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सूरजपुर: 20 वर्षों से रस्सियों में कैद 'जिंदगी', सिस्टम से मदद की आस

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Published : Jun 5, 2020, 5:37 PM IST

Updated : Jun 5, 2020, 11:07 PM IST

महेशपुर गांव में एक युवक पिछले 20 वर्षों से रस्सियों में जकड़ा हुआ है. यह युवक बचपन से ऐसा नहीं है, परिजनों के मुताबिक युवक तालाब में नहाने गया था, जिसके बाद से वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा, उसके इलाज के लिए नेता,मंत्रियों से मदद की गुहार लगाई गई, लेकिन आज तक कोई मदद नहीं मिली.

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'रस्सियों' में कैद जिंदगी

सूरजपुर: जिले के महेशपुर गांव में एक युवक पिछले 20 वर्षों से रस्सियों में जकड़ा हुआ है. ये युवक कोई जुर्म की सजा नहीं काट रहा है, बल्कि यह मानसिक रूप से विक्षिप्त है. गरीबी की वजह से परिवार युवक का इलाज नहीं करा पा रहा है. और मानसिक रूप से बीमार युवक गांव में किसी को परेशान न करे, इसे देखते हुए मजबूर मां ने अपने ही बेटे को रस्सियों से बांध दिया है.

परिजनों का कहना है कि आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण बेटे का इलाज नहीं करा पा रहे हैं. उपेंद्र के माता-पिता, बेटे के इलाज के लिए जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सरकार से अभी तक कोई मदद नहीं मिल पाई है. परिवार का कहना है कि बेटे के इलाज के लिए शासन से लगातार मदद की गुहार लगाई गई. लेकिन उनकी पीड़ा को किसी ने नहीं समझा.

20 वर्षों से रस्सियों में कैद 'जिंदगी'

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कई राजनेताओं से लगाई गुहार, लेकिन नहीं मिली मदद

उपेंद्र की मां बताती है कि 'छत्तीसगढ़ के पूर्व गृह मंत्री रामसेवक पैकरा भी युवक की दुर्दशा देखकर गए हैं, उन्होंने सहायता करने का आश्वासन दिया था, लेकिन वह भी पूरा नहीं हो सका. मदद के लिए युवक को तहसीलदार राम सेवक पैकरा के पास ले गए थे, लेकिन वहां से मदद नहीं मिली, बल्कि मायूसी हाथ लगी. अब सिर्फ झाड़फूक के सहारे ही चल रहे हैं.

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सिस्टम को कोस रहे परिजन

मानसिक रुप से बीमार उपेन्द्र पहले ऐसा नहीं था, जब उसकी मानसिक हालत खराब हुई उस वक्त वह कक्षा ग्यारहवीं में पढ़ाई कर रहा था, लेकिन गांव आने के बाद जब वह एक तालाब में नहाने गया, तब से वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा, जिसके बाद उसके पिता ने कई डॉक्टरों के पास इलाज कराया, लेकिन पैसा नहीं होने के कारण उसका सही से इलाज नहीं हो पाया. जिला प्रशासन से कई बार मदद की गुहार लगाई लेकिन उपेंद्र के परिवार वालों को मदद नहीं मिली.

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मुख्यमंत्री सहायता कोष से भी नहीं मिली मदद !

युवक की मां मीडिया से बात करते-करते रो पड़ी और कहने लगी कि उसका लाल अगर ठीक हो जाता तो, कम से कम मां-बाप से प्यार से बात तो कर सकता. विक्षिप्त बेटे के इलाज के लिए 2009 में सरगुजा कलेक्टर से भी मदद की गुहार लगाई गई, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री सचिवालय भी चिट्ठी भेजी गई, लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगी. ऐसे में परिवार को अब भी उम्मीद है कि सिस्टम से उसे कोई मदद मिल जाए ताकि उसका बेटा ठीक हो सके.

सूरजपुर: जिले के महेशपुर गांव में एक युवक पिछले 20 वर्षों से रस्सियों में जकड़ा हुआ है. ये युवक कोई जुर्म की सजा नहीं काट रहा है, बल्कि यह मानसिक रूप से विक्षिप्त है. गरीबी की वजह से परिवार युवक का इलाज नहीं करा पा रहा है. और मानसिक रूप से बीमार युवक गांव में किसी को परेशान न करे, इसे देखते हुए मजबूर मां ने अपने ही बेटे को रस्सियों से बांध दिया है.

परिजनों का कहना है कि आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण बेटे का इलाज नहीं करा पा रहे हैं. उपेंद्र के माता-पिता, बेटे के इलाज के लिए जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन सरकार से अभी तक कोई मदद नहीं मिल पाई है. परिवार का कहना है कि बेटे के इलाज के लिए शासन से लगातार मदद की गुहार लगाई गई. लेकिन उनकी पीड़ा को किसी ने नहीं समझा.

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उपेंद्र की मां बताती है कि 'छत्तीसगढ़ के पूर्व गृह मंत्री रामसेवक पैकरा भी युवक की दुर्दशा देखकर गए हैं, उन्होंने सहायता करने का आश्वासन दिया था, लेकिन वह भी पूरा नहीं हो सका. मदद के लिए युवक को तहसीलदार राम सेवक पैकरा के पास ले गए थे, लेकिन वहां से मदद नहीं मिली, बल्कि मायूसी हाथ लगी. अब सिर्फ झाड़फूक के सहारे ही चल रहे हैं.

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सिस्टम को कोस रहे परिजन

मानसिक रुप से बीमार उपेन्द्र पहले ऐसा नहीं था, जब उसकी मानसिक हालत खराब हुई उस वक्त वह कक्षा ग्यारहवीं में पढ़ाई कर रहा था, लेकिन गांव आने के बाद जब वह एक तालाब में नहाने गया, तब से वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा, जिसके बाद उसके पिता ने कई डॉक्टरों के पास इलाज कराया, लेकिन पैसा नहीं होने के कारण उसका सही से इलाज नहीं हो पाया. जिला प्रशासन से कई बार मदद की गुहार लगाई लेकिन उपेंद्र के परिवार वालों को मदद नहीं मिली.

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युवक की मां मीडिया से बात करते-करते रो पड़ी और कहने लगी कि उसका लाल अगर ठीक हो जाता तो, कम से कम मां-बाप से प्यार से बात तो कर सकता. विक्षिप्त बेटे के इलाज के लिए 2009 में सरगुजा कलेक्टर से भी मदद की गुहार लगाई गई, लेकिन कोई मदद नहीं मिली. इतना ही नहीं मुख्यमंत्री सचिवालय भी चिट्ठी भेजी गई, लेकिन वहां से भी निराशा हाथ लगी. ऐसे में परिवार को अब भी उम्मीद है कि सिस्टम से उसे कोई मदद मिल जाए ताकि उसका बेटा ठीक हो सके.

Last Updated : Jun 5, 2020, 11:07 PM IST
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