूकोमा एक ऐसा रोग है, जिससे पूरे विश्व में हर साल लगभग 78 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं। सिर्फ भारत की बात करें तो यहां लगभग 12 मिलियन लोग इस रोग के शिकार है। जिनमें से लगभग 1 मिलियन लोगों को इस रोग के कारण अंधेपन का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ष यह सप्ताह 'द वर्ल्ड इज ब्राइट सी योर साइट' यानी दुनिया खूबसूरत है, अपनी दृष्टि संरक्षित रखें, विषय पर मनाया जा रहा है।

ग्लूकोमा रोग

रोग नियंत्रण तथा निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार ग्लूकोमा जिसे काला मोतिया भी कहा जाता है, आंखों की समस्याओं का एक समूह है, जो हमारी ऑप्टिक तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है, जो कि अच्छी दृष्टि के लिए जिम्मेदार होती है। आमतौर पर यह क्षति आंखों पर उच्च दबाव के कारण होती है, लेकिन इस विषय पर यह किये गए नए शोधों के अनुसार ग्लूकोमा आंखों पर सामान्य दबाव की अवस्था में भी हो सकता है।

ग्लूकोमा के बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए वी.आई.एन.एन अस्पताल, हैदराबाद के फिजीशियन डॉ. राजेश वुक्काला बताते हैं कि आंखों पर दबाव के अलावा भी ग्लूकोमा के कई अन्य कारण हो सकते हैं, जिनमें से एक प्रमुख कारण नेत्र की वाहिकाओं में रूकावट हो सकती है। वहीं आंखों के भीतर पाये जाने वाले द्रव्य या फ्लुएड के प्रसार में किसी प्रकार का कोई अवरोध उत्पन्न होने पर भी आंखों पर जोर पड़ सकता है, जिसके चलते यह समस्या हो सकती है। समस्या गंभीर होने पर रोगी स्थाई दृष्टिहानि भी हो सकती है।

आयुर्वेद में ग्लूकोमा को लेकर दिए गए प्रस्तुतीकरण के बारे में आयुर्वेदाचार्य डॉ. पी बी रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद में चोट, दुर्घटना, तनाव, संक्रमण, अनुवांशिकता तथा आंखों की सर्जरी आदि को ग्लूकोमा का कारण माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार जब हमारी आंखें किसी भी कारणवश सामान्य दबाव को भी नहीं झेल पाती हैं, तो उच्च इंट्राऑकुलर दबाव जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है। जिसका असर व्यक्ति की ऑप्टिक नर्व पर पड़ता है और ग्लूकोमा जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ग्लूकोमा की गंभीरता के चलते होने वाले अंधेपन को ठीक नहीं किया जा सकता है।

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि आयुर्वेद पर आधारित शास्त्रों में ग्लूकोमा की व्याख्या 'अधीमंथा' नाम से की गई है तथा उसके कारणों और लक्षणों के आधार पर उसे 4 समूहों में वर्गीकृत किया गया है। इसी वर्गीकरण के आधार पर इस समस्या के लिए उपचार भी बताया गया है।

ग्लूकोमा के संकेत और लक्षण

डॉक्टर रंगनायकुलु के अनुसार आयुर्वेद में बताए गए ग्लूकोमा के संकेत और लक्षण इस प्रकार हैं;

  • आंखों में इस तरह का तनाव उत्पन्न होना कि ऐसा लगे की आंखें बाहर आ रही हैं।
  • आंखों में दर्द तथा सिर दर्द।
  • आंखों में अधिक गंदगी आना।
  • आंखों में खुजली तथा लगातार आंखों से पानी बहना।
  • रोशनी के आसपास गोले नजर आना।
  • देखने की क्षमता में कमी आना।
  • आसपास की चीजें तांबे जैसे रंग में नजर आना।
  • आंखों में चिपचिपाहट का बढ़ जाना।

वही इस संबंध में डॉक्टर वुक्काला बताते हैं कि ग्लूकोमा के शुरुआती दौर में बहुत ज्यादा लक्षण नहीं नजर आते हैं, जब तक की आंखों पर दबाव की स्थिति जानने के लिए कोई जांच ना कराई जाए। साथ ही यदि ग्लूकोमा के बारे में देर से पता चले तो बड़ी संख्या में लोगों को ऑप्टिक तंत्रिका में नुकसान के चलते स्थाई दृष्टि दोष का सामना करना पड़ सकता है। जिसे ठीक करना संभव नहीं है।

ग्लूकोमा का उपचार

आयुर्वेद की बात करें तो ग्लूकोमा के इलाज में संपूर्ण सावधानियां बरते जाना बहुत जरूरी माना गया है। आयुर्वेद में ग्लूकोमा के इलाज के लिए विशेषज्ञ शिरावेधन की सलाह दी जाती है। लेकिन इस प्रक्रिया से पूर्व विशेषज्ञ विभिन्न प्रकार के चिकित्सीय गुणों से भरे घी, चिकित्सीय भाप व धुंआ तथा आई ड्रॉप के माध्यम से रोग के उपचार किए जाने की सलाह देते हैं।

ग्लूकोमा को ठीक कर सकने में सक्षम कुछ आयुर्वेदिक औषधियां तथा उनका उपयोग इस प्रकार है;

  1. होगवीड यानी पुनर्नवा तथा डेविल वीड यानी गोक्षुरा का 30 एमएल सत का दिन में 2 बार 1 महीने तक सेवन किया जाए।
  2. गोक्षुरा गुग्गुलु की दो गोलियों का दिन में दो बार 1 महीने तक सेवन किया जाए।
  3. दिन में तीन बार पुनर्नवा ड्रॉप की दो-दो बूंद का 1 महीने तक सेवन किया जाए।
  4. सिर में बालद्दात्रियादी तेल लगाया जाए।
  5. दूध में काला नमक, नध्यापन यानी लीकोरस, पीपली तथा खसखस की घास मिलाकर आंखों के लिए तैयार की गई ड्रॉप का इस्तेमाल किया जाए।
  6. त्रिफला घृता की 10 ग्राम मात्रा का दिन में 2 बार सेवन करें।

डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि ग्लूकोमा के लिए स्वतः उपचार नहीं लेना चाहिए। इन सभी औषधियों के सेवन से पूर्व तथा किसी भी प्रकार की चिकित्सा लेने से पहले प्रशिक्षित आयुर्वेदिक चिकित्सक से चिकित्सीय जांच तथा सलाह लेना बहुत जरूरी है। यही नहीं किसी भी प्रकार के आयुर्वेदिक इलाज की शुरुआत से पहले नेत्र विशेषज्ञ द्वारा रोग की संपूर्ण जांच कराना भी बहुत जरूरी है। डॉक्टर रंगनायकुलु बताते हैं कि इसके अतिरिक्त आंखों को नियमित आराम देना, चकाचौंध वाली वस्तुओं को कम से कम देखना, अच्छी नींद तथा स्वास्थ्य की देखभाल के जरिए ग्लूकोमा में काफी हद तक राहत पाई जा सकती है।

डॉ. राजेश वुक्काला भी ग्लूकोमा से बचाव के लिए नियमित तौर पर आंखों की जांच के लिए जोर देते हैं। वे बताते हैं कि नियमित आंखों की जांच से ना सिर्फ ग्लूकोमा बल्कि अन्य दृष्टि संबंधी रोगों के बारे में समय से पता लगा कर उनका इलाज किया जा सकता है, जिससे दृष्टि दोष जैसी किसी भी गंभीर समस्या से बचा जा सके।

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