सूरजपुरः स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 125वीं जयंती पर जिला कांग्रेस कार्यालय में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. जिला कांग्रेस प्रवक्ता रामकृष्ण ओझा ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया. इस दौरान वक्ताओं ने बताया कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी और सबसे बड़े नेता थे.
आजाद हिंद फौज का गठन
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए सुभाष चन्द्र बोस ने जापान की मदद से आजाद हिंद फौज का गठन किया था. उनके दिए गए जय हिन्द का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा. नेताजी का नारा आज भी प्रचलन में है. भारतवासी उनको नेता जी के नाम से बुलाया करते थे. 1938 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर थे. नेताजी आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमाण्डर थे ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को मारने का काफी प्रयास किया. 1944 में अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में आधा भारत अंग्रेजो से आजाद हो गया.
पढ़ें- जयंती विशेष: दिल्ली की इस जगह पर 'नेताजी' ने दिया था आखिरी भाषण
भारत की आजादी में अहम योगदान
नेताजी ने आजादी के लिए कारावास भी भोगा था. 1940 में जब हिटलर के बमवर्षक लंदन पर बम गिरा रहे थे. तब ब्रिटिश सरकार ने अपने सबसे बड़े दुश्मन सुभाष चंद्र बोस को कलकत्ता की प्रेसिडेंसी जेल में कैद कर रखा था. अंग्रेज़ सरकार ने बोस को 2 जुलाई 1940 को देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया था. 29 नवंबर 1940 को सुभाष चंद्र बोस ने जेल में अपनी गिरफ्तारी के विरोध में भूख हड़ताल शुरू कर दी थी. एक सप्ताह बाद 5 दिसंबर को गवर्नर जॉन हरबर्ट ने एक एंबुलेंस में बोस को उनके घर भिजवा दिया. जिससे अंग्रेज़ सरकार पर ये आरोप न लगे कि जेल में बोस की मौत हुई है.
नेता जी का जीवन आध्यात्मिक था
नेताजी एक ऐसे तीर्थयात्री थे जिनका जीवन खुद में एक तीर्थ बन गया. नेताजी एक साधक थे और उनका जीवन अध्यात्म और दर्शन की ऐसी जमा पूंजी है. जिसके तेज से आज का हर युवा प्रकाशमान हो सकता है.