सूरजपुर: जिले में दिवाली की रात मां काली की विशेष पूजा अर्चना की गई. देर रात माता की आराधना भक्तों ने की. कोरोना के चलते इस बार मंदिरों और एक दो पंडालों में मां काली की पूजा की गई.
हर साल जिले में काली मंदिरों में धूमधाम से मां काली की पूजा की जाती है. लेकिन इस साल कोरोना के चलते मंदिरों में श्रद्धालु कम नजर आए. वहीं पंडालों की स्थापना भी कम हुई.पूरे जिले में दीपोत्सव धूमधाम से मनाया गया. कोरोना काल में लंबे अरसे के बाद लोगो मे खुशियों के साथ सड़कों पर रौनक नजर आई
भारत के अधिकतर राज्यों में दिवाली की अमावस्या पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. लेकिन पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों में इस अवसर पर मां काली की पूजा होती है. यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है.
पढ़ें- प्रकृति की अर्चना का दिन गोवर्धन पूजा, जानिए क्या है महत्व और मुहूर्त
क्यों करते हैं काली पूजा?
राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ. तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए. भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया. इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई. जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है.
काली पूजा का महत्व क्या है?
दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था. माना जाता है कि मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है. शत्रुओं का नाश हो जाता है. कहा जाता है कि मां काली का पूजन करने से जन्मकुंडली में बैठे राहू और केतु भी शांत हो जाते हैं. अधिकतर जगह पर तंत्र साधना के लिए मां काली की उपासना की जाती है.