सूरजपुर: बुझा चूल्हा, टूटी छत और धुंधली उम्मीद लिए जीते ये लोग सूरजपुर की कोड़ाकू जनजाति के हैं. यहां कोई इलाज के लिए तरस रहा है, किसी के सिर पर छत नहीं तो कोई एक-एक दाने को मोहताज है. ये लोग रोज कमाते थे और रोज खाते थे. लेकिन लॉक डाउन ने इनकी जिंदगी को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है.
आमन्दोन गांव के रहने वाले लोग जब खाना पकाने जाते हैं और अपने घर के खाली बर्तन देखते हैं, तो उनकी आंखें छलक आती हैं. वे अधिकारियों को कोसते हैं. एक महिला कहती है कि लापरवाही ने अनाज को मोहताज कर दिया है. किस्मत में भूख लिख दी गई है. राशन है नहीं खाना बनाएं कैसे.
झोपड़ीनुमा घर में रह रहे ग्रामीण
ETV भारत की टीम जब कोड़ाकू जनजाति गांव अमाधुन पहुंची, तो वहां की हालात देखकर लगा मानों सरकार के दावों की कब्र यहीं बनी होगी. ग्रामीणों ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि यहां के सरपंच-सचिव की लापरवाही से न राशन कार्ड बना, न ही गांव में शौचालय और न ही पीएम आवास से घर बना, जिससे आज झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं.
एक-एक दाने को तरसा रहा लॉकडाउन
कोड़ाकू जनजाति के लोगों ने बताया कि वे रोज कमाकर खाने वाले लोग हैं. उनके पास न तो खेती करने को जमीन है और न ही किसी तरह का व्यवसाय. बस मजदूरी करके जो कमाते हैं, उसी से गुजारा करते हैं और परिवार का पेट पालते हैं. लेकिन अब कोरोना वायरस के वजह से हुई लॉकडाउन ने एक-एक दाने को तरसा दिया है, धारा 144 की वजह से कहीं मजदूरी करने भी नहीं जा सकते, अब मानों भगवान भरोसे हैं.
कौन लेगा सुध ?
वहीं प्रतापपुर जनपद पंचायत के CEO निजामुद्दीन से बातचीत की गई, तो उन्होंने कहा कि जहां-जहां राशन नहीं होने की सूचना मिली थी, वहां राशन भेज दिया गया है, आगे जरूरत पड़ेगा तो फिर भेजेंगे, लेकिन ये जवाब से कोड़ाकूपारा की तस्वीर बिल्कुल अलग है. यहां के ग्रामीण का चूल्हा बुझा हुआ है. इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.