सुकमा: एक दशक पहले सलवा जुडूम के दौरान दक्षिण बस्तर से हजारों लोग अपना घर छोड़कर पलायन किए थे. इन ग्रामीण में से ज्यादातर आज बदहाली का जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. नक्सली दहशत की वजह से अपने देवी-देवता की पूजा से वंचित रहे कुछ लोग उन्हें मनाने के लिए वापस लौट रहे हैं.
सलवा जुडूम के बाद दहशत इतनी ज्यादा है ये आदिवासी परिवार कई सालों से अपने देवी-देवता की भी पूजा नहीं कर सके हैं. जबकि इस समाज में साल में कम से कम एक बार कुल देव-देवी की पूजा करने की परंपरा है. इसको लेकर कई परिवारों का मानना है कि इतने लंबे समय से गांव में पूजा-पाठ नहीं होने से उनके देव नाराज हैं. बावजूद इसके नक्सली खौफ के चलते ये वापस नहीं लौट पाए.
लौटने वालों को सरकार से उम्मीद
इसी बीच एर्राबोर थाना क्षेत्र के गांव मड़ईगुड़ा में कई ग्रामीणों ने कुछ दिन पहले अपने गांव लौटने का साहस जुटाया है. हालांकि इन परिवारों को भी उतनी मदद नहीं मिल पा रही है, जितनी उम्मीद सामान्य नागरिक को अपनी सरकार से होती है. फिर ये तो समाज के सबसे कम सुविधा प्राप्त लोग हैं. बस्तर में शांति प्रक्रिया के लिए प्रयास कर रहे संगठन के लोगों की मदद से अब कुछ और ग्रामीण अपनी मातृभूमि वापस लौटने की कोशिश कर रहे हैं.
पहले अपने देवी-देवता को मनाएंगे
आदिवासी समाज घर वापसी से पहले अपने देवी-देवता की पूजा करना चाह रहा है, इसके लिए 12 और 13 जून को पेनपंडुम का आयोजन कोंटा में किया जा रहा है. इस पेनपंडुम (एक तरह का आदिवासी त्योहार) हजारों की तादाद में लोगों के शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है.
लौटने वालों को जमीन दिलाने की कोशिश
इन विस्थापित लोगों में से ज्यादातर अपने गांव दहशत की वजह से वापस नहीं आना चाहते. साथ ही ये लोग अब दूसरे राज्यों में दर-दर की ठोकर भी नहीं खाना चाहते. ये लोग छत्तीसगढ़ लौटकर सरकार से जमीन की अदला-बदली करा कर नई जगह पर पुनर्वास चाहते हैं. इसको लेकर भी इस पेनपंडुम से पहले कवायद शुरू की गई है, लोगों से इसको लेकर आवेदन तैयार कराए जा रहे हैं, जिससे उनकी अपील सरकार तक पहुंचाई जा सके.
इस संबंध में राज्य के साथ ही केंद्र सरकार को भी पत्र लिखा गया है. उम्मीद है कि इस तरह के प्रयास से दक्षिण बस्तर का वो इलाके जो हिंसा के चलते लंबे समय से विरान पड़े हुए हैं, वहां आदिवासी एक फिर मांदर की थाप पर झूमते अपनी संस्कृति में रचे बसे नजर आएंगे.