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दीपावली के दिन गौरा-गौरी मूर्ति पूजन के लिए शीतला माता मंदिर से क्यों लाई जाती है मिट्टी ?

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Published : Nov 4, 2021, 4:01 PM IST

Updated : Nov 4, 2021, 5:17 PM IST

दंतेवाड़ा में गोंड समाज (gond society) द्वारा वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार दीपावली के दिन घरों में गौरा-गौरी की स्थापना की शुरूआत विधि विधान के साथ किया गया.

Why soil is brought from Sheetla Mata temple
शीतला माता मंदिर से क्यों लाई जाती है माटी

दंतेवाड़ाः स्थानीय गोंड समाज (gond society) द्वारा वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार दीपावली के दिन घरों में गौरा-गौरी की स्थापना की शुरूआत विधि विधान के साथ किया गया. इसके लिए सर्वप्रथम घरों में अपने इष्ट देव की पूजा-अर्चना कर गौरा-गौरी मूर्ति के लिए गोंड समाज के लोग धूमधाम से गाजे-बाजे के साथ शीतला माता मंदिर (Sheetla Mata Temple) पहुंच कर मंदिर प्रांगण (temple courtyard) से मिट्टी खोदकर लाते हैं.

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की जाती है गौरा-गौरी की पूजा

उसी मिट्टी के द्वारा गौरा-गौरी की मूर्ति बनाई जाती है और घर के प्रांगण में स्थापना की जाती है. रात्रि को गौरा-गौरी की पूजा अर्चना की जाती है. जिसके पश्चात दीपावली के दूसरे दिन धूमधाम से गौरा-गौरी की धूमधाम से शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा (procession) में कुंवारी कन्या द्वारा कलश को सिर पर ले कर चलती हैं और शोभा यात्रा को नगर भ्रमण के पश्चात शकनी डंकनी नदी में विसर्जन किया जाता है.

मान्यता यह भी है कि गौरा-गौरी शोभायात्रा के दौरान जो भी श्रद्धालु अपने हाथ में कलश का तेल लगा कर रस्सी के कोणों से हाथ में मार खाता है, उसकी मनोकामना जल्द ही पूरी होती है और मार खाने के पश्चात हाथ में कोई निशान नहीं दिखाई देता.

दंतेवाड़ाः स्थानीय गोंड समाज (gond society) द्वारा वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार दीपावली के दिन घरों में गौरा-गौरी की स्थापना की शुरूआत विधि विधान के साथ किया गया. इसके लिए सर्वप्रथम घरों में अपने इष्ट देव की पूजा-अर्चना कर गौरा-गौरी मूर्ति के लिए गोंड समाज के लोग धूमधाम से गाजे-बाजे के साथ शीतला माता मंदिर (Sheetla Mata Temple) पहुंच कर मंदिर प्रांगण (temple courtyard) से मिट्टी खोदकर लाते हैं.

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उसी मिट्टी के द्वारा गौरा-गौरी की मूर्ति बनाई जाती है और घर के प्रांगण में स्थापना की जाती है. रात्रि को गौरा-गौरी की पूजा अर्चना की जाती है. जिसके पश्चात दीपावली के दूसरे दिन धूमधाम से गौरा-गौरी की धूमधाम से शोभायात्रा निकाली जाती है. शोभायात्रा (procession) में कुंवारी कन्या द्वारा कलश को सिर पर ले कर चलती हैं और शोभा यात्रा को नगर भ्रमण के पश्चात शकनी डंकनी नदी में विसर्जन किया जाता है.

मान्यता यह भी है कि गौरा-गौरी शोभायात्रा के दौरान जो भी श्रद्धालु अपने हाथ में कलश का तेल लगा कर रस्सी के कोणों से हाथ में मार खाता है, उसकी मनोकामना जल्द ही पूरी होती है और मार खाने के पश्चात हाथ में कोई निशान नहीं दिखाई देता.

Last Updated : Nov 4, 2021, 5:17 PM IST
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