सरगुजा : निजी स्कूल और किताब दुकानों की सेटिंग कोई नई बात नहीं है, जो भी निजी स्कूल में पढ़ा है या उनके बच्चे वहां पढ़ रहे हैं, वो इस खेल से भली भांति वाकिफ हैं. स्कूल सेलेक्टेड प्रकाशक की बुक चलाते हैं, जो सेलेक्टेड दुकान में ही मिलती है. कुछ स्कूल तो खुद की किताब कॉपी की किट बेचते हैं. लेकिन सरगुजा में इस सेटिंग्स का अजीब मामला सामने आया है. यहां तो एक बुक स्टोर मनमानी पर उतारू है, लिहाजा परिजन परेशान हैं.
क्लास शुरू लेकिन किताब नहीं थी: दरअसल अम्बिकापुर की एक बड़ी निजी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के परिजन स्कूल खुलने पर बच्चों की किताब कॉपी लेने गये लेकिन तब दुकानदार के पास किताबें नही थी. इधर बच्चों की क्लास शुरू हो चुकी थी. टीचर्स ने सलाह दी कि जब तक किताबें नहीं आती है, वो कॉपी खरीद लें और अपने नोट्स लिखते रहें. परिजनों ने कॉपी खरीद ली, कुछ दिन बाद जब दुकान में किताबें आ गई और परिजन किताब लेने पहुंचे. तो अब दुकानदार उन्हें सिर्फ किताब नहीं दे रहा है. क्योंकि परिजन कॉपी कहीं और से ले चुके हैं.
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दोबारा कॉपी खरीदने का दबाव : मतलब दुकानदार की तरफ से अब किताब के साथ दोबारा कॉपी भी खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है. अब कोरोना महामारी की वजह से आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिजनों पर दोबारा कॉपी खरीदने का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है. ऐसे में समझ ये नहीं आ रहा है कि किसी भी वस्तु की खरीदी के लिये उपभोक्ता स्वतंत्र क्यों नही हैं. संविधान में तो पूरे अधिकार हैं. लेकिन स्कूल, प्रकाशक और दुकानदार मिलकर ऐसा जाल बुनते हैं की परिजन चाह कर भी कुछ नही कर सकते हैं. उन्हें मजबूरन इनकी मनमानी को मानना पड़ता है.
शिकायत मिली तो होगी कार्रवाई : इस सबंध में जिला शिक्षा अधिकारी संजय गुहे ने कहा है कि निजी स्कूल में अगर ऐसी शिकायत है तो परिजन लिखित में शिकायत करें. शिकायत आने पर दुकानदार और स्कूल पर सख्त कार्रवाई की जायेगी. अब सवाल ये है बात एक स्कूल या एक मामले की नहीं है. पूरे प्रदेश में शिक्षा को व्यापार बनाकर परिजनों को मजबूर किया जा रहा है. इसके लिये सरकार कोई ठोस पहल क्यों नहीं करती.